युवा कवि वरुण सिंह गौतम की कविता- आजकल की बहुतेरे लड़कियाँ
आजकल की बहुतेरे लड़कियाँ
भूली हुई है
अपनी धारा पे चलना…!
घर के पिंजरों से बाहर
तलाश रही है अपनी सभ्यता
पारंपरिक धारा से हटकर
पल्लू उघारे, तन उघारे खुद से उघर रहे
भूली-भटकी हुई स्त्रियाँ
वह छिलमिला-तिलमिला उठती है (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
सतीत्वभंग-निपातन होती कुछेक स्त्रियाँ
अचरज भरी! शुनक जैसी
घर को नहीं किन्तु वो…!
रतिक्रम में कुछेक पाते तृप्ति पाते
दिन-दहाड़े सड़क चौराहों चौक पे
निर्लज्ज, असभ्य, आचरणहीन है
वे स्त्रियाँ….।
कवि का परिचय
वरुण सिंह गौतम
निवासी-बेगूसराय, बिहार। वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्नातक के लिए द्वितीय वर्ष में अध्यनरत।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।