मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने फिर किया किसानों का समर्थन, बोले-आसमान पर सरकार, नहीं सुना तो सत्ता में वापसी नहीं
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक फिर तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले किसानों के साथ खड़े नजर आए। उन्होंने केंद्र में अपनी ही सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि किसानों की नहीं सुनी गई तो फिर यह सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आएगी।
मलिक ने कहा कि जिनकी सरकारें होती हैं उनका मिजाज थोड़ा आसमान में पहुंच जाता है। उन्हें यह दिखता नहीं है कि इनकी तकलीफ कितनी है, लेकिन वक्त आता है, जब उन्हें देखना भी पड़ता है और सुनना भी पड़ता है। अगर किसानों की नहीं मानी गई तो यह सरकार दोबारा नहीं आएगी। मलिक ने किसानों से जुडे़ एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि किसानों के साथ ज्यादती हो रही है। वो 10 महीने से पड़े हैं। उन्होंने घर बार छोड़ रखा है। फसल बुवाई का समय है और वे अब भी दिल्ली में पड़े हैं तो उनकी सुनवाई करनी चाहिए सरकार को।
राज्यपाल का पद छोड़कर उनके साथ खड़ा होने के लिये अगर उन्हें कहा जाये तो इस पर मलिक ने कहा कि मैं तो खड़ा ही हूं उनके साथ। पद छोड़ने की उसमें कोई जरूरत नहीं है, जब जरूरत पडे़गी तो वो भी छोड़ दूंगा। मैं उनके साथ हूं। उनके लिये मैं प्रधानमंत्री, गृह मंत्री सबसे झगड़ा कर चुका हूं। सबको कह चुका हूं कि यह गलत कर रहे हो यह मत करो।
उन्होंने कहा कि वो प्रधानमंत्री से मिलकर अपने विचार बताएंगे। चाहे वह कश्मीर को लेकर हो या फिर किसी और चीज पर। यह पूछे जाने पर कि आखिर अब तक सरकार किसानों को क्यों नहीं मना पाई है। मलिक ने कहा कि-देखो, सरकारें जितनी भी होती हैं उनका मिजाज थोड़ा आसमान में हो जाता है। उन्हें यह दिखता नहीं है कि इनकी तकलीफ कितनी है, लेकिन वक्त आता है फिर उनको देखना भी पड़ता है सुनना भी पड़ता है। यही सरकार का होना है। अगर किसानों की मांगें नही मानी गईं तो यह सरकार दोबारा नहीं आएगी।
उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव में किसान आंदोलन का प्रभाव पड़ेगा? इसके जवाब में मलिक ने कहा यह तो यूपी वाले बताएं कि प्रभाव पड़ेगा कि नहीं। मैं तो मेरठ का हूं मेरे यहां तो कोई भाजपा का नेता किसी गांव में घुस नहीं सकता है। मेरठ, बागपत, मुज्जफरनगर में घुस नहीं सकते है।
किसान और सरकार के बीच मध्यस्थता के सवाल पर मलिक ने कहा कि कोई मुझे कहे तो कि आप मध्यस्थ हैं। मैं तो कर दूंगा मध्यस्थता, लेकिन किसानों ने तो कह दिया कि हम मानने को तैयार हैं सरकार भी कह दे। एक चीज है जिससे हल हो जाएगा। आप न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी कर दो। तीनों कानूनों को लेकर मैं किसानों को मनवा लूंगा कि ये तीनों कानून लंबित हैं छोड़ दो इसको अब।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।