पुलवामा शहीद दिवस की दूसरी बरसी पर शहीदों को समर्पित कविता
कैसे गद्दारों और मक्कारों की कामयाब ये चाल हुई।
बही थी नदिया शोणितों की और धरा भी लाल हुई।
क्षत विक्षत पड़े टुकड़े वीरों के बोरों में थे भरे गए।।
सुन कर के हाल लालों का माँएं बहुत बेहाल हुई।।
वीरों की धरा पर देखो कितना अजीब नजारा था।
वीर सैनिकों को ग़द्दारों ने बन्द गाड़ी में मारा था।।
जानते थे जीत न पायेंगे शेरों से युद्ध के मैदान में।
क्योंकि देखो इन वीरों से तो स्वयं काल भी हारा था।।
कुछ चूक हुई थी हमसे जिसका इतना दुःखद परिणाम हुआ।
थी गद्दारी अपनों की या टेढ़ी समय की चाल हुई।
सुन कर के हाल लालों का माँएं बहुत बेहाल हुई।।
किसी का मुंड किसी और के धड़ से जोड़े गये।
मानवता के सारे मानक एक ही प्रहार में तोड़े गए।
घूम रहे हैं हत्यारे सेना के देखो ये कैसी लाचारी है।
उदासीनता है सत्ता की या ये सत्ता की ग़द्दारी है।।
इस घटना दुर्घटना पर देखो तरुणाई भी रोती है।
देखो नवपुष्पों की कैसे मृत्यु असमय अकाल हुई।।
सुन कर के हाल लालों का माँएं बहुत बेहाल हुई।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
परिचय-पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रूची है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।