नए साल के स्वागत में साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी की कविता-समय मिले यदि साथी तुमको
समय मिले यदि साथी तुमको
नववर्ष के अरुणोदय को, नाना नातिन उत्सुक हैं।
देख रहें हैं नया सबेरा, देखो ! दोनों कितने खुश हैं।
ना बीस बीस जाने का गम है, ना कोरोना का भय है,
आशावादी पल्लव वृक्ष है, दोनों का एक ही रुख है।
दोनों स्वागत को हैं बैठे, दूरस्थ भाग में भारत के।
नव वर्ष भर लाई निकटता, देखो ! इनके चेहरों से।
जाने वाला चला जाएगा, आने वाला भी आएगा।
बीस बीस का साल कोरोना, कालखंड बन जाएगा।
एक बार खुशियां मन भर दो, आशा में संसार जियो।
पछतावे से कुछ फायदा नहीं, नव रस सब घूंट पियो।
हम जीवठ जीवन जीने वाले, जिजीविषा मन भर दो,
देखो शिशिर ऋतु में भी, हैं नातिन- नाना वहिर्मुखी।
रम्य रूप है धरा हमारी, निशांत नित आने वाला है।
करें प्रकृति का हम आलिंगन, नववर्ष आने वाला है।
मंगलगीत हम नित दोनों गाते, हैं आपकी खुशियों को,
समय मिले यदि साथी तुमको, शुभ कामनाएं दे दो।
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।