आठवीं सदी का शिवालय क्यूंकालेश्वर मंदिर जाली बाड़े में सिमटा, महंत ने बदला निजी संपत्ति में, शिव भक्तों ने बनाई दूरी
अंग्रेजों के जमाने से पौड़ी नगर के शिखर पर स्थित शिवालय, क्यूंकालेश्वर मंदिर के नाम से सुविख्यात है। ऐसा दावा है कि सन 1870 में श्री हरि आदर्श संस्कृत विद्यालय, क्यूंकालेश्वर की स्थापना हुई। इस नाम का पौड़ी में मोहल्ला और अन्य विद्यालय भी हैं। मंदिर के भवन में वर्ष 1915 के पत्थर मौजूद हैं।
यहां की थी यम ने भगवान शिव की पूजा
एक विस्तृत परिसर में फैले क्यूंकालेश्वर शिवालय में सीता राम मंदिर भी मौजूद है। अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां इस परिसर में अध्यात्मिकता जगाती रहीं हैं। कभी यहां बच्चे संस्कृत और पूजा पाठ की विधिवत शिक्षा ले रहे थे लेकिन अब इस भवन में सन्नाटा पसरा रहता है।
ऐसा भी दावा है कि क्यूंकालेश्वर मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य के हाथों हुई है और इस परिसर को कंकालेश्वर और मुक्तिधाम का नाम देने के प्रयास हुए। यहां यम ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी।
क्यूंकालेश्वर मंदिर पौड़ी नगर की विशिष्ट पहचान
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के पर्यटन और अन्य विभागों ने सड़क, बिजली, पानी ओर सौंदर्यकरण पर करोड़ों रूपये खर्च किए हैं। पौड़ी निवासियों ने अपनी श्रद्धानुसार यहां आयोजित होने वाले तमाम भंडारों में अन्न, धन व निर्माण सामग्री देकर भरपूर सहयोग किया है।
जाली बाड़ा में बदला मंदिर
कोरोना काल में महंत जी ने क्यूंकालेश्वर मंदिर को जाली बाड़े से बंद किया हुआ है। सो अब मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का प्रवेश निषेध है। शिवालय में जलाभिषेक बंद है। राम सीता मंदिर तक पहुंच रोक दी गयी है। यह दूसरी बात है कि पूरे देश में अनलाक प्रक्रिया के तहत अब बस, रेल, मेट्रो, हवाई जहाज, हैली सेवाओं से लेकर होटल, बाजार, माल, पिक्चर हाल तक खुल गए है।
निजी व्यवस्थाओं का विरोध
शिवालय को लोहे के जंगले के पीछे रखना महंत जी की कठोरता बता रहा है। सब जानते हैं कोरोना का भय भगवान शिव को नहीं है, लेकिन चार धाम की तर्ज पर श्रद्धालुओं में कोरोना बचाव के उपाय किए जाते तो ज्यादा श्रेयकर रहता है। देहरादून के एक अधिवक्ता ने अपनी पिछली यात्रा में इस विषय को उठाया और क्यूंकालेश्वर मंदिर में निजी व्यवस्थाओं का विरोध सोशल मीडिया पर दर्ज किया है।
मंदिर को चाहिए 12 लाख रुपये
महंत जी चाहते हैं कि क्यूंकालेश्वर मंदिर परिसर में अनावश्यक भवनों का निर्माण हो और लोग भजन या अनुष्ठान के नए भवन के लिए 12 लाख का सहयोग करें। ऐसा फलैक्स मंदिर परिसर में लगा है।अब क्यूंकालेश्वर परिसर में साधु संत या माई नजर नहीं आते हैं। जिन के लिए मंदिर में आवासीय भवनों का निर्माण होता है। मंदिर में बच्चों की चहल पहल के लिए स्थापित संस्कृत दीक्षा विद्यालय भी सूना पड़ा है। मेरा इस मंदिर से जुड़ाव चार दशक पुराना है और आज के हालात काफी आक्रोश पैदा कर रहे हैं। मंदिर में अब लंगूरों की चहल पहल श्रद्धालुओं से ज्यादा नजर आता है।
शिव महिमा पर चर्चा के बजाय भवन निर्माण पर जोर
महंत जी शिव महिमा सुनाने की जगह मंदिर में पहुंचने वाले यात्रियों से अक्सर भवन निर्माण की चर्चा करना आवश्यक मानते हैं और उनका यह बर्ताव काफी खलता है। क्योंकि वे निजी संपति में श्रद्धालुओं से दान पुण्य की आशा रखते हैं। खुले परिसर में नए निर्माण होने मंदिर संकुचित होता जा रहा है।
यहां है मंदिर
यह मंदिर कंडोलिया रोड़ से रांसी स्टेडियम की ओर है। रांसी स्टेडियम को अब महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह रावत स्टेडियम का नाम दिया गया है और पास में ही टूरिस्ट विभाग का भवन निर्मित हो रहा है। इस शिखर से पौड़ी नगरी और हिमालय के मनोहारी दृश्य उपलब्ध हैं।
महंत की रहती है व्यवस्था
पौड़ी नगर से दो किमी दूर घने जंगल के बीच स्थित क्यूंकालेश्वर मंदिर के पास ही झाली माली मंदिर है। यह मंदिर प्रदेश के पहले कैबिनेट मंत्री और उत्तर प्रदेश में पौड़ी के लोकप्रिय विधायक रहे बाबा मोहन सिंह रावत ग्रामवासी जी ने बनाया है। बाबा ग्रामवासी जी ने बताया कि क्यूंकालेश्वर मंदिर को केदारखंड में मुक्तेश्वर धाम कहा गया है और कंकालेश्वर नाम भी दिया है। लोकमानस में क्यूंकालेश्वर नाम ज्यादा प्रचलित है और किसी नाम में कोई बाधा नहीं है। अंग्रेजों के समय में इस मंदिर की व्यवस्था को सार्वजनिक करने का मुकदमा आया था और प्राइवेट मंदिर का निर्णय तत्कालीन महंत के पक्ष में रहा है। इस मंदिर का महंत अविवाहित रहता है और उसके बाद गद्दी शिष्य को मिलती है।
धरोहर की सुरक्षा पर सवाल
अब सवाल यह है कि निजी मंदिर में सरकार आवश्यक सुविधायें जुटाने के लिए करोड़ों का बजट कैसे खर्च करे ? पर्यटन विभाग के शिलापट्ट में क्यूंकालेश्वर मंदिर को आठवीं सदी का बताया गया है तो फिर इस धरोहर की सुरक्षा और संरक्षण के लिए क्या इसका प्राइवेट हाथों में रहना उचित है ?
जिला प्रशासन ओर जनप्रतिनिधियों को ऐसी धरोहर की विशेष चिंता करना जरूरी है। जहां जनता का काफी धन निरंतर खर्च किया जाता है। साथ ही यदि मंदिर निजी श्रेणी का है तो प्रवेश द्वार पर ही यह साफ – साफ दर्ज किया जाये ताकि इन शिवालयों की जानकारी सभी श्रद्धालुओं को रहे।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, उत्तराखंड