सुप्रीम कोर्ट में पत्रकारों ने दाखिल की याचिका, अब तक तीन याचिका, जानिए क्या है पूरा प्रकरण
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका द हिंदू के पूर्व मुख्य संपादक एन राम और एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार (निदेशक एसीजे) ने दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर ये तीसरी याचिका है। इससे पहले राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने इजराइली स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल करके सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, पत्रकारों और संवैधानिक पदाधिकारियों की जासूसी की रिपोर्ट की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अधिवक्ता एम एल शर्मा ने भी याचिका दायर कर मांग की थी कि न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा जांच कराई जाए।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, पेगासस फोन हैकिंग संचार, बौद्धिक और सूचनात्मक निजता पर सीधा हमला है और प्राइवेसी के अधिकार के इस्तेमाल के लिए खतरा पैदा करती है। निजता का अधिकार किसी के मोबाइल पोन, इलेक्ट्रानिक उपकरणों पर भी लागू होता है और इनका किसी भी प्रकार से हैकिंग या टैपिंग करना अनुच्छेद 21 की अवहेलना है।
याचिका में कहा गया पेगासस स्पाईवेयर का निगरानी के लिए इस्तेमाल राइट टू प्राइवेसी पर गहरी चोट करता है। याचिका में कहा गया है कि पत्रकारों, डॉक्टर-वकीलों, सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट, सरकार के मंत्रियों और विपक्षी नेताओं की संभावित हैकिंग या इंटरसेप्शन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों के इस्तेमाल के साथ भी समझौता है।
याचिका में कहा गया है कि यह किसी व्यक्ति के निजी जीवन की गोपनीयता में भी सेंध लगाता है। कई सारे पत्रकारों की जासूसी प्रेस की आजादी पर हमला है और बोलने-अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के तहत जानने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। याचिका में यह दलील भी दी गई है कि ये जासूसी टेलीग्राफ ऐक्ट का भी खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है।
पीयूसीएल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले का जिक्र करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा, निगरानी या इंटरसेप्शन की इजाजत पब्लिक इमरजेंसी या जन सुरक्षा के हितों के मामले में ही दी जा सकती है। इन मामलों में भी तार्किक आधार पर निगरानी की जा सकती है, इसे पूरी तरह सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता, लेकिन मौजूदा मामले में ऐसे किसी भी मानक का पालन नहीं किया गया।
भारत में ये थे संभावित टारगेट
बता दें, द वायर की रिपोर्ट में बताया गया है कि कांग्रस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, दो केंद्रीय मंत्री, टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी और 40 भारतीय पत्रकार जासूसी के संभावित टारगेट थे। इसके साथ ही उद्योगपति अनिल अंबानी के साथ एडीए समूह के एक वरिष्ठ अधिकारी का फोन भी कथित रूप से हैक किये जाने की आशंका जतायी गयी है। यह लिस्ट भारत की एक अज्ञात एजेंसी की है, जो कि इयरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का स्पाइवेयर Pegasus यूज करती है। एनएसओ का कहना है कि यह अपना Pegasus स्पाइवेयर केवल ‘जांची-परखी सरकारों’ को ही आतंक से लड़ने के मकसद से देती है. किसी भी प्राइवेट कंपनी को यह स्पाइवेयर नहीं दिया जाता है।
भारत सरकार ने किया था इनकार
हालांकि, भारत सरकार ने इसमें अपनी भूमिका से साफ इनकार किया है। वहीं, कांग्रेस समेट विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेर रही हैं। कांग्रेस ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इस्तीफे की मांग करते हुए पीएम मोदी की इसमें भूमिका की जांच की मांग भी की थी।
