तालिबान की अंतरिम सरकार में कई आतंकी चेहरे, नई सरकार ने जारी किया घोषणा पत्र, अमेरिका ने कहा-चीन भी कर लेगा समझौता
अफगानिस्तान पर कब्जा करने के करीब तीन सप्ताह बाद तालिबान ने मंगलवार को अंतरिम' सरकार का ऐलान कर दिया। मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद इस सरकार के प्रमुख होंगे।

तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्री बनाया गया है, जबकि हक्कानी नेटवर्क के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी का नाम आंतरिक मामलों के मंत्री के रूप में तय किया गया है। काबुल में गवर्नमेंट इंफॉर्मेशन एंड मीडिया सेंटर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए मुजाहिद ने बताया कि यह कैबिनेट पूरी नहीं है। अभी यह कार्यकारी ही है। हम लोग देश के दूसरे हिस्सों से भी लोगों को लेने की कोशिश करेंगे।
गौरतलब है कि तालिबान ने करीब तीन सप्ताह पहले अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 31 अगस्त तक अमेरिकी फौज देश छोड़कर चली गई थी। जिसके बाद से अंदाजा लगाया जा रहा था कि तालिबान जल्द ही सरकार के गठन का ऐलान करेगा। लेकिन कई बार स्थगित हो गया था। अब अंतरिम सरकार का गठन कर दिया गया। इसमें कई ऐसे चेहरे हैं, जिनका नाम आतंकियों के रूप में जाना जाता है।
मोहम्मद हसन अखुंद, कार्यवाहक प्रधान मंत्री
मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद तालिबान के एक दिग्गज हैं, जो संगठन के संस्थापक और इसके पहले सर्वोच्च नेता मुल्ला उमर के करीबी सहयोगी और राजनीतिक सलाहकार थे। समूह की सर्वोच्च परिषद के सदस्य अखुंद ने तालिबान के पिछले शासन में उप विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उन्हें तालिबान के “कार्यों और गतिविधियों” से जुड़ी प्रतिबंध सूची में रखा। उन्होंने अफगानिस्तान के प्रमुख प्रांत कांधार के गवर्नर के रूप में भी कार्य किया. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अखुंद “सबसे प्रभावी तालिबान कमांडरों में से एक” हैं।
मुल्ला बरादार, सह-संस्थापक
अब्दुल गनी बरादर को हसन के डिप्टी के रूप में नामित किया गया है। उसका पालन-पोषण कंधार में हुआ था। जो कि तालिबान आंदोलन का जन्मस्थान भी रहा। अधिकांश अफ़गानों की तरह बरादर का जीवन भी 1970 के दशक के अंत में देश पर सोवियत आक्रमण की वजह से हमेशा के लिए बदल गया। जिससे वह एक विद्रोही बन गए। माना जाता है कि उसने मुल्ला उमर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थी। दोनों ने 1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद गृहयुद्ध की अराजकता और भ्रष्टाचार के दौरान तालिबान आंदोलन की आधारशिला रखी थी। 2001 में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं द्वारा तालिबान शासन को गिराए जाने के बाद माना जाता है कि बरादर विद्रोहियों के एक छोटे समूह में शामिल थे, जिन्होंने संभावित सौदे के साथ अंतरिम नेता हामिद करजई से संपर्क किया था। जिससे आतंकवादी नए प्रशासन को मान्यता दे सकते थे। 2010 में पाकिस्तान में गिरफ्तार बरादर को तब तक हिरासत में रखा गया जब तक कि अमेरिका के दबाव में उसे 2018 में रिहा नहीं कर दिया गया और कतर में स्थानांतरित कर दिया गया। यहीं पर उन्हें तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख नियुक्त किया गया और अमेरिका के साथ सैन्य वापसी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
