कविताः देखना..सुबह एकदिन फिर मुस्कुराएगी

देखना…एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
चारों ओर अंधेरा घना
आकाश काले बादल सना
रातें लम्बी उदासी भरी
लेकिन शीघ्र स्थितियां सुधर जाएगी
देखना..सुबह फिर मुस्कुराएगी
दिन रात सन्नाटों भरे
रोज जख्म हरे के हरे
मौत पर मौत का टांडव
पर जिंदगी को मौत कब तक डराएगी
देखना..एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
मुंह बांध हाथ धो
अदृश्य शत्रु से सब डरो
मरने से भला घुट घुटकर जीना
जहरीली हवाऐं एक दिन बदल जाऐगी
देखना..एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
लाचारी मुश्किलें परेशानियां
मुफलिसी गुमनामियां
हिम्मत से ही हालात बदलेंगे
बारिश पर्वतों को कब तक डराएगी
देखना..एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
मानवता से प्रकृति की जंग
धरा है आत्मचिकित्सा में मलंग
माना रिश्ते इनके अति तंग
लेकिन एक दिन धरा संग मानवता फिर गुनगुनाएंगी
देखना..एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
गम छंट जाएंगे
हर्ष बंट जाएंगे
रोशनी आएगी चहुंओर बेशक
वीरों को मुश्किलें कब तक डगमगाएगी
देखना..एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
ना हमेशा अंधेरा रहा
ना रोशनी रही सदा
दौर बुरा है ये दहशत का
लेकिन कल दहशत सुकून से हार जाएगी
देखना..एकदिन सुबह फिर मुस्कुराएगी
कवयित्री का परिचय-
सोनिका रमोला नेगी
प्रवक्ता राजनीति विज्ञान
राजकीय बालिका इंटर कालेज दौलाघट अल्मोड़ा
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।