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October 14, 2025

अब कुतुब मीनार परिसर में पूजा के अधिकार को लेकर दावा, भगवान विष्णु और जैन देवताओं की ओर से कोर्ट में याचिका

कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाई गई कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद पर दावा करने वाली याचिका पर दिल्ली की साकेत जिला अदालत ने नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाई गई कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद पर दावा करने वाली याचिका पर दिल्ली की साकेत जिला अदालत ने नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। जिला कोर्ट ने सिविल जज के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर ये नोटिस जारी किया है। सिविल जज ने याचिका खारिज कर दी थी। एडीजे पूजा तलवार ने इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन की दलीलें सुनने के बाद केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक और दिल्ली सर्कल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
याचिका भगवान विष्णु और जैन देवी देवताओं की ओर से दाखिल की गई है, जिनके मंदिर तोड़े गए थे। इस मामले में जैन देवी देवताओं और भगवान विष्णु के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि मंदिरों को ध्वस्त किया गया था। लिहाजा इसको साबित करने की जरूरत नहीं है। पिछले 800 से ज्यादा सालों से हम पीड़ित हैं, अब पूजा का अधिकार मांग रहे हैं, जो कि हमारा मूल अधिकार है। एएसआइ (ASI) एक्ट 1958 को धारा 18 के मुताबिक संरक्षित स्मारकों में भी उपासना पूजा का अधिकार दिया जा सकता है।
दरअसल, जुलाई 2021 में साकेत सिविल जज कोर्ट ने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर कुतुब मीनार परिसर में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद पर दावा करने वाली याचिका खारिज कर दी थी। सिविल जज नेहा शर्मा ने ये आदेश दिया था। 24 दिसंबर 2020 को कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ये बताने का निर्देश दिया था कि भक्त की हैसियत से याचिका दाखिल करने का क्या औचित्य है। कोर्ट ने पूछा था कि ये बताइए कि क्या कोर्ट ट्रस्ट के गठन का आदेश दे सकता है?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा था कि इस मामले में पिछले 800 से ज्यादा सालों से हम पीड़ित हैं। अब पूजा का अधिकार मांग रहे हैं, जो कि हमारा मूल अधिकार है। जैन ने कहा था कि वहां पिछले 800 साल से नमाज नही पढ़ी गई है, मस्जिद के तौर पर इसका इस्तेमाल ही नहीं हुआ है।
जैन ने अपनी दलीलों के समर्थन में वहां मौजूद लौह स्तम्भ, भगवान विष्णु और दूसरे आराध्य देवी देवताओं की खण्डित मूर्तियों का हवाला दिया था। सुनवाई के दौरान वकील विष्णु जैन ने कहा था कि ये राष्ट्रीय शर्म का विषय है। देशी विदेशी तमाम लोग वहां पहुचते हैं, देखते हैं कि कैसे खण्डित मूर्तियां वहां पर हैं। हमारा मकसद अब वहां किसी विध्वंस के लिए कोर्ट को आश्वस्त करना नहीं है। हम सिर्फ अपना पूजा का अधिकार चाहते हैं।
तब जज नेहा शर्मा ने पूछा था कि आप पूजा का अधिकार मांग रहे हैं।अभी जगह ASI के कब्जे में है, तो एक दूसरे तरीके से आप जमीन पर कब्जा मांग रहे हैं। तब हरिशंकर जैन ने कहा था कि हम जमीन पर अपना मालिकाना हक नहीं मांग रहे हैं। बिना मालिकाना हक दिए भी पूजा का अधिकार दिया जा सकता है। यहां तक कि ASI एक्ट की धारा 19 के तहत पूजा के अधिकार की इजाजत दी जा सकती है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि आपके इस याचिका को दायर करने का क्या औचित्य है तब याचिकाकर्ता ने कहा था हमने देवता और भक्त दोनों ओर से याचिका दायर की है। एक भक्त के याचिका दायर करने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है। आप मेरे अधिकार को खारिज नहीं कर सकते हैं। याचिका पहले जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव, भगवान विष्णु की ओर से हरिशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री और जितेंद्र सिंह बिसेन ने दायर की है।
इसमें कहा गया है कि दिल्ली सल्तनत के पहले मुस्लिम शासक कुतुबद्दीन ऐबक ने 27 हिन्दू और जैन मंदिरों की जगह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बना दी। ऐबक मंदिरों को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर सका और मंदिरों के मलबे से ही मस्जिद का निर्माण किया गया। याचिका में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के उस संक्षिप्त इतिहास का जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 27 मंदिरों को गिराकर उनके ही मलबे से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किया गया है। याचिका में मांग की गई है कि इन 27 मंदिरों क पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया जाए और कुतुब मीनार परिसर में हिन्दू रीति-रिवाज से पूजा करने की इजाजत दी जाए।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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