शिक्षक राजेंद्र प्रसाद जोशी की कविता-कभी हिंदू “मैं”, कभी मुस्लिम, कभी ईसाई हो जाता हूं
ना जाने “मैं” क्यूं कभी
कभी हिंदू “मैं”, कभी मुस्लिम, कभी ईसाई हो जाता हूं,
कभी सिक्ख “मैं”, कभी पारसी, कभी जैनी नजर “मैं”आता हूं।
बुधिस्त कहलाता हूं “मैं” ही, कभी नास्तिक भी कहलाता हूं,
पर ना जाने “मैं” क्यूं कभी भारतवासी नहीं बन पाता हूं।।
पहले बंटा “मैं” धर्मों में तो फिर जाति, उपजाति में बंट जाता हूं,
कभी कहता हूं, “मैं” हूं ब्राह्मण और सर्वश्रेष्ठ बन जाता हूं।
कभी क्षत्रिय बता “मैं” अपनी पीठ खुद ही थपथपाता हूं,
कभी दलित “मैं”, कभी पिछड़ा, कभी वैश्य नजर आ जाता हूं।
पर ना जाने “मैं” क्यूं कभी भारतवासी नहीं बन पाता हूं।।
कभी शिया तो कभी “मैं” सुन्नी में भी खुद को पाता हूं,
सिक्खों के कई संप्रदायों, पंथों में “मैं” पाया जाता हूं।
श्वेतांबर और दिगंबर “मैं” जैन धर्म में कहलाता हूं,
कैथलिक, प्रोस्टेट, आर्थोडेक्स ईसाई धर्म में पाया जाता हूं।
पर ना जाने “मैं” क्यूं कभी भारतवासी नहीं बन पाता हूं।।
धर्म, जाति के बाद “मैं” राज्यों की सीमा में बांटा जाता हूं,
कभी बिहारी, कभी पंजाबी, “मैं” कभी उत्तराखंडी हो जाता हूं।
हिंदी, कन्नड़, तमिल, तेलगु अनगिनत भाषाओं में बोला जाता हूं,
हर पहनावे, रहन सहन में भी “मैं” पाया जाता हूं।
पर ना जाने “मैं” क्यूं कभी भारतवासी नहीं बन पाता हूं।।
भारतवासी हैं, हम सब फिर भी कितने “मैं” में बंटे हुए,
अपने अपने धर्मों के, जाति के नारे हमको रटे हुए।
कोई कहता इसे हिंदू राष्ट्र कोई गजवा ए हिंद बना देंगे,
कोई कहता हम इस पर खालिस्तान का झंडा लहरा देंगे।
कोई कश्मीर के टुकड़े टुकड़े करने की कसमें खाते हैं,
मेरे देश के लाल सभी फिर भी ऐसा कह नहीं शरमाते हैं।
आओ मिलकर जाति, धर्म और सीमा से “मैं” को मुक्त कराते हैं,
हम सब पहले भारतवासी, भारत मां की जय का नारा लगाते हैं।।
कवि का परिचय
आर पी जोशी “उत्तराखंडी”
(एमए, बीएड, डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लिकेशन)
अनुदेशक, राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (महिला) देहरादून
मूल निवासी – तल्ली मिरई, द्वाराहाट, अल्मोड़ा।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।