उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन या उपचुनाव, बना है सस्पेंस, आधी रात जेपी नड्डा से मिले सीएम तीरथ
उत्तराखंड राज्य की पहचान राजनीतिक अस्थिरता के रूप में भी होने लगी है। यहां चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। अब सीएम तीरथ से दिल्ली दौरे को भी नेतृत्व परिवर्तन की दृष्टि से भी देखा जा रहा है।
उत्तराखंड राज्य की पहचान राजनीतिक अस्थिरता के रूप में भी होने लगी है। यहां चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। दोनों ही सरकारें नेतृत्व परिवर्तन कर चुकी हैं। इस मामले में भाजपा तो सबसे आगे है। मार्च माह में नेतृत्व परिवर्तन कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम के पद से हटना पड़ा। फिर तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। अब उनके समक्ष भी तकनीकी पेच हैं। या तो वे उपचुनाव लड़ेंगे, या फिर से भाजपा को उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ेगा। इन हालातों को लेकर चर्चा के लिए सीएम तीरथ सिंह रावत का दिल्ली दौरा माना जा रहा है। वहीं, बुधवार की आधी रात के बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हो चुकी है।जून माह में तीसरा दौरा, अटकलों का बाजार गर्म
जून माह में सीएम तीरथ सिंह रावत तीसरी बार 30 जून को दिल्ली दरबार में हाजरी लगाने पहुंचे। देर रात उनकी मुलाकात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से हुई। तीरथ सिंह रावत के दिल्ली पहुंचते ही एक बार फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया। इस दौरे को मुख्यमंत्री के उप चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। साथ ही उप चुनाव में तकनीकी अड़चन की स्थिति में नेतृत्व परिवर्तन की बात भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है।
यही नहीं, राज्य के दो मंत्रियों की दिल्ली में मौजूदगी भी इस चर्चा को हवा दे रही है। इससे पहले स्वयं मुख्यमंत्री ने कहा कि वह रामनगर चिंतन शिविर में पार्टी की ओर से तय की गई चुनावी रणनीति पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात को दिल्ली आए हैं।
क्या फिर दोहराई जा रही है पुरानी कहानी
क्या फिर कहानी कुछ मार्च माह की तरह ही नजर आ रही है। तब विधानसभा के गैरसैंण में आयोजित सत्र को अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। तत्कालीन सीएम सहित समस्त विधायकों को देहरादून तलब किया गया था। छह मार्च को भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून आए थे। उन्होंने भाजपा कोर कमेटी की बैठक के बाद फीडबैक लिया था। इसके बाद उत्तराखंड में आगामी चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला केंद्रीय नेताओं ने लिया था। इसके बाद मंगलवार नौ मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं, दस मार्च को भाजपा की विधानमंडल दल की बैठक में तीरथ सिंह रावत को नया नेता चुना गया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। दस मार्च की शाम चार बजे उन्होंने एक सादे समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की।
इस बार भी रामनगर में आयोजित भाजपा के तीन दिनी चिंतन शिविर में भाग लेकर मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री देहरादून पहुंचे। बुधवार सुबह वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए। देर रात ही उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात करने की सूचना मिली। इसके साथ ही कई तरह की चर्चाओं ने तेजी से जोर पकड़ा हुआ है। ये बुलावा भी अचानक आया। बुधवार के उनके कई कार्यक्रम उत्तराखंड में लगे थे। उन्हें छोड़कर सीएम को दिल्ली दरबार में उपस्थित होने के लिए रवाना हो गए थे।
विधानसभा चुनाव या तकनीकी पेच
मुख्यमंत्री को दिल्ली बुलाए जाने को आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़कर देखा गया तो मुख्यमंत्री के उपचुनाव में आ रही अड़चन से भी। यह बात भी उठी कि यदि उपचुनाव होता है तो मुख्यमंत्री गंगोत्री सीट से शायद ही चुनाव लड़ें। क्योंकि देवस्थानम बोर्ड को लेकर वहां तीर्थ पुरोहित नाराज चल रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री गढ़वाल संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली किसी विधानसभा सीट को तवज्जो दे सकते हैं। यह अटकलें भी लगाई गईं कि यदि उपचुनाव की स्थिति नहीं बनी तो सरकार में फिर से नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। वहीं, तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लड़ने के बाद उन्हें लोकसभा से इस्तीफा देना पड़ेगा। कोरोना की दूसरी लहर में व्यवस्थाओं को लेकर भाजपा की छवि भी खराब हुई है। ऐसे में क्या भाजपा लोकसभा चुनाव में जाने का रिस्क उठा सकती है, ये सवाल भी उठाए जा रहे हैं।
ये है तकनीकी पेच
उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्दवानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होगा। इसका मतलब है कि इस विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने ही बचे हैं। वहीं, लोकसभा सदस्य तीरथ सिंह रावत ने दस मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के छह माह के भीतर विधायक बनना जरूरी है। अगर ऐसे देखा जाए तो 9 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत के बने रहने संभव नहीं है। अब, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी है।
दायित्व को लेकर भी चर्चा
नेतृत्व परिवर्तन के बाद तीरथ सरकार ने पिछली सरकार में बंटे दायित्वों को निरस्त कर दिया था। दायित्व वितरण के लिए ऐसा फार्मूला निकालने पर जोर दिया जा रहा, जिससे संगठन में कहीं भी असंतोष के सुर न उभरें। मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को इस मसले से भी जोड़कर देखा गया। इसके अलावा पार्टी विधायकों और कार्यकर्त्ताओं की जुबानी जंग सरकार व संगठन को असहज किए है। चर्चा रही कि मुख्यमंत्री इस बारे में केंद्रीय नेतृत्व से विमर्श कर सकते हैं।
दो मंत्रियों के दिल्ली दौरे ने चर्चा को दी हवा
सियासी गलियारों में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज व राज्यमंत्री डा धन सिंह रावत के दिल्ली पहुंचने और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से उनकी कथित मुलाकात की भी चर्चा बनी हुई है। वहीं, सरकार के प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि राष्ट्रीय दलों की सरकारों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों का दिल्ली आना-जाना सामान्य बात है। मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को लेकर कोई अन्य अर्थ नहीं लेना चाहिए।





