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February 4, 2025

कोविड19 शहीद श्रद्धाजंलि यात्रा, लोगों ने सुनाई व्यथा, कांग्रेस उपाध्यक्ष धस्माना ने बंधाया ढाढस

उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष व देवभूमि मानव सांसाधन विकास ट्रस्ट के अध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना की ओर से शुरू की गई कोविड19 शहीद श्रद्धाजंलि यात्रा जारी है। यात्रा अभी देहरादून के कौलागढ़ क्षेत्र में ही चल रही है।

कोविड-19 संक्रमण के कारण मृत लोगों के परिवारों से मिल कर उनके दुख बांटने के लिए उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष व देवभूमि मानव सांसाधन विकास ट्रस्ट के अध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना की ओर से शुरू की गई कोविड19 शहीद श्रद्धाजंलि यात्रा जारी है। यात्रा अभी देहरादून के कौलागढ़ क्षेत्र में ही चल रही है, क्योंकि यहां 76 लोग कोरोना के शिकार हो कर काल का ग्रास बन गए थे।
आज लगातार तीसरे दिन धस्माना कौलागढ़ क्षेत्र में पीड़ित परिवारों से मिले। प्रेस से अपनी इस यात्रा के वृतांत साझा करते हुए उन्होंने बताया कि 48 वर्षीय प्रवीण गुलाटी अपना व्यवसाय चलाते थे। वे मई के पहले हफ्ते के आसपास बीमार हुए और परिवार वाले उन्हें मैक्स ले गए। जहां उनका एक महीने उपचार चला और वे ठीक हुए और घर आये ही थे कि फिर बीमार हो गए। दूसरी बार उन्हें एम्स ऋषिकेश ले गए।
जहां बताया गया कि उनको ब्लैक फंगस है, उनको ब्लैक फंगस के इंजिक्शन भी लगे और उनकी सर्जरी भी हुई। अन्तोगत्वा 8 जुलाई को वे जीवन की लड़ाई हार गए। स्वर्गीय प्रवीण की माता जी व उनकी पत्नी का रो रो कर बुरा हाल है। दो छोटी बेटियां हैं। जो अभी स्कूल जाती हैं। बड़े भाई चंद्रेश गुलाटी ने उससे ब्लैक फंगस के इंजैक्शन के लिए संपर्क किया था। इस बात से दुखी थे कि उनके (धस्माना) के प्रयास भाई को बचा नहीं पाए।
उत्तरांचल ग्रामीण बैंक के वरिष्ठ एचआर अधिकारी नवीन रैना की धर्मपत्नी अंजू रैना बहुत व्यथित थीं। कहने लगी 7 अप्रैल को अच्छे खासे चल कर कैलाश अस्पताल गए। मुझे पैसे दे कर कहने लगे कि इससे काम चला लेना। मैं एक दो दिन में आऊंगा। 9 अप्रैल को 3 बजे शाम को कहा चाय पिला दो और एक घंटे बाद डॉक्टर ने कहा कि रैना साहब नहीं रहे।

यह बताते हुए वे बिलख पड़ी, बोली मेरी एक बेटी दिल्ली में डॉक्टर है व दूसरी बेटी मेरे साथ है, जो स्नातक में पड़ रही है। मेरा और कोई नहीं, दिल्ली से आये भाई ने संस्कार किया। अब समझ नहीं आ रहा कि जीवन कैसे कटेगा।
उनकी और भी कई शिकायतें थी अस्पताल के खिलाफ। वे अपनी व्यथा सुनाते हुए रोती रहीं। उन्होंने कहा कि आपका बहुत नाम सुना था और कई बार मिलने की भी इच्छा हुई, लेकिन मेरा दुर्भाग्य है कि ऐसे मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि तीन महीने में आप पहले व्यक्ति हैं, जो मुझे सांत्वना देने घर आए, बैंक वालों के अलावा। उनकी सबसे बड़ी तकलीफ यही थी कि समाज में संवेदनाएं खत्म क्यों हो रही। धस्माना आज तीन अन्य परिवारों में भी गए और सांत्वना दी।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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