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December 23, 2024

अशोक आनन की कविता- एक – एक वोट को

एक – एक वोट को
आसमां से गिर वे,
खजूर में अटक रहे हैं।
एक – एक वोट को जो,
दर – दर भटक रहे हैं।
उनके वादों पर
कैसे कोई यक़ीन करे।
वादे तो हवा में
तिनके से लटक रहे हैं।
घर होता तो वे घर पर
कुछ वक़्त गुज़ारते।
जो दिन में चेन्नई
रात में कटक रहे हैं।
दूब चाहकर भी कभी
बरगद बन नहीं सकती।
बरगद अब दूब को
तिनके-से खटक रहे हैं।
विषपायी तो सदैव
नीलकंठ ही रहेंगे।
वे अनादिकाल से विष
अब तक गटक रहे हैं।
पतझड़ आते ही पात
दरख़्तों से झड़ गए।
वे पक्षी भी उड़े
जो उनके घटक रहे हैं।
हाथ तपाक से जब
मिलाना चाहा उन्होंने।
लोग हैं, उनका हाथ
ज़ोर से झटक रहे हैं।
शहर के आईनों को
आख़िर ! ये क्या हुआ।
ज़रा सी धूप में वे
हड्डियों-से चटक रहे हैं।
कल तक जो फूलों के
ऊपर मंडराते थे ।
आज वे ही शूलों के
ऊपर मटक रहे हैं।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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