दिल्ली की छात्रा एवं कवयित्री रीना सिंह की कविता-मोहब्बत का सफर
मोहब्बत का सफर
कई काली रातें बिताई थीं अकेले जाग कर
आँखों से नींदो से ज्यादा आंसुओ ने रिश्तें बनाए,
ज़हन में सिर्फ वहीं यादें वहीं बातें समां कर
दिल सिर्फ उस टूटे हुए रिश्ते की याद दिलाए,
बहुत मुश्क़िल से संभाला था खुद को कुछ सपने सज़ा कर
समझाया दिल को की फिर मोहब्बत के कैद में न आये,
वक़्त बितता रहा और दिल संभालता रहा
वक़्त के साथ कुछ यादें भी धुंधली होती रही,
एक वक़्त आया की लगा दिल पत्थर हो गया है
पर हमें क्या पता था वक़्त के साथ ये कमज़ोर हो गया है,
कुछ साल ही बीते थे की टकरा गयी ये नज़रे किसी से
बदलने लगा एहसास मोहब्बत न होने का फिर से,
होने लगी किसी और की फ़िक्र खुद से भी ज्यादा
आ गया वो दिन भी जब एहसास हुआ है
मोहब्बत अभी भी ज़िंदा है बस एक राज़ खुला है,
दिल का दिल से इकरार हुआ, फिर थोड़ा इज़हार हुआ
यूँ समझे शायद मुझको फिर से प्यार हुआ,
कुछ खास लम्हे बने जो पुरानी यादों को भूलने में कामयाब रहे
पर इन लम्हो के साथ कुछ डर भी अपनी जगह बनाते रहे,
मुक़्क़मल न हुई ये मोहब्बत तो क्या होगा?
क्या फिर कभी मोहब्बत पे ऐतबार होगा?
मंज़िल पर साथ न पहुँचे तो सफर में साथ निभा लें
ज़िंदगी जीने के मक़सद से ही कुछ यादें बना लें,
कल को साथ न रहे तो इन यादों के सहारे ही जी लेंगे
तुम साथ न रहे तो इन लम्हों को याद कर ही मुस्कुरा लेंगें।
कवयित्री का परिचय
लेखिका रीना सिंह दिल्ली की रहने वाली हैं। इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया है और वर्तमान में एमए कर रही हैं। कवितायें और शायरियाँ लिखाना इनका शौक है। उन्होंने स्कूल और कॉलेज की पत्रिकाओं में एडिटर की भूमिका निभाई है। इनका मानना है की अपने भावनाओं को लिख कर व्यक्त करना एक बहुत ही अच्छा ज़रिया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सुन्दर रचना??