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February 24, 2025

राजधानी में पानी की तरह लुटा रहे पैसा, सरकार को भी शुद्ध पानी पर नहीं यकीन, मानवाधिकार आयोग पहुंचा पानी

उत्तराखंड की राजधानी में पानी की गुणवत्ता को लेकर हर माह पानी की तरह पैसा तो बहाया जा रहा है, लेकिन इस पानी में यदि आप कभी दाल तक नहीं गला सकते हो।

उत्तराखंड की राजधानी में देहरादून में पानी की गुणवत्ता को लेकर हर माह पानी की तरह पैसा तो बहाया जा रहा है, लेकिन इस पानी में यदि आप कभी दाल तक नहीं गला सकते हो। यानी की पानी की हार्डनेस इतनी ज्यादा है कि पानी साफ करने के उपकरण एन आरओ भी एक दो साल बाद जवाब देने लगते हैं। यही नहीं, इस पानी में चाय बनाओ तो वो फट जाएगी। दाल गलाओ तो घंटों तक नहीं लगती। ऐसे में बगैर आरओ के चाय बनाना और दाल गलाना भी मुश्किल है। अब बात करते हैं पानी के शुद्धिकरण की। जल संस्थान के उत्तरी जोन में दो फिल्टरेशन प्लांट शहनशाही आश्रम और पुरकुल गांव में स्थित हैं। इन दोनों प्लांट में पानी की गुणवत्ता पर हर माह 23 लाख से ज्यादा की राशि पानी की तरह बहाई जा रही है। नतीजा वही ढाक के तीन पात है।
नहीं है पानी की गुणवत्ता पर भरोसा
सवाल ये है कि पानी की गुणवत्ता पर न तो सरकार को ही विश्वास है और न ही किसी सरकारी मशीनरी पर। इसे एक आसान से उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि उत्तराखंड में जल संस्थान शुद्ध पानी की आपूर्ति कर रहा है तो फिर सीएम आवास, राजभवन, मुख्य सचिव आवास, सचिवालय, विधानसभा सहित सारे मंत्रियों और वीआइपी के घरों में वाटर प्यूरीफाई का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। अब इस उदाहरण से ही साफ है कि किसी को भी शुद्ध पानी पर भरोसा नहीं है। यानी सरकार आमजन को साफ पानी की आपूर्ति नहीं कर पा रही है।

गुणवत्ता का मामला मानवाधिकार आयोग पहुंचा
ऐसे में राजधानी दून में पानी की गुणवत्ता पर विवाद थम नहीं रहा है। कई साल से दून में पानी की गुणवत्ता की जांच कर रही स्पेक्स संस्था ने पिछली रिपोर्ट में भी पेयजल आपूर्ति की पोल खोली थी। वहीं, स्पेक्स की रिपोर्ट को हमेशा की तरह खारिज करने वाले जल संस्थान इस दफा भी अपने रुख पर कायम है। हालांकि, इस बार आरटीआइ और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता भूपेंद्र कुमार प्रकरण को लेकर मानवाधिकार आयोग के पास पहुंचे तो कहानी में नया मोड़ आ गया। आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित पेयजल गुणवत्ता पर अब आयोग ने स्थिति स्पष्ट कराने को कहा है।
आयोग सदस्य अखिलेश चंद्र शर्मा ने स्पेक्स के सचिव डा. बृजमोहन शर्मा को नोटिस जारी कर पेयजल गुणवत्ता पर विस्तार से पक्ष रखने को कहा है। इससे पहले आरटीआइ कार्यकर्त्ता भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर मानवाधिकार आयोग ने जल संस्थान को नोटिस जारी किया था। नोटिस के जवाब में जल संस्थान ने भी पानी की गुणवत्ता की जांच कराई। विभाग की तरफ से दाखिल जवाब में कहा गया कि स्पेक्स ने 53 स्थानों पर क्लोरीन की मात्रा मानक से कहीं अधिक बताई है। सच्चाई यह है कि विभागीय परीक्षण में क्लोरीन की मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों के अनुरूप ही है। इसके अलावा विभाग की तरफ से कराए गए परीक्षण में पानी में फिकल कालीफार्म व अन्य हानिकारक तत्व भी नहीं पाए गए।
प्रकरण की सुनवाई करते हुए आयोग ने कहा कि यह प्रकरण आमजन की सेहत से जुड़ा है और अत्यंत गंभीर है। लिहाज, पेयजल गुणवत्ता को आरोप-प्रत्यारोप से बाहर निकालकर स्पष्ट कराना जरूरी है। आयोग ने कहा कि सच्चाई जानने के लिए स्पेक्स सचिव डा. शर्मा के पक्ष को भी जानना जरूरी है, ताकि स्पष्ट हो सके कि जो जांच वह कर रहे हैं वह किस तरह जल संस्थान की जांच से भिन्न है। डा. बृजमोहन शर्मा को पक्ष रखने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। प्रकरण में अगली सुनवाई अब 24 फरवरी 2022 को होगी।
इन स्रोत से होती है सप्लाई
यहां ये बताना जरूरी है कि देहरादून के उत्तरी जोन में पानी की आपूर्ति ग्रेविटी के आधार पर होती है। यानी की पानी की सप्लाई में बिजली पंप की जरूरत तक नहीं पड़ती है। सिर्फ बीजापुर कैनाल से वाटरवर्क्स तक पानी पहुंचाने के लिए पंप लगाए गए हैं। बाकी बादल परियोजना, ग्लोगी परियोजना, मासीपाल सहित अन्य स्रोत से पानी पहुंचाने के लिए ग्रेविटी के माध्यम है। इनमें उत्तरी जोन में ग्लोगी परियोजना से पानी की आपूर्ति के लिए पुरकुल गांव में फिल्टरेशन प्लांट है। वहीं, दूसरा फिल्टरेशन प्लांट शहनशाही आश्रम में है। इसमें मासीफाल स्रोत से पानी की सप्लाई की जाती है। इन दोनों प्लांट से एक बड़े क्षेत्र की आबादी को पानी की आपूर्ति होती है। इसके अलावा शहर में नलकूपों से भी छोटे छोटे क्षेत्र में पानी की आपूर्ति होती है।
यहां के लोगों तक पहुंचता है पानी
पुरकुल गांव के प्लांट से पुरकुल गांव, स्लाण गांव, चंदरोटी, मालसी, कोठालवाली, सिनौला गांव, बड़कुली, अनारवाला, गुच्चूपानी, ब्राह्मण गांव, विजयपुर, हाथी बड़कला, मनिहारवाला, उतड़ी गांव, जाखन आदि क्षेत्र में पानी की सप्लाई की जा रही है। वहीं, शहनशाही आश्रम के प्लांट से राजपुर, जाखन, धोरणगांव, कुठालगांव, सालावाला, आरटीओ, आवास विकास कालोनी, कैनाल रोड जाखन, बारीघाट, बॉर्डीगाड, साकेत कालोनी, चंद्रलोक कालोनी और आर्यनगर के कुछ इलाकों में जलापूर्ति की जाती है।
इस तरह बहाया जा रहा है पैसा
सूत्रों के मुताबिक पानी की गुणवत्ता के लिए दोनों फिल्टरेशन प्लांट की जिम्मेदारी निजी ठेकेदारों के हाथ सौंपी गई है। पुरकुल गांव में करीब 15 लाख और शहनशाही आश्रम में करीब साढ़े आठ लाख रुपये हर माह पानी के शुद्धिकरण के लिए खर्च किए जा रहे हैं। इसमें क्लोरीनीकरण से लेकर मजदूरों का वेतन ठेकेदारों के जिम्मे है। इसके बावजूद पानी की कठोरता पर जल संस्थान ने आज तक कोई काम नहीं किया है। पानी इतना हार्ड है कि यदि इसे आरओ (वाटर प्यूरीफाई) के बगैर ही सीधे इस्तेमाल में लाया गया तो चाय तक नहीं बन पाती। यही नहीं, घंटों तक कूकर में चढ़ाने के बाद भी दाल नहीं गलती है। हल्की बारिश हो तो मिट्टीयुक्त पानी की आपूर्ति होने लगती है। सूत्र तो ये बताते हैं कि पानी की शुद्धिकरण के नाम पर हर प्लांट में पांच से सात लेबर लगी है। वहीं, मात्र कुछ बोरी क्लोरीन और फिटकरी पर ही हर माह एक प्लांट में 15 लाख और दूसरे प्लांट में साढ़े आठ लाख रुपये का खर्च दिखाया जा रहा है।

