शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- आज खोल दो अमर द्वार

आज खोल दो अमर द्वार
आज खोल दो अमर द्वार,
जहां खो गई तुम्हारी निश्छल जवानी।
अब तो आ जाओ मिलन करने,
क्यों बन गए अब तुम निशानी।।
मेरे अतीत के पन्नों पर,
आज भी है अमिट तेरी कहानी।
आया मैं हजार दिए लेकर,
खंडहर में ढूंढने तेरी जवानी।।
अक्षत पुष्प लेकर आया हूं मैं,
आओ जल्दी आंखो में भरा है पानी।
शरीर धरो आगे आओ,
मेरे मन में द्वंद बनी हैं कहानी।।
याद आते सिहर उठता तन वदन,
न जाने क्यों खत्म हो गई तेरी जवानी,
तुम्हें जगाने आया हूं मैं
आंखो में सागर भरकर लाया हूं पानी।।
कह दो आ रहा हूं मैं,
चीर हृदय धरा का लिए निशानी।
रख दो अपने चरण पद चिन्ह यहां,
महकती खुशबू लिए अपनी जवानी।।
ढूंढ रहा मन व्याकुल विक्षिप्त होकर,
अब तो पास आओ बताओ कहानी।
हवा की सौंधी खुशबू से लग रहा,
आस पास यहीं है तेरी जवानी।।
कौन थे वो जो खत्म कर गए जवानी,
क्यों नहीं दे गए वे तुझे दवा और पानी।
अपनों से भी दूरियां बनवा ली उन्होंने,
इसमें शामिल सख्स ने ली तेरी जवानी।
पर खुदा माफ नहीं करेगा इनको,
कर बैठे जो इतनी बड़ी नादानी।
अरे वो भी किसी मां का लाल था,
क्यों मिटा दी तुमने उसकी जवानी।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।