सिराजुद्दीन हक्कानी
सोवियत विरोधी जिहाद के एक प्रसिद्ध कमांडर के बेटे, सिराजुद्दीन हक्कानी का कद तालिबान के उप नेता और शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख के रूप और ऊंचा हो गया है। वह नई सरकार में गृह मंत्री होंगे। हक्कानी नेटवर्क को अमेरिकी ने आतंकवादी समूह घोषित कर रखा है। इसे लंबे समय से अफगानिस्तान में सबसे खतरनाक आतंकवादी गुटों में से एक के रूप में देखा जाता रहा है। यह आत्मघाती हमलावरों के इस्तेमाल के लिए बदनाम है। माना जाता है कि इसने काबुल में पिछले कुछ वर्षों में सबसे हाई-प्रोफाइल हमलों में से कुछ को अंजाम दिया। हक्कानी नेटवर्क पर शीर्ष अफगान अधिकारियों की हत्या करने और फिरौती के लिए अपहृत पश्चिमी नागरिकों को पकड़ने का भी आरोप है। जिसमें अमेरिकी सैनिक बोवे बर्गडाहल भी शामिल है, जिसे 2014 में रिहा किया गया था। अपनी आजादी, युद्ध कौशल और सौदे करने में माहारत के लिए जाने जाने वाले हक्कानी मुख्य रूप से पूर्वी अफगानिस्तान में स्थित हैं और तालिबान की नेतृत्व परिषद पर काफी प्रभाव रखते हैं।
मुल्ला याकूब
तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे, मुल्ला याकूब समूह के शक्तिशाली सैन्य आयोग के प्रमुख हैं। जो विद्रोह को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार फील्ड कमांडरों के विशाल नेटवर्क की देखरेख करता है। मंगलवार को उन्हें रक्षा मंत्री के रूप में नामित किया गया। याकूब के पिता को तालिबान नेता के रूप में पंथ की तरह का दर्जा प्राप्त था। उनका वंशज होना याकूब को आंदोलन में महत्वपूर्ण शख्सियत बनाता है।
चार पन्नों का जारी किया घोषणापत्र
तालिबान ने अपनी कार्यकारी सरकार के गठन के ऐलान के साथ ही चार पन्नों का एक घोषणा पत्र जारी किया है। ये लीडर ऑफ इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान अमीर उल मुमीनिन शेख उल हदीथ हिब्तुल्लाह अखुंदजादा के हस्ताक्षर के साथ जारी किया गया है। इसमें जोर दिया गया है कि सरकार में शामिल सभी लोग इस्लामिक नियम और शरिया कानून के हिसाब से काम करेंगे और देश को आगे ले जाएंगे। कहा गया है कि कार्यकारी सरकार जल्द ही अपनी जिम्मेदारियों को निभाना शुरू कर देगी। इसमें ये भी कहा गया है कि सरकार इस्लामिक नियम और शरिया कानून के हिसाब से चलेगी।
पिछले 20 साल के संघर्ष के दो लक्ष्य थे
1. विदेशी सेना से देश को आज़ाद कराना
2.देश में पूर्ण, आजाद, स्थिर और इस्लामिक सिस्टम वाली सरकार स्थापित करना
घोषणापत्र के प्रमुख बिंदु
-हम एक आत्मनिर्भर अफग़ानिस्तान बनाएंगे।
-पड़ोसी और बाकी सभी देशों के साथ दोतरफा और सम्मानजनक संबंध चाहते हैं।
-सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों को मानेंगे जो इस्लामिक नियमों और देश के मूल्यों के खिलाफ न हों।
-इस्लामिक नियमों के मुताबिक- अल्पसंख्यकों और कमजोरों के हकों की रक्षा करेंगे।
-सभी नागरिकों को समान दर्जा, इस्लामिक अमीरात सबके इस्लामिक हकों की सुरक्षा करेंगे।
-शरिया ढ़ांचे के तहत धार्मिक और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा मुहैय्या करायी जाएगी।
-आर्थिक तरक्की के लिए सभी संसाधनों का इस्तेमाल।
-घरेलू राजस्व का बेहतर इस्तेमाल, विदेशी निवेश के मौके, बेरोजगारी दूर करेंगे और देश को जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा करेंगे।