ये हुआ था खुलासा
भारतीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों के फोन नंबर उस लीक डाटाबेस में पाए गए हैं, जिन्हें इजरायली स्पाईवेयर पेगासस Pegasus के इस्तेमाल से हैक किया गया है। द वायर सहित 16 मीडिया संस्थानों की पड़ताल में यह जानकारी सामने आई थी। करीब एक सप्ताह पहले प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया था कि लीगल कम्यूनिटी मेंबर्स, बिजनेसमैन, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं और अन्यों के नंबर इस लिस्ट में शामिल हैं। इस लिस्ट में 300 से ज्यादा भारतीय मोबाइल नंबर हैं। हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस सहित बड़े मीडिया संस्थानों के बड़े पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया है।
चुनावों के दौरान बनाया गया निशाना
द वायर (The Wire) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा आम चुनावों से पहले 2018 और 2019 के बीच ज्यादातर को निशाना बनाया गया। पेगासस को बेचने वाली इजरायली कंपनी NSO ग्रुप का दावा है कि वह अपने स्पाईवेयर केवल अच्छी तरह से जांची-परखी सरकारों को ही ऑफर करती है।
क्या है पेगासस
पेगासस को बनाने वाले एनएसओ ग्रुप ने अपनी ट्रांसपेरेंसी और रिस्पॉसिबिलिटी रिपोर्ट 2021 में कहा है कि इसके उत्पाद सार्वजनिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से सत्यापित सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल के लिए ही बने हैं। कंपनी कहती है कि हम पेगासस का लाइसेंस केवल स्वीकृत, सत्यापित और अधिकृत सरकारों और सरकारी एजेंसियों को देते हैं। विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रमुख कानूनी जांच में उपयोग किए जाने के लिए।
वर्ष 2016 से मौजूद है ये स्पाइवेयर
पेगासस को इज़राइल स्थित साइबर इंटेलिजेंस और सुरक्षा फर्म NSO ग्रुप की ओर से विकसित किया गया था। माना जाता है कि यह स्पाइवेयर 2016 से ही मौजूद है और इसे क्यू सूट और ट्राइडेंट जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। बाजार में उपलब्ध ऐसे सभी उत्पादों में सबसे परिष्कृत माना जाता है। यह ऐप्पल के मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम आईओएस और एंड्रॉइड डिवाइसों में घुस सकता है। पेगासस का इस्तेमाल सरकार की ओर से लाइसेंस के आधार पर किया जाना था। मई 2019 में, इसके डेवलपर ने सरकारी खुफिया एजेंसियों और अन्य के लिए पेगासस की बिक्री सीमित कर दी थी।
कंपनी का ये है दावा
एनएसओ ग्रुप की वेबसाइट के होम पेज के अनुसार कंपनी ऐसी तकनीक बनाती है जो दुनिया भर में हजारों लोगों की जान बचाने के लिए आतंकवाद और अपराध को रोकने और जांच करने में मदद के लिए सरकारी एजेंसियों की मदद करती है।
ऐसे काम करता है पेगासस स्पाईवेयर
– इज़रायल के NSO ग्रुप ने पेगासस स्पाईवेयर बनाया
– आईफ़ोन और एंड्रॉयड फोन में घुसपैठ करने में सक्षम
– Whatsapp में एक खामी का पेगासस ने इस्तेमाल किया
– हानिकारक लिंक या मिस्ड Whatsapp वीडियो कॉल से ऐक्टिवेट
– स्पाईवेयर फ़ोन के बैकग्राउंड में चुपचाप सक्रिय
– फ़ोन के कॉन्टैक्ट, मैसेज, डेटा तक पूरी पहुंच
– माइक्रोफ़ोन और कैमरा भी ऑन कर सकता है
– Whatsapp ने अपनी खामी अब सुधार ली है
फोन में घुसता है स्पाईवेयर
– Whatsapp पर वीडियो कॉल आती है
– एक बार फ़ोन की घंटी बजते ही हमलावर हानिकारक कोड भेज देता है
– ये स्पाईवेयर फ़ोन में इंस्टॉल हो जाता है
– ऑपरेटिंग सिस्टम पर कब्ज़ा कर लेता है
– मैसेज, कॉल, पासवर्ड तक स्पाईवेयर की पहुंच
– माइक्रोफ़ोन और कैमरा तक भी स्पाईवेयर की पहुंच
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।