शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- बाहर कोरोना कातिल खड़ा है
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बाहर कोरोना कातिल खड़ा है
वजह क्या है, बाहर निकलने की,
विक्षिप्त कातिल बाहर खड़ा है।
जरूरत क्या,कातिल से मिलने की,
दुश्मन कातिल वो सबसे बड़ा है।।
जिंदगी सुकोमल यौवन खुशनुमा है,
कांटों में क्यों इसे, फंसाने चल पड़ा है।
ठहरता नहीं क्यों घर में अपने,
कातिल से मिलने क्यों खड़ा है।।
घर में कई चीजे खाने को पड़ी है,
क्यों मोमो ही, खाना सबसे बड़ा है।
कहीं ये स्वाद ही, न निगल ले जिंदगानी,
क्यों तुझे बाहर आने का बुखार चड़ा है।।
जिंदगी खुदा की दी एक नेमत है,
इसे संभाल कर रख, जीवन बड़ा है।
ठहर जा कुछ पल, सुकून से घर में,
शमशान घाट बनाने क्यों चल पड़ा है।।
अपने लिए ना सही वतन के लिए तो,
जीना ही यहां सबसे बड़ा है।
उनकी जान की कीमत समझ,
कोरोना उन सबके पीछे पड़ा है।।
मास्क पहन दूरी बनाकर चल,
क्यों अपनी जान के पीछे पड़ा है।
इनसे ही है, तेरी जान सलामत,
नहीं तो कातिल बाहर खड़ा है।।
तुझ पर ही वार क्यों कातिल का,
नहीं क्यों परिदों पर असर पड़ा है।
अब भी संभल बेवजह मत निकल,
कातिल तेरे इंतज़ार में खड़ा है।
बस मान जा वक्त रहते विनती तुझसे,
क्यों तू अपनों के पीछे पड़ा है।
क्यों बेवजह बाहर आने की जिद तुझको,
बाहर विक्षिप्त कातिल शत्रु खड़ा है।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना.