Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 13, 2024

लोगों का काम है कहना, सबकी सुनना जरूरी, करो मन की पूरी

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। ये गाना मैने बचपन में सुना था। तब शायद इसका सही मतलब भी नहीं जानता था। अब यही महसूस करता हूं कि हमारे सभी अच्छे व बुरे कार्यों में लोगों की प्रतिक्रिया भी जुड़ी होती है।

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। ये गाना मैने बचपन में सुना था। तब शायद इसका सही मतलब भी नहीं जानता था। अब यही महसूस करता हूं कि हमारे सभी अच्छे व बुरे कार्यों में लोगों की प्रतिक्रिया भी जुड़ी होती है। कई बार तो इसे ध्यान में रखकर ही व्यक्ति किसी काम को अंजाम देता है। वहीं, कई बार व्यक्ति दूसरों की प्रतिक्रिया को नजरअंदाज कर देता है। फिर भी लोग तो कहते ही हैं। कई बार तो लोगों के कहने का हमारी कार्यप्रणाली में सार्थक असर भी पड़ता है। हम लोगों की प्रतिक्रिया के मुताबिक अपनी गलतियों से रूबरू होते हैं और उसमें सुधार का प्रयत्न करते हैं।
वैसे लोगों का काम तो कहना ही है। बेटी की उम्र बढ़ गई और समय पर रिश्ता नहीं हुआ। पिता को इसकी चिंता तो है ही, साथ ही यह चिंता रहती है कि लोग क्या कहेंगे। रिश्ता हुआ और यदि वर व बधु पक्ष को कोई दिक्कत नहीं, लेकिन जोड़ी में सही मेल न हो तो भी लोग तो कहेंगे। लड़की ज्यादा पढ़ीलिखी थी, लड़का कम पढ़ा है। कोई खोट रहा होगा लड़की में ऐसा ही लोग कहेंगे। वैसे देखा जाए तो दुख की घड़ी में ज्यादातर लोग दुखी व्यक्ति के पक्ष में सकारात्मक ही बोलते हैं, लेकिन सुख की घड़ी में ऐसे लोगों की कमी नहीं होती, जो कुछ न कुछ बोलने में कसर नहीं छोड़ते। बारात आई और मेहमान भी खाने में पिलते हैं। साथ ही प्रतिक्रिया भी दे जाते हैं खाना अच्छा नहीं था या फिर शादी के आयोजन की कमियां गिनाते रहते हैं।
लड़की के मामले में तो अभिभावकों को बेटी से ज्यादा दूसरों की चिंता होती है। यदि कहीं बेटी से छेड़छाड़ की घटना हो जाए, तो बेचारे लोगों की टिप्पणी के भय से इसकी शिकायत थाने तक नहीं कर पाते हैं। लोग कहीं बेटी पर ही दोष न दें। दुष्कर्म होने पर लोकलाज के भय से ही ज्यादातर लोग अपने होंठ सील लेते हैं। ऐसे मे दोषी के खिलाफ कोई कार्रवाई तक नहीं हो पाती है।
लोगों की चिंता छोड़ सही राह में चलने वाले को कई बार चौतरफा विरोध झेलना पड़ता है। इसके बावजूद ऐसे सहासी लोग किसी की परवाह किए बगैर अपने कार्य को अंजाम देते हैं। तभी तो दिल्ली गैंग रैप के आरोपियों को फांसी की सजा हुई। संत कहलाने वाले आसाराम का असली चेहरा जनता के सामने उजागर हुआ और वह भी सलाखों के बीचे है। नेता हो या अभिनेता, संत हो या धन्ना सेठ। कोई कानून से बड़ा नहीं है। यदि कोई गलत करता है तो उसे सजा भी मिलनी चाहिए।
कोई भी नया काम करने से पहले उसके विरोध में खड़े होने वालों की संख्या भी कम नहीं होती। जब किसी दफ्तर में कोई नई योजना लागू होती है तो उसके शुरू होने से पहले ही कमियां गिनाने वाले भी कुछ ज्यादा हो जाते हैं। जब देश में कंप्यूटर आयो तो तब भी यही हाल रहा। इसके खिलाफ एक वर्ग आंदोलन को उतारू हो गया। तर्क दिया गया कि लोग बेरोजगार हो जाएंगे। आज कंप्यूटर हर व्यक्ति की आवश्यकता बनता जा रहा है। कोई काम करने से पहले परीणाम जाने बगैर ही अपनी राय बनाने वाले शायद यह नहीं जानते कि यदि मन लगाकर कोई काम किया जाए तो उसके नतीजे ही अच्छे ही आते हैं।
अब रही बात यह कि क्या करें या क्या न करें। सुनो सबकी पर करो अपने मन की। यह बात ध्यान में रखते हुए ही व्यक्ति को कर्म करना चाहिए। क्योंकि अपने जीवन में सही या गलत खुद ही तय करना ज्यादा बेहतर रहता है। हर व्यक्ति को स्वतंत्रता है कि वह कुछ करे या बोले। लेकिन, इस स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं कि वह दूसरे की स्वतंत्रता में दखल दे रहा है। खुद तेज आवाज में गाने सुन रहा है और पड़ोस के लोगों को उससे परेशानी हो रही है। ऐसी स्वतंत्रता का तो विरोध भी होगा।
सेवाराम जी इसलिए परेशान हैं कि बच्चे घर में पढ़ाई करने बैठते हैं, तो पड़ोस के मंडल जी के घर में तेज आवाज में गाने बजने लगते हैं। सेवाराम जी कसमसाकर रह जाते हैं। वह यदि मंडलजी को समझाने का प्रयास करते हैं, तो भी उन पर कोई असर नहीं पड़ता। मंडलजी कहते हैं लोगों का काम कहना है। मैं तो अपने घर में गाने सुन रहा हूं। गुस्साए लोग कहते हैं कि मंडलजी को घर से बाहर घसीटकर सड़क पर उनका जुलूस निकाला जाए। मंडलजी को इसकी परवाह नहीं।
बेचारे पड़ोसी दिन मे भी कमरे के खिड़की व दरबाजे बंद करने लगे हैं, ताकि मंडल के घर से आवाज न सुनाई दे और बच्चों की पढ़ाई में कोई व्यावधान ना आए। वहीं मंडलजी खुश हैं कि उनकी मनमानी के खिलाफ बोलने वाले चुप हो गए। नतीजा मंडल के घर में जितने बच्चे थे, सभी परीक्षा में फेल हो गए और पड़ोस के बच्चे अच्छे अंक लेकर नई क्लास में चले गए। परीणाम देखकर मंडलजी को यही चिंता सताने लगी कि लोग क्या कहेंगे। अब तो चुनावी मौसम शुरू हो गया है। सब ही बोल रही हैं। नेता वोट मांग रहे हैं। जनता काम का हिसाब मांग रही है। दल आरोप लगा रहे हैं। यानी हर कोई कह रहा है। पीएम बोलते हैं मैं जिंदा बच गया। विपक्अष बोलता है-कुर्सियां खाली थी। अब सुनने वाले को भी दिल की बात सुननी होगी। तय करना होगा कौन क्या बोला, कितना सच बोला। साथ ही सही निर्णय लेना होगा।
भानु बंगवाल

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page