ऐसे नहीं बन जाता कोई महेंद्र भट्ट, सफलता में मां ने दिया साथ, पढ़िए राजनीतिक सफलता की कहानी
बनाया गया उत्तराखंड बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष
शनिवार को महेंद्र भट्ट को उत्तराखंड बीजेपी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की ओर से नियुक्ति पत्र को बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव एवं मुख्यालय प्रभारी अरूण सिंह ने जारी किया। इसके बाद ही उन्होंने पदभार भी ग्रहण कर लिया। 50 वर्षीय महेंद्र भट्ट दो बार विधायक रह चुके हैं। इसमें एक बार वह नंदप्रयाग विधानसभा से और दूसरी बार बदरीनाथ विधानसभा से विधायक का चुनाव जीते थे। संगठन में उनकी अच्छी खासी पैठ है। वह युवा मोर्चा और विद्यार्थी परिषद में भी पदाधिकारी रह चुके हैं। साथ ही वह आरएसएस के भी कर्मठ कार्यकर्ता हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राज्य आंदोलन के दौरान महेंद्र भट्ट की मां से हुई थी मुलाकात
अब बात करते हैं महेंद्र भट्ट के इस मुकाम तक पहुंचने की। हालांकि, इस काम के लिए उनकी अपनी मेहनत को रही होगी, लेकिन इस सफलता के पीछे उनकी मां का साथ भी रहा। आज से करीब तीस साल पहले अमूमन युवावस्था में जब कोई छात्र खेल, राजनीति या फिर किसी अन्य दिशा में कदम रखता है तो अभिभावक उसे ज्यादा प्रोत्साहन नहीं करते। यहां मेरा मानना है कि महेंद्र भट्ट के साथ ऐसा नहीं हुआ होगा। उन्हें तो राजनीति की सीढ़ी चढ़ने के लिए उनकी मां ही समर्थन करती रही होगी। क्योंकि मेरी महेंद्र भट्ट से मुलाकात उस समय हुई थी, जब उत्तराखंड आंदोलन की शुरुआत हुई। हालांकि, उत्तराखंड राज्य की मांग काफी पहले से की जा रही थी, लेकिन वर्ष 1994 में राज्य आंदोलन ने जोर पकड़ा और प्रदेश का कोई कोना ऐसा नहीं बचा जहां लोग आंदोलित न रहे हों। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
छात्र आंदोलन का हिस्सा रहे महेंद्र भट्ट
उस समय यूपी सरकार ने ओबीसी के लिए अलग से आरक्षण घोषित किया। इसके विरोध में उत्तराखंड के छात्र आंदोलित हो उठे। वहीं, दूसरी तरफ उत्तराखंड क्रांति दल के वरिष्ठ नेता इंद्रमणि बडौनी अलग राज्य की मांग को लेकर पौड़ी में आमरण अनशन पर बैठ गए। उस दौरान विद्यार्थी परिषद में कर्मठ कार्यकर्ता होने के नाते महेंद्र भट्ट भी ऋषिकेश में छात्र आंदोलन का हिस्सा थे। आंदोलन जोर पकड़ रहा था। बड़ौनी को धरने से जबरन उठाने के बाद आरक्षण के खिलाफ चल रहा आंदोलन राज्य की मांग के आंदोलन में बदल गया। जगह जगह उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन हुआ और हर जिले, तहसील मुख्यालयों में धरने शुरू हो गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहली बार ऋषिकेश में हुआ था लाठीचार्ज
राज्य आंदोलन तेज होने के साथ ही बीजीपी और बीजेपी के घटक संघों के कार्यकर्ता संघर्ष समिति से इतर भी आंदोलन चला रहे थे। उन दिनों मैं ऋषिकेश में अमर उजाला में कार्यरत था। तब ऋषिकेश में मैं नगर पालिका, आइडीपीएल गेट, गुमानीवाला, मुनिकी रेती, ढालवाला सहित दर्जनों स्थानों पर धरने चल रहे थे। इसी बीच कुछ महिलाओं ने रेल रोकने का प्रयास किया तो ऋषिकेश पुलिस ने उन पर लाठीचार्च कर दिया। ये वर्ष 1994 की बात है। मेरी याददाश्त के मुताबिक, तब ऋषिकेश में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों पर ये पहला लाठीचार्ज था। इस लाठीचार्ज में बीजीपी की महिला कार्यकर्ता स्नेह लता शर्मा भी बुरी तरह घायल हुई थीं। राज्य बनने के बाद वह नगर पालिका की अध्यक्ष भी बनी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पत्रकारों की लगती थी लंबी दौड़
उन दिनों पत्रकार ऋषिकेश से लेकर रायवाला, मुनि की रेती, ढालवाला, लक्ष्मण झूला क्षेत्र, कभी कभी डोईवाला सहित कई ऐसे स्थानों के चक्कर हर दिन लगाते थे, जहां लोग सड़कों पर निकलते थे। आज बड़ी घटना के बावजूद पत्रकार मौके पर नहीं जाता और फोन से ही खबर जुटाता है, लेकिन उस दौर में एक पत्रकार हर दिन करीब सौ से लेकर डेढ़ सौ किलोमीटर तक की दौड़ लगा देता था। ऋषिकेश में ऐसे पत्रकार कुछ ही थे, जो हर धरनास्थल तक दौड़ लगाते थे। ऐसे में उन्हें हर आंदोलनकारी पहचानने लगा था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खुद से ज्यादा मां को बेटे के नाम की चिंता
