सादगी, कर्मठता की मिसाल और लोकप्रिय नेता थे उत्तराखंड के पहले सीएम नित्यानंद स्वामी, जानिए…
09 नवम्बर 2000 को देवभूमि उत्तराचंल राज्य के प्रथम राज्यपाल सरदार सुरजीत सिंह बरनाला से प्रथम मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेकर नित्यानंद स्वामी ने उत्तराखंड राज्य की आधारभूत समस्याओं के साथ काम प्रारम्भ किया गया।
शपथग्रहण समारोह के साक्षी रहे तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार डॉ. मुरली मनोहर जोशी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के पश्चात भी स्वामी ने सरकारी आवास नहीं लिया। अपने पुराने दो कमरे के मकान रूपी अपनी कुटिया-5, पार्क रोड, देहरादून से ही उन्होंने मुख्यमंत्री के दायित्वों का निर्वहन किया।
नित्यांद स्वामी अपने पास आने वाले का नाम पता पूछे बिना ही उसकी समस्या का समाधान के लिए तत्तपर रहते थे। घर से जाते हुए उसे अपने द्वार से बाहर तक छोड़ने बाहर तक आना, देवभूमि उत्तराखंड राज्य गठन से अपने प्रथम मुख्यमंत्री के काल में करोड़ों के मुख्यमन्त्री आवास का प्रलोभन त्याग कर अपनी कुटिया 5, पार्क रोड में निवास करना, जैसी अनकुरणीय शैली आज लुप्त होने के कगार पर है।
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अपनी यात्रा के मार्ग में मिलने वाले प्रत्येक विकलांग,पुरुष, महिला, वृद्ध एवं अन्य कोई दूरस्थ क्षेत्र का नागरिक मिल जाने पर वाहन को रोक कर उसकी समस्याओं का तत्काल निदान करना जैसी असंख्य खूबियों के स्वामी का जीवनदर्शन आज उनकी अनुपस्थिति में शिष्टाचारी शून्यता की ओर संकेत कर रहा है।
उनके आदर्श बेदाग ईमानदार व्यक्तित्व की छाप को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने देवभूमि उत्तरांचल राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद पर प्रतिष्ठापित करवाकर नये इतिहास की संरचना की। जहां उन्होने मात्र दो माह में ही 26 जनवरी 2001 को राज्य आन्दोलन में हुए शहीदों के परिवारों से 23 आश्रितों को सरकारी नौकरियों के नियुक्ति पत्र प्रदान करवाये। मात्र छः माह के कार्यकाल में ही राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिलवाया।
उन्होने मात्र 11 माह 20 दिनों के कार्यकाल मे पहले मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उन्होने 15 नये डिग्री कालेजों की स्थापना, 50 से अधिक स्कूलों का उच्चीकरण, राज्य के पांच हजार से अधिक बेरोजगारों को शिक्षा बन्धु एवं शिक्षा मित्र बनाकर रोजगार प्रदान किया।
हजारों बेरोजगारों एवं पूर्व सैनिकों को पुलिस सेवा में बिना किसी भ्रष्टाचार के रोजगार प्रदान करवाया। दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों से अपना कार्य प्रारम्म करनेवाले नित्यानंद स्वामी ने पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थय, शिक्षा एवं पेयजल के कार्यो पर अधिक जोर देकर सकारात्मक वातावरण तैयार किया।
मुख्यमंत्री के रुप में साप्ताहिक जनतादर्शन के समय वे कई घण्टों तक स्वयं बैठकर जनसमस्याओं का निवारण करते थे। राज्य के अधिकारियों को जनससमस्या के निवारणार्थ सीधे संवाद का सन्देश देते थे। मुख्यमंत्री कार्यकाल में प्रतिदिन 18 घण्टे तक काम करने वाले नित्यानन्द स्वामी मुख्यमंत्री आवास छोडकर अपनी 5, पार्क रोड की अपनी कुटिया पर ही रात बिताते थे।
अत्यन्त सादगी से जीवनयापन करने वाले नित्यानन्द स्वामी जी ने किसी भी प्रकार से अपने प्रदेश को माफियामुक्त प्रदेश बनाने में कोई कसर नही छोडी। विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए नित्यानन्द स्वामी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के आग्रह पर अनुषासित सिपाही की भांति उत्तराचंल राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद से 29 अक्टूबर 2001 को उ त्यागपत्र देकर अनुशासन की भावना की मिसाल कायम की।
देवभूमि उत्तराखंड की जनता जानती है कि मात्र 11 माह 20 दिन के नित्यानंद स्वामीजी कार्यकाल में राज्य में विकास की गंगा बहने लगी थी। चारों ओर भाईचारे एवं विकास को समर्पित वातावरण बन गया था। समाजसेवा के क्षेत्र में नित्यानन्द स्वामी ने कभी हार नही मानी। दुगनी ऊर्जा से उन्होने जनसमस्याओं के निवारण का बीडा उठाया। इसी श्रृंखला में वर्ष 2006 में कांग्रेसनीत् सरकार द्वारा देहरादून में 30 गांवों की भूमि का अधिग्रहण किये जाने के विरोध में नित्यानन्द स्वामी जी अपनी 82 वर्ष की आयु मे 54 घण्टे का आमरण अनशन कर कांग्रेस सरकार को विवश कर काश्तकारों, ग्रामीणों, टिहरी के विस्थापितों तथा पूर्व सैनिकों की भूमि को अधिग्रहण मुक्त करवाकर विजयश्री हासिल की।
लेखक का परिचय
योगेश अग्रवाल
राजपुर, देहरादून, उत्तराखंड
सचिव- श्री नित्यानन्द स्वामीजनसेवार्थ समिति
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।