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April 18, 2025

राजा का किला नहीं, फिर भी गांव का नाम पड़ा हवेली, अब हवेली भी हो रही खंडहर, जानिए इस गांव की कहानी

उत्तराखंड के टिहरी जिले में यहां ध्वंशावशेष (खंडबर) न तो राजस्थान, चितौड़ आदि के किसी दुर्ग का अवशेष है और ना ही किसी राजा- महाराजा के किला का है। न कोई राष्ट्रीय स्मारक है। यह टिहरी जनपद में स्थित पट्टी सकलाना के हवेली गांव का ध्वंसावशेष है। इसके नाम पर गांव का नाम "हवेली" पड़ा ।

उत्तराखंड के टिहरी जिले में यहां ध्वंशावशेष (खंडबर) न तो राजस्थान, चितौड़ आदि के किसी दुर्ग का अवशेष है और ना ही किसी राजा- महाराजा के किला का है। न कोई राष्ट्रीय स्मारक है। यह टिहरी जनपद में स्थित पट्टी सकलाना के हवेली गांव का ध्वंसावशेष है। इसके नाम पर गांव का नाम “हवेली” पड़ा ।
अखंड गढ़वाल राज्य में महाराजा प्रदीप शाह के समय दीवान पद पर आसीन तत्कालिक बलिराम सकलानी ने अपने रहने के लिए यह भवन बनाया था। वह शायद ही कभी वह इस भवन में रहे हों। आदिकाल से आज तक इस भवन पर उनके सकलानी बंधु ही निवास करते हैं ।
इस भवन का एक ऐतिहासिक महत्व है।अपने निर्माण के समय यह एक विशाल भवन था। दीवान बलिराम जी के इस भवन का निर्माण समय 1750 – 1760 के बीच रहा होगा। जैसा कि इतिहास के तथ्यों में वर्णित है। सकलाना सहित 64 गांव की मुआफिदारी प्राप्त होने के बाद बलिराम सकलानी ने अपने रहने के लिए यह भवन बनाया था।
पुजार गांव स्थित, मुआफीदारन कोर्ट के डेढ़ किलोमीटर पैदल, चार सारियों के बीच, दोनो ओर प्राकृतिक जल स्रोत और सॉन्ग नदी के किनारे उच्चस्थ भाग पर यह भवन बनवाया गया था। 52 कमरों का सुसज्जित तीन मंजिला यह भवन कभी अपने जमाने की शान रही होगी। भवन की नींव उरद दाल के चूर्ण से निर्मित बताई जाती है। 06 फिट मोटी नींव, 03 फिट मोटी दीवारें और 04 फिट के दरवाजे, बीच में तिबार चारों तरफ से खुला आंगन, पश्च भाग में झरोखे आदि आज भी गवाह है।
कहा जाता है 1803 में गढ़वाल भूकंप के समय इसकी एक मंजिल टूट कर नीचे गिर गई थी। दो मंजिला भवन अवशेष के रूप में ही सही, आज भी विद्यमान है। बताया जाता है कि इस भवन का निर्माण अधिकांश श्रमदान के रूप में किया गया। जिसको तत्कालिक समय में “प्रभु सेवा” का नाम दिया गया था। गढ़वाल में आज भी एक कहावत प्रचलित है, ” भौंसिंह की परोठी बल्ला जी की भेंट ” या “भौं सिंह की परोठी, बल्लाजी की सेवा / शिमान्यानन साब मेरी परोठी दिया”। (यानी भाव सिंह की भेंट है और बल्लाजी की सेवा में मैं उपस्थित हूं। मेरी परोठी (काठ का वर्तन) वापस कर दो)
श्रमदान या प्रभु सेवा के नाम पर अवश्य गरीब लोगों का शोषण हुआ होगा। इसीलिए इस भवन के निर्माण होने के बाद इसके निर्माण में श्रमदान करने वाले दयाराम जी का गिरने के कारण अकस्मात देहावसान हो गया। जिसके कारण स्वरूप ही अभिशिप्त मानकर दीवान साहब ने यह भवन त्याग दिया होगा। ऐसा बुजुर्ग लोग बताते हैं।
आचार्य नागदेव जी (नागू पुजारा) के केदारखंड आगमन और ब्रह्महोत्र मे अखंडित गढ़वाल के महाराजा महिपतशाह जी का आतिथ्य स्वीकारना, 64गांव की मुआफी पाना, इसके पश्चात पुजार गांव में निवास बनाना और कृतिधर जी के द्वारा जंघेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना करना, दीवान बलिराम जी के द्वारा पुजार गांव में मुआफीदारन कोर्ट की स्थापना करना तथा इस भवन का निर्माण कर हवेली नाम पड़ना किसी संयोग से कम नहीं है।
उत्तराखंड देश-विदेश के अनेक स्थानों पर जहां भी आज सकलानी लोग हैं, उनका मूल स्थान हवेली और पुजार गांव ही है। बाद के वर्षों में अनेक सकलानी युग पुरुषों ने छोटे-बड़े अलग-अलग गांव निवास स्थान बनाए। जैसे दीवान रामेश्वर सकलानी ने जैसे पडियार गांव आदि।
सकलानी जाति के लोगों का मूल धार्मिक स्थल शिवालय तथा पित्र कुड़ी आज की पुजार गांव में स्थित है । शिव की महत्ता तथा पूर्वजों की आस्था को समर्पित आज भी हवेली गांव में कोई मंदिर नहीं है पूजा अर्चना धार्मिक अनुष्ठान आदि के लिए आज भी पुजार गांव स्थित जंघेश्वर सदाशिव मंदिर में ही पूजा अर्चना की जाती है। वर्तमान में सकलानी लोगों के द्वारा मंदिर को भव्य रूप दिया जा रहा है।
हवेली गांव में आज भी करीब सौ परिवार निवास करते हैं। इस मूल भवन पर आज भी 12 या 13 परिवारों का मालिकाना हक है, जबकि 4 परिवार ही स्थाई रूप से निवास करते हैं। इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाना, मूल रूप देना तथा संरक्षित रखना अब नामुमकिन है। हां ! सार्वजनिक और सामूहिक कार्य आज भी इस चौक में आयोजित होते हैं।


लेखक का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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