मानसरोवर से निकली गंगा और ब्रह्मपुत्र के तट पर एक साथ हुआ पितृ पूजन, दोनों तरफ वीडियो कॉल से देखा नजाराः भूपत सिंह बिष्ट
पितृ पूजने को धार्मिक परंपरा निभाने के लिए बेटा जहां ऋषिकेश में गंगा के तट पर पहुंचा तो परिवार के अन्य सदस्य ब्रह्मपुत्र में पूजन में जुटे रहे। एक तरफ अरुणाचल में पूजा और दूसरी तरफ ऋषिकेश में गंगा के तट पर। दोनों ही नदियों का उदगम मानसरोवर माना गया है। इस अनोखे नजारे को परिवार के सदस्यों ने एक दूसरे से सैकड़ों किलोमीटर दूर होने के बावजूद वीडियो से लाइव देखा।
अरूणाचल प्रदेश यानि भारत की विविधता का यह अनुपम फूल। मेरे जीवन की एक बड़ी विरासत का खजाना साबित हो रहा है। चालीस साल पहले की कथा कहना, तब और मुश्किल हो जाता है। जब यह संबंध अभी निरंतर प्रवाह में रहते हैं। अरूणाचल की एक प्रमुख जनजाति शर्दूकपेन अपने सनातन नियम और मान्यताओं के साथ बहुतायत में बौद्ध धर्म का पालन करती है। वेस्ट कामेंग जनपद के निवासी तिब्बत (चीन अधिग्रहित) के निकट होने के कारण तिब्बती बौद्ध संस्कारों का पालन जन्म और मृत्यु के साथ- साथ तमाम जीवनधारा के दु:ख – सुख में करते हैं।
पिछले सप्ताह मेरे एक प्रिय शर्दूकपेन जनजाति के पूर्व छात्र (जो भारत सरकार में अब वरिष्ठ अधिकारी है) ने संदेश दिया — सर, पिता जी का स्वर्गवास हो गया है और मैं अपने परिवार के साथ ऋषिकेश गंगा तट पर पूजा करने आना चाहता हूँ। मेरे लिए यह एक परीक्षा की घड़ी बन गई। अपने अरूणाचली छात्र को हिंदू मान्यता का परिचय कराना और माँ गंगा की मोक्षदायनी पवित्र धारा की महिमा बताना एक यक्ष प्रश्न रहा।
छात्र अपने शिक्षक को ब्रह्मा से कम तो नहीं समझते। हमारे गुरू जी सब कुछ जानते हैं, लेकिन हर मानव की अपनी एक सीमा है। इस विषय को समझाने के लिए मुझे मित्र दिनेश शास्त्री सेमवाल बिलकुल उपयुक्त लगे। मैंने उन्हें ऋषिकेश यात्रा के दौरान अपने बौध छात्र के लिए संक्षेप में मोक्षप्राप्ति की पितृ पूजा आयोजन के लिए मना भी लिया।
दिनेश शास्त्री के लिए यह पहला अनुभव रहा। जब बौद्ध परम्परा जीने वाले हिमालयी राज्य अरूणाचल के भारतीय परिवार को माँ गंगा की महिमा – स्वर्ग से अवतरण, शिव की जटाओं में वेग को थामना, राजा भगीरथ के पुरखों की शाप मुक्ति और मोक्ष आदि तमाम सनातन हिंदू आस्थाओं से भाषा की बाधा के बावजूद सरल संवाद में जानकारी देना।
महाकुँभ के दौरान आजकल पूरा भारत गंगा किनारे जुट रहा है। अपने पित्रों के लिए पूजा पाठ और गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित करने की परम्परा में लाखों लोग रोज हरिद्वार व ऋषिकेश आ-जा रहे हैं। मेरे लिए यह कौतुक बना रहा कि एक ट्राइबल अधिकारी अपने पिता के लिए शांति पाठ करने माँ गंगा की शरण में आया और बिना हिचक सारे कर्मकांड किए हैं।
बहिन ने बताया कि हर सप्ताह दिवंगत आत्मा के लिए पूजा पाठ का आयोजन सात सप्ताह तक करना होता है और आज ही सोनितपुर, असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे अरूणाचल से आये पारिवारिक लोग पूजा अर्चना कर रहे हैं।
मुझे यह पूजा मोबाइल में लाइव देखने को मिली और ऋषिकेश में गंगा किनारे हो रही पूजा को अरूणाचल में परिजनों ने देखा। आधुनिक संचार माध्यम का यह अनूठा उपयोग सुदूर अरूणाचल प्रदेश से हमारा निकट का रिश्ता बनाने में सफल रहा।
पितृ पूजन के दौरान ऐसे कई अवसर आये – जब पूरा परिवार पिता को यादकर बिलखकर रोने लगा। यह अनुभूति दिल में गहरे तक घर कर गई है। स्वर्गीय पिता के लिए समर्पित इस अरूणाचली परिवार को अनेक साधुवाद और माँ गंगा से प्रार्थना कि दिवंगत आत्मा को श्रीचरणों में शांति मिले।
लेखक का परिचय
नाम-भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।