अशोक आनन की कविता- एक – एक वोट को
एक – एक वोट को
आसमां से गिर वे,
खजूर में अटक रहे हैं।
एक – एक वोट को जो,
दर – दर भटक रहे हैं।
उनके वादों पर
कैसे कोई यक़ीन करे।
वादे तो हवा में
तिनके से लटक रहे हैं।
घर होता तो वे घर पर
कुछ वक़्त गुज़ारते।
जो दिन में चेन्नई
रात में कटक रहे हैं।
दूब चाहकर भी कभी
बरगद बन नहीं सकती।
बरगद अब दूब को
तिनके-से खटक रहे हैं।
विषपायी तो सदैव
नीलकंठ ही रहेंगे।
वे अनादिकाल से विष
अब तक गटक रहे हैं।
पतझड़ आते ही पात
दरख़्तों से झड़ गए।
वे पक्षी भी उड़े
जो उनके घटक रहे हैं।
हाथ तपाक से जब
मिलाना चाहा उन्होंने।
लोग हैं, उनका हाथ
ज़ोर से झटक रहे हैं।
शहर के आईनों को
आख़िर ! ये क्या हुआ।
ज़रा सी धूप में वे
हड्डियों-से चटक रहे हैं।
कल तक जो फूलों के
ऊपर मंडराते थे ।
आज वे ही शूलों के
ऊपर मटक रहे हैं।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।