-देश के सभी नागरिक को मूलभूत सुविधाएं जल्द से जल्द उपलब्ध कराने की दिशा में काम, ग़रीबी उन्मूलन, राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
-मीडिया की स्वतंत्रता और क्वालिटी में सुधार, इस्लाम और राष्ट्रीय हित में भूमिका सुनिश्चित करेंगे।
-सभी पड़ोसियों और क्षेत्र के देशों को भरोसा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी देश की सुरक्षा के खिलाफ नहीं, उनसे भी यही उम्मीद।
-सभी विदेशी राजनयिकों, दूतावासों, कंसुलेट्स, मानवीय सहायता समूहों और निवेशकों की सुरक्षा का भरोसा, उनका यहां बने रहना।
– हम किसी से साथ दुश्मनी नहीं चाहते, अफगानिस्तान सभी के लिए एक घर किसी को भविष्य के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं। आम जनों से इस्लामिक अमीरात को समर्थन जारी रखने की अपेक्षा। इस्लामिक सिस्टम के तहत देश के पुनर्निमाण में सबकी भागीदारी।
-सभी प्रतिभाशाली पेशेवर लोगों, विद्वान, प्रोफेसर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर और शिक्षित वर्ग, व्यापारी और निवेशकों को पूरी तवज्जो का भरोसा देते हैं।
-लोग देश छोड़ने की कोशिश न करें। इस्लामिक अमीरात को किसी से कोई दिक्कत नहीं। देश निर्माण में सबकी भागीदारी का भरोसा।
तालिबान के साथ समझौता की कोशिश कर रहा चीनः जो बाइडेन
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मंगलवार (स्थानीय समय) को कहा कि चीन की तालिबान के साथ एक “वास्तविक समस्या” है। इसलिए वह तालिबान के साथ “कुछ समझौता” करने की कोशिश करने जा रहा है। जिसने हाल ही में अफगानिस्तान में नियंत्रण पर कब्जा कर लिया है और अपनी सरकार की घोषणा की है। बाइडेन ने तालिबान को चीन से फंडिंग मिलने के बारे में पूछे गए एक सवाल पर ये बातें कहीं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से कहा कि चीन को तालिबान के साथ एक वास्तविक समस्या है। इसलिए वे तालिबान के साथ कुछ सुलह-समझौता करने की कोशिश करने जा रहे हैं। ऐसा मुझे यकीन है। जैसा पाकिस्तान ने किया, जैसा रूस और ईरान ने किया, वैसा ही चीन भी करेगा। वे सभी यही पता लगाने की कोशिश में हैं कि चीन अब क्या करता है।
अफगानिस्तान पर कब्जा से कुछ हफ्ते पहले, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान समूह के साथ ‘मैत्रीपूर्ण संबंध’ विकसित करने के लिए अफगान तालिबान राजनीतिक आयोग मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की थी। अमेरिका मीडिया में कहा गया है कि काबुल पर कब्जा करने से पहले ही चीन ने तालिबान को अफगानिस्तान के वैध शासक के रूप में मान्यता देने की तैयारी कर ली थी।
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चाहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में हो या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने का मसला हो, तालिबान और चीन एक ही मंच पर खड़े हैं। पहला कट्टरपंथी और रूढ़िवादी है, जबकि दूसरे का विकास का एक लंबा इतिहास होने के बावजूद, कम्युनिस्ट शासन अभी भी अपने लोगों के साथ गुलामों जैसा सलूक करता है। तालिबान जो इस्लाम के ध्वजवाहक होने का दावा करता है, उसने चीन में उइगर दमन पर अपना मुंह बंद कर लिया। संगठन के शीर्ष नेता ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी, क्योंकि उसके बीजिंग के साथ वित्तीय हित जुड़े हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।