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April 18, 2025

विपक्षी दल और जनसंगठनों का आरोप, राज्य की जमीन, जनता का पैसा दिया जा रहा है कार्पोरेट घरानों को

उत्तराखंड के विपक्षी दलों और जन संगठनों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि प्रदेश की जमीन और जनता का पैसा कार्पोरेट घरानों को दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देहरादून, अल्मोड़ा, हरिद्वार, उधमसिंह नगर, पिथौरागढ़, रामनगर के साथ ही अन्य शहरों में सरकार की “सर्विस सेक्टर पालिसी” लाई जा रही है, जो कि जन विरोधी है। इसे लेकर आज इन दलों के प्रतिनिधिमंडल ने देहरादून की जिलाधिकारी से भेंट कर उनके माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस सीपीआई, पीपीआई (एम), समाजवादी पार्टी के साथ ही अन्य जनसंगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे। ज्ञापन के माध्यम से संगठनों ने कहा कि 12 सितंबर को राज्य मंत्रिमंडल ने ‘उत्तराखंड सर्विस सेक्टर पॉलिसी’ को मंजूरी दी। इसके तहत सरकारी ज़मीन 99 साल की लीज पर सस्ते रेट पर पूंजीपतियों को दी जाएगी। अगर कोई कंपनी ज़मीन नहीं लेती है तो उस सूरत में उनको परियोजना के खर्चों पर 20 से 40 प्रतिशत तक सरकारी सब्सिडी दी जाएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

विपक्षी दलों ने कहा कि विकास एवं रोजगार के बहाने निजी कंपनियों को सब्सिडी दी जा रही है, लेकिन ऐसी नीतियों से कितना रोजगार मिला है, किस प्रकार का रोजगार मिला है, यह हम सबके सामने है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार ने सख्त भू कानून लाने का आश्वासन दिया था, लेकिन इस नई पॉलिसी में साफ़ साफ़ कहा जा रहा है कि राज्य की जमीन बाहर के पूंजीपतियों को दी जायेगी। तो भू कानून के अपने वादे को सरकार क्या भूल गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसके अतिरिक्त “अतिक्रमण हटाओ अभियान” के तहत सरकार सैकड़ों परिवारों को अपनी दुकानों और घरों से बेदखल कर चुकी है। हजारों को नोटिस दे कर उनकी रोजी रोटी की तलवार लटका चुकी है, लेकिन अब दोहरा मापदंड अपनाते हुए सरकार खुद सरकारी ज़मीन निजी कंपनियों को देने की तैयारी कर रही है। सरकार अपनी आर्थिक स्थिति को इतना कमजोर दिखा रही है कि अधिकांश सरकारी विभागों में सालों से भर्ती नहीं हुई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मनरेगा के अंतर्गत अधिकांश लोगों को आज तक 40 दिन से कम ही काम मिल रहा है। अगर वाकई स्थिति ऐसी है तो सरकार निजी कंपनियों को अरबों की सब्सिडी देने में सक्षम कैसे हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं ने मांग उठाई कि सर्विस सेक्टर पालिसी को रद्द किया जाये।  ऐसी हर कॉर्पोरेट कंपनी को सब्सिडी देने वाली नीति से आज तक कितना और किस प्रकार का रोज़गार मिला है, इस पर सरकार श्वेत पत्र जारी करे। इन्वेस्टर समिट में आने वाली कम्पनयों को क्या क्या आश्वासन दिया जा रहा है, इन पर भी सरकार स्तिथि स्पष्ट करे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मांग की गई है कि पहाड़ों में बंदोबस्त किया जाए और 2018 का भू कानून संशोधन को रद्द किया जाए।  वन अधिकार अधिनियम के अनुसार हर गांव और पात्र परिवार को अपने वनों और ज़मीनों पर अधिकार पत्र दिया जाए।  सरकार किसी को बेघर न करे। अगर किसी को हटाना मजबूरी है तो उनका पुनर्वास के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाये। इसके लिए कानून लाया जाये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

साथ ही मांग की गई है कि अतिक्रमण रोकने के बहाने लाया गया “दस साला काला कानून” के प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाये। सारे सरकारी विभागों में निष्पक्ष और भर्ती प्रक्रिया को शुरू किया जाये और हर कल्याणकारी योजना में हर पात्र व्यक्ति को शामिल करने के लिए कदम उठाया जाये।  उत्तराखंड में महिला नीति बनाई जाए जिसमें ख़ास तौर पर महिला किसान एवं महिला मज़दूर के कल्याण और बुनियादी हक़ों के लिए प्रावधान हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रतिनिधिमंडल में उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के नेशनल कौंसिल मेंबर समर भंडारी, आल इंडिया किसान सभा के प्रदेस अध्यक्ष एवं CPI(M)की राज्य समिति सदस्य सुरेंद्र सिंह सजवाण, उत्तराखंड महिला मंच से कमला पंत, चेतना आंदोलन से शंकर गोपाल, विनोद बडोनी, राजेंद्र शाह, मुकेश उनियाल, सर्वोदय मंडल उत्तराखंड से अधिवक्ता हरबीर सिंह कुशवाहा, समाजवादी पार्टी के पूर्व महानगर अध्यक्ष मोहम्मद मंसूरी आदि शामिल थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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