अब बात होती है महेंद्र भट्ट की माताजी राजेश्वरी देवी भट्ट की। वह भी हर दिन आंदोलनकारी महिलाओं की भीड़ में मुझे दिखती थीं। वह इंद्रानगर ऋषिकेश स्थित आवास से निकलती और महिलाओं के जत्थे में शामिल होकर प्रदर्शन का हिस्सा बनती। महेंद्र भट्ट के पिता पुरुषोत्तम भट्ट सरकारी नौकरी में थे। उन दिनों मुख्य समाचार पत्रों में अमर उजाला, दैनिक जागरण में अधिक से अधिक आंदोलनकारियों के नाम छापने की होड़ थी। ऐसे में जहां भी मुझे महिलाएं या पुरुष नारे लगाते और प्रदर्शन करती दिखते तो मैं उनके नाम भी नोट करता। कई बार नाम प्रकाशित होने से छूट जाते तो मुझे अगले दिन उनकी नाराजगी भी झेलनी पड़ती थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस दौरान जब भी मैं राजेश्वरी देवी भट्ट से मिलता तो वह मुझसे कहती-बेटा मेरा नाम भले ही अखबार में ना लगाना, लेकिन मेरे बेटे महेंद्र भट्ट का नाम जरूर लिखना। वह बताती कि इस दौरान उनका बेटा कहां मिलेगा और किस प्रदर्शन में होगा। मैं उनकी बात को हल्के में लेता और मुस्करा देता। वहीं, उनकी मां को तब शायद से विश्वास था कि बेटा राजनीति में काफी ऊपर जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हर सफलता की कहानी सुनकर याद आती हैं उनकी मां
हांलाकि, नाम मैं उनके ही प्रकाशित करता था, जो मुझे आंदोलन का हिस्सा बना हुआ नजर आता था। तब मैं महेंद्र भट्ट की मां की बात को हल्के में लेता था, लेकिन जब राज्य बनने के बाद महेंद्र भट्ट ने तेजी से राजनीति की सीढ़ी चढ़नी शुरू की और वह सफलता हासिल करते रहे, तो मेरी आंखों के सामने में उनकी मां का चेहरा घूमने लगता है। क्योंकि उनकी मां हमेश बेटे को राजनीति के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए अपनी तरफ से हर संभव सहयोग करती रही। अब जब मुझे महेंद्र भट्ट के उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनने की जानकारी मिली, तो मेरे जेहन में उनकी मां की याद फिर से ताजा हो गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चुनावी हार के बावजूद नहीं हारा हौसला
आंदोलन के उस दौर में महेंद्र भट्ट पं ललित मोहन शर्मा राजकीय महाविद्यालय में छात्र थे। वह तब विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे। उसी दौरान वह शानदार वक्ता भी रहे। हालांकि, उन्होंने छात्रसंघ उपाध्यक्ष और अध्यक्ष के चुनाव भी लड़े और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। यहां से बात भी सच है कि हार किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसा रहा राजनीतिक सफर
चार अगस्त, 1971 ग्राम ब्राह्मण थाला , पोखरी ब्लाक, चमोली जनपद में जन्मे महेंद्र भट्ट की प्राथमिक शिक्षा राजकीय प्राथामिक विद्यालय, थाला पोखरी चमोली में हुई। भरत मंदिर इंटर कालेज ऋषिकेश में उनकी माध्यम शिक्षा पूरी हुई थी। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए पं ललित मोहन शर्मा राजकीय महाविद्यालय, ऋषिकेश में उन्होंने दाखिला लिया। श्री राम जन्म भूमि आंदोलन में 15 दिनों तक वह पौड़ी जिले में कांसखेत जेल में रहे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान वह पांच दिनों तक पौड़ी जेल में रहे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में वह वर्ष 1991 से 1996 तक सहसचिव रहे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के टिहरी विभाग में वह वर्ष 1994 से 1998 तक विभाग संगठन मंत्री रहे।1998 से 2000 तक वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव रहे। वर्ष 2000 से 2002 तक महेंद्र भट्ट भारतीय जनता युवा मोर्चा प्रदेश महासचिव रहे। वर्ष 2002 से 2004 तक वह भाजपा युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके साथ ही उन्हें भाजपा युवा मोर्चा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं महाराष्ट्र व हिमाचल प्रभारी भी बनाया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसके बाद उन्होंने भाजपा संगठन में पदाधिकारी के रूप में पहचान बनाई और वर्ष 2007 से 2010 तक वह
भाजपा प्रदेश सचिव, वर्ष 2012 से 2014 तक भाजपा गढ़वाल संयोजक, वर्ष 2015 से 2020 तक वह भाजपा प्रदेश सचिव रहे। इसके बाद 2002 से 2007 तक वह नंदप्रयाग विधानसभा से विधायक रहे। वर्ष 2002 से 2007 तक भाजपा विधान मंडल दल के मुख्य सचेतक रहे। वर्ष 2010 से 2012 वह राज्यस्तरीय लघु सिंचाई अनुश्रवण समिति के उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री) रहे। फिर 2017 से 2022 तक बदरीनाथ विधायक रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसके अलावा उन्होंने विभिन्न समितियों में सदस्य के रूप में काम किया। इनमें उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड प्राकलन समिति, आवास समिति, पलायन समिति, आश्वासन समिति आदि हैं। हाल ही में हुए इस बार के विधानसभा चुनाव में महेंद्र भट्ट बदरीनाथ विधानसभा से चुनाव हार गए और अपनी सीट बरकरार नहीं रख पाए। इसके बावजूद पार्टी संगठन ने उन पर विश्वास जताया और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बैठा दिया। ऐसा ठीक उसी तरह हुआ, जैसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद उन्हें पार्टी हाईकमान से फिर से सीएम की कुर्सी पर बैठाया।
भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।