क्लोरीन का इस्तेमाल
समय समय पर सामाजिक संस्था स्पेक्स की ओर से लिए गए पानी के नमूनों में देहरादून में शुद्ध पानी पर सवाल उठे हैं। कहीं, क्लोरीन ज्यादा है तो कहीं कम है। स्पेक्स के सचिव डॉ. बृजमोहन शर्मा का कहना है कि क्लोरीन पानी में तब मिलाई जाती है जब पानी में फिकल कॉलीफार्म होता है। ज्यादा क्लोरीन से कैंसर तक का खतरा होता है। इसी तरह फिटकरी भी पानी में सोलिड्स को कम करने के लिए मिलाई जाती है। ये टीडीएस को सेटल करती है। यदि इसका अनुपात भी सही नहीं होगा तो ये मानव के शरीर के लिए घातक है।
क्यों नहीं लगाते हार्डनेस कम करने के संयत्र
आजकल तो हर तरह के उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं। ऐसे में पानी की हार्डनेस को कम करने के लिए उपकरणों का इस्तेमाल तक नहीं किया जाता है। वैसे देहरादून के पानी में एक प्राकृतिक गुण ये भी है कि यदि उसे दस से 12 घंटे तक स्थिर रख दिया जाए तो उसकी हार्डनेस 60 से 70 फीसद तक कम हो जाती है। इसीलिए पहले वाटर फिल्टर प्लांट में पानी स्टोर किया जाता था। उसे बाद में सप्लाई के लिए छोड़ा जाता था। अब स्टोरेज की क्षमता कम है। ऐसे में पानी को सीधे ही सप्लाई कर दिया जाता है। इससे पानी में हार्डनेस के कारण न तो दाल गलती है और न ही चाय ही बन सकती है।
न जनता का भला न लेबर का
शुद्ध पानी नहीं मिलने से जहां जनता का भला नहीं हो रहा है। वहीं, ठेकेदारों ने भी कोरोना का बहाना बनाकर लेबर की ध्याड़ी तक नहीं बढ़ाई है। हालांकि सरकारी काम मिल रहा है। सरकार से पूरी पेमेंट हो रही है। इसके बावजूद जल संस्थान और जल निगम के कई ठेकेदार ऐसे हैं, जिनके पास काम करने वाले श्रमिक दुखी हैं। उनका कहना है कि पिछले दो साल से उनकी सेलरी तक में इजाफा नहीं किया गया है।
कैसे बढ़ेगी प्रतिरोधक क्षमता
कोरोना के पहली और दूसरी लहर में लोगों से खानापान में विशेष ध्यान देने को कहा गया था। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का तर्क रहा कि यदि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी तो वे इस वायरस ले लड़ सकेंगे। अब यदि पानी ही शुद्ध नहीं मिलेगा तो कैसे व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। ये सवाल भी लाजमी है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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