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February 8, 2025

चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने से पहले नासा को मिली कामयाबी, चंद्रमा की मिट्टी में खोजी ऑक्सीजन, पूरा होगा इंसानी बस्ती का सपना

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपने आर्टमिस मिशन के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी में है। इस मिशन के जरिए नासा का असली मकसद चंद्रमा की सतह पर अपनी दीर्घकालिक मौजूदगी बनाए रखना है। इस मकसद को वास्तविकता बनाए रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी ऑक्सीजन का निर्माण है। ऑक्सीजन का इस्तेमाल सांस लेने के अलावा ट्रांसपोर्टेशन के लिए प्रोपलैंट के रूप में भी किया जा सकता है। इससे चंद्रमा पर पहुंचने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे समय तक रहने और आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चंद्रमा पर ऑक्सीजन नहीं है, इसलिए वैज्ञानिक वहां अपने मिशन को लंबे समय तक ठहरने की व्यवस्था नहीं कर पा रहे। अगर वहीं पर ऑक्सीजन उपलब्ध हो जाए तो अंतरिक्ष के कई रहस्यों को वहीं पर देर तक ठहर कर खोला जा सकता है। वह व्यवहारिक रूप से पृथ्वी के एक सेंटर के तौर पर कार्य सकता है। अब जाकर वैज्ञानिकों को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वैज्ञानिकों ने खोज डाली मिट्टी से ऑक्सीजन 
इस बीच हाल में ही एक परीक्षण के दौरान ह्यूस्टन में नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने सिमुलेटेड चंद्रमा की मिट्टी से सफलतापूर्वक ऑक्सीजन निकाली है। चंद्रमा की मिट्टी का अर्थ सतह को ढकने वाली सूक्ष्म सामग्री से है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब चंद्रमा की मिट्टी से ऑक्सीजन को एक निर्यात वातावरण में निकाला गया है। इस ऑक्सीजन की मात्रा इतनी है कि इससे चंद्रमा की सतह पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों की एक दिन की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा वहां मौजूद दूसरे संसाधनों के उपयोग में भी मदद कर सकता है। इसे इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन के नाम से जाना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

15 फुट के चेंबर में बनाया चंद्रमा जैसा माहौल
नासा की कार्बोथर्मल रिडक्शन डिमॉन्स्ट्रेशन (सीएआरडी) टीम ने डर्टी थर्मल वैक्यूम चैंबर नाम के 15 फुट गोलाई वाले एक स्पेशल गोलाकार चेंबर का इस्तेमाल करके चंद्रमा पर पाए जाने वाली परिस्थितियों का निर्माण किया। इस डर्टी चैंबर कहा जाता है, क्योंकि इसके अंदर अशुद्ध नमूनों का परीक्षण किया जाता सकता है। इसके अंदर का वातावरण चंद्रमा के जैसे होता है। टीम ने सोलर एनर्जी कंसनट्रेटर से गर्मी को सिमुलेट करने के लिए हाई पावर लेजर का इस्तेमाल किया और नासा के कोलोराडो के सिएरा स्पेस कार्पोरेशन द्वारा विकसित कार्बोथर्मल रिएक्टर के भीतर चंद्रमा की मिट्टी को पिघलाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जानिए क्या होता है कार्बोथर्मल रिएक्टर
कार्बोथर्मल रिएक्टर ऐसी जगह होती है जहां ऑक्सीजन को गर्म करने और निकालने की प्रक्रिया की जाती है। उच्च तापमान का उपयोग करके कार्बन मोनोऑक्साइड या डाइऑक्साइड का उत्पादन करके सौर पैनलों और स्टील जैसी वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए पृथ्वी पर दशकों से कार्बोथर्मल रिडक्शन का उपयोग किया जाता है। मिट्टी के गर्म होने के बाद, टीम ने मास स्पेक्ट्रोमीटर ऑब्जर्विंग लूनर ऑपरेशंस (MSolo) नामक उपकरण का उपयोग करके कार्बन मोनोऑक्साइड का पता लगाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चांद पर ऑक्सीजन की आवश्यकता
अगर चांद की मिट्टी से ऑक्सीजन निकाला जा सकता है तो वहां इंसानी बस्तियां भी बसाई जा सकती हैं। नासा के वैज्ञानिकों ने इसी दिशा में काम को आगे बढ़ाया है। अगर चांद पर ही ऑक्सीजन की व्यवस्था हो जाती है तो वहां इंसानी जीवन तो संभव हो ही सकता है, उस ऑक्सीजन का इस्तेमाल वहां से आगे की दुनिया में गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए प्रणोदक के रूप में भी किया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

चांद पर भेजा जाएगा यह उपकरण
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भेजे जाने वाले अगले दो मिशनों के साथ वैज्ञानिक इसी तरह का उपकरण भेजेंगे। यह दो मिशन हैं- 2023 में पोलर रिसोर्सेज आइस माइनिंग एक्सपेरिमेंट-1 और नवंबर 2024 में नासा के वोलाटाइल्स इंवेस्टिगेटिंग पोलर एक्सप्लोरेशन रोवर (VIPER)। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह प्रोटोटाइप स्पेस में परीक्षण के लिए तैयार है। नासा विभिन्न मिशनों के माध्यम से अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने की योजना पर काम कर रहा है। उसका लक्ष्य है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर ठहरने की व्यवस्था हो सके। इस दिशा में वहां ऑक्सीजन की उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है और ताजा रिसर्च इस दिशा में बड़ी उम्मीदें जगा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मिट्टी की वजह से कई गुना ज्यादा ऑक्सीजन निकलने की संभावना
नासा के सीनियर इंजीनियर और जॉनसन में कार्ड प्रोजेक्ट मैनेजर ऐरोन पाज ने कहा, ‘इस तकनीक में चांद की सतह पर सालाना अपने खुद के वजन से कई गुना ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करने की क्षमता है। इससे वहां इंसानी मौजूदगी सुनिश्चित हो सकेगी और चांद की अर्थव्यवस्था भी चलेगी।’
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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