साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी की कविता-कोरोना के पोस्टर लिखकर
कोरोना के पोस्टर लिखकर !
मैं अंग्रेजी का था मास्टर, हिंदी भी अच्छी सीख गया !
कोरोना के पोस्टर लिख कर,लेखन कला सीख गया।
कविताएं, नारे गढ़ कर के,जन हित कार्य सफल रहा।
टिहरी के चौक- चौराहों पर,जन पोस्टर को खूब पढ़ा।
मै अंग्रेजी का था मास्टर
बैंक,दुकान, गैस प्रतिष्ठानों में,जन जागरूकता कार्य किया।
पोस्ट ऑफिस कोर्ट कार्यालयों में,कविता पोस्टर टांग दिया।
स्कूल,कॉलेज विश्वविद्यालय तक, कविता पोस्टर खूब लगा,
छोटा सा कार्य नवाचार यह, कोविड उन्नीस का काल बना।
मैं अंग्रेजी का था मास्टर
कबाड़ से जुगाड हो गया, पुराने कैलेंडर सब अमर हुए।
स्याही सूख रही थी मार्कर की, कैलेण्डर पर चमक रही।
कवि की कविता कलम प्रहार से, कोरोना अब कांप उठा।
मास्क पहनकर जब मैं निकला, कोविड- 19 भाग गया।
मैं अंग्रेजी का था मास्टर
दो गज की दूरी सुनकर, दुष्ट कोविड- उन्नीस चला गया।
महामारी का भय आतंक भी, बीस बीस संग भाग गया।
दुनिया ने फिर करवट बदली, कवि निशांत कह भोर हुआ,
इस छोटी सी पहल के कारण, बड़ा कार्य भी खूब किया।
मै अंग्रेजी का था मास्टर
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत ।
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।