मोबाइल की घंटी, रांग नंबर में जमा करा दिया मोबाइल का बिल, फिर ऐसे चला पता
अल सुबह टेलीफोन की घंटी न ही बजे तो अच्छा है। मैं सुबह के समय टेलीफोन रिसीव करने से भी घबराता हूं। कहीं कोई दुखद घटना की सूचना न मिल जाए।

बात करीब दस साल पहले की है। मेरे घर के फोन के नंबर में अंत में 2040 था। अक्सर कई बार मेरे को 4020 नंबर वाले महाशय के लिए किया गया फोन आ जाता है। जल्दबाजी में लोग 4020 की जगह 2040 मिला देते हैं। मोबाइल फोन पर तो ऐसी समस्या ज्यादा ही है। मेरे एक मित्र देहरादून में अपना समाचार पत्र निकालते हैं। उनके और मेरे मोबाइल नंबर में सिर्फ एक नंबर का फर्क है। अक्सर उनके लिए फोन मेरे नंबर पर आ जाते हैं। इसी तरह मेरे लिए आने वाली कॉल कई बार उनके पास भी चली जाती होगी।
रांग नंबर लगाकर फोन आना तो चलो जल्दबाजी की भूल है, लेकिन कई बार इसी नंबरों की गलतफहमी में लोगों को नुकसान भी झेलना पड़ जाता है। मुझे एक दिन मोबाइल में किसी सज्जन का फोन आया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैने अपना मोबाइल का बिल जमा कर दिया। मैं उस समय किसी काम में व्यस्त था। मन ही मन झुंझला रहा था कि अनजान व्यक्ति से बात करने वाला किस तरह के सवाल पूछ रहा है।
मैने हां में जवाब दिया। इस पर सज्जन ने फिर पूछा कि कितने का बिल था। कब जमा किया। मुझे और झुंझलाहट हुई, लेकिन मैने सज्जन व्यक्ति पर खीज नहीं उतारी। शालीनता से उन्हें सभी जानकारी दी। मैं सोच रहा था कि किसी फर्जी कंपनी का प्रतिनिधि होगा, जो धीरे-धीरे मुझे लालच देकर अपने जाल में फंसा रहा है। ऐसी कॉल पर ईनाम के लालच में तो अक्सर लोग पड़ जाते हैं। फिर बड़ी राशि तक गवां देते हैं।
उक्त सज्जन ने बताया कि उनके और मेरे नंबर में सिर्फ एक नंबर का फर्क है। उन्होंने अपना पता भी बताया। बाद में झेंपते-झेंपते बताया कि उनके नौकर ने गलतफहमी में उनकी बजाय मेरे नंबर पर मोबाइल का बिल जमा कर दिया। मैने सज्जन से कहा कि बिल की रसीद दिखा कर मुझसे बिल की राशि ले जा सकते हो। वह सज्जन मुझसे मिले। उनसे परिचय हुआ। तब पता चला कि उनके पिताजी को मैं कई साल पहले से जानता हूं। वे नेता भी थे और एक इंजीनियर भी रहे। उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा देने का उनके पिता का योगदान रहा। खैर इस घटना के कई साल हो गए। इस गलतफहमी की वजह से उनका मुझसे परिचय हुआ।
भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।