मां अनसूया मेले में भी कोरोना का असर, इस बार नहीं मिली निसंतान दंपती को रात्रि जागरण की अनुमति, जानिए महत्ता
उत्तराखंड में चमोली जिले के मंडल से करीब पांच किलोमीटर की पैदल खड़ी चढ़ाई के बाद स्थित मां अनसूया मंदिर में दो दिवसीय मेले की विधि विधान और पूजा पाठ के साथ सोमवार को शुरूआत हो गई है। संतानदायिनी शक्ति शिरोमणि माता अनसूया मंदिर में दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर होने वाले इस मेले में छह देवियों की डोलियां भी मां अनसूया के दरवार पहुंची। मांअनसूया मंदिर में दत्तात्रेय जयंती पर सम्मपूर्ण भारत से हर वर्ष निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुंचते है। इस बार कोविड के चलते संतान कामना के लिए बरोहियों (निसंतान दंपति) को मंदिर में रात्रि जागरण की अनुमति नही है। वहीं सीमित संख्या में ही तीर्थ यात्रियों को जाने के अनुमति दी गई है। अनसूया मंदिर पूरे सालभर खुला रहता है और भक्तजन अन्य किसी भी दिन यहां अपनी तपस्या कर मनौती मांग सकते है। जिला प्रशासन ने मेले के दौरान पूरे पैदल मार्ग पर भी सुरक्षा के पुख्ता इंतेजाम किए है।
मान्यता
विदित हो कि पौराणिक काल से दत्तात्रेय जंयती पर हर वर्ष सती माता अनसूया में दो दिवसीय मेला लगता है। मां अनुसूया मेले में निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुंचते है। मान्यता है कि मां के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। मां सबकी झोली भरती है। इसलिए निसंतान दंपत्ति पूरी रात जागकर मां की पूजा अर्चना कर करते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है। इसी मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर माता अनसूया ने अपने तप के बल पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था।
बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुनः उनका रूप प्रदान किया और फिर यहीं तीन मुख वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसी के बाद से यहां संतान की कामना को लेकर लोग आते हैं। यहां दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है। बताते है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मां अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही थी, तब उन्होंने तीनों को शिशु बना दिया। यही त्रिरूप दत्तात्रेय भगवान बने। उनकी जयंती पर यहां मेला और पूजा अर्चना होती है।
अत्रि ऋषि और उनकी पत्नी अनुसूया ने की थी तपस्या
किंवदन्ती है कि अत्रि ऋषि एवं उनकी पत्नी अनुसूया ने यहीं तपस्या की थी। यह तीर्थ स्थल अनुसूया आश्रम के नाम से अधिक माना जाता है। इस तीर्थ स्थल को महिमा मंडित करने वाली विलक्षण दैवी शक्तियां एवम् यत्र-तत्र बिखरे अद्वितीय परिदृश्य पर्यटक को अचम्भित करने वाले है। जब हिमानी क्षेत्र में स्थित सभी तीर्थों के कपाट असह्याय ठंड के कारण बन्द हो जाते हैं, तब अनुसूया आश्रम में दिसंबर माह में पूर्णमासी को दत्तात्रेय जयन्ती पर विशाल मेला लगता है। माता अनुसूया में अपार आस्था एवम् विश्वास का यह अनन्यतम उदाहरण है।
पेट के बल चलकर पहुंचते हैं गुफा तक
आश्चर्यचकित करने वाले अनेक विलक्षण दृश्यों का अवलोकन इस यात्रा का महत्त्वपूर्ण पहलू है। आश्रम से दो किलोमीटर की दूरी पर चट्टान पर प्राकृतिक गुफा है जो विकटता का पर्याय है। यह अत्रि मुनि आश्रम के नाम से जानी जाती है। गुफा मार्ग की विकटता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पेट के बल सरककर लोहे की सांकलों के सहारे ही गुफा तक पहुँचा जा सकता है। इससे भी विलक्षण है जल प्रपात की परिक्रमा का दृश्य, जो शायद ही अन्यत्र कहीं देखने को मिले। भयंकर गर्जना के साथ गिरता विशाल झरना और उसके पृष्ठ में सीधी खड़ी चट्टान पर बना संकरा परिक्रमा पथ। जो देखने में रोमांचित करने वाला है। रंग बिरंगे फूलों से सुसज्जित पथ को देखने से ऐसा जान पड़ता है कि फूलों से गुथित पुष्पाहार हो।
अनुसूया आश्रम में माता अनुसूया का भव्य एंव प्राचीन मन्दिर है, जो एक हजार वर्ष पूराना है। गर्भगृह में माता अनुसूया की भव्य प्रस्तर मूर्ति है। आश्रम के चारों ओर की कठिन भौगोलिक बनावट भले ही सुगम्य न हो पर अब पूरे वर्ष यहाँ तीर्थ यात्रियों का आवागमन जारी रहता है। चमोली मुख्यालय गोपेश्वर से बारह किलोमीटर बस यात्रा और उसके पश्चात् पाँच किलोमीटर पैदल मार्ग से यहाँ पहुँचा जा सकता है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।