जानिए नैनीताल जिले के दर्शनीय और पर्यटन स्थलों के बारे में
नैनीताल जिला अपने आप में एक खूबसूरती समेटे हुए है। यहां के पर्यटन और दर्शनीय स्थल बरबस पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां इतिहासकार देवकी नंदन पांडे इन्हीं स्थलों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
हनुमान गढ़ी
नैनीताल शहर से तीन किलोमीटर की दूरी पर हनुमान गढ़ी एक धार्मिक स्थान के रूप में ख्याति प्राप्त है। यहाँ पर प्रसिद्ध सन्त नीम करौली बाबा ने हनुमान जी की बारह फीट ऊँची प्रतिमा निर्मित करवाकर इसे श्रद्धालुओं को समर्पित कर दिया।
राजकीय बेधशाला
यह 4.5 किलोमीटर की दूरी पर 6430 फीट ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से समस्त हिमाच्छादित श्रेणियों का अवलोकन किया जा सकता है।
पटुआ डांगर
यहाँ पर चेचक के टीके की वैक्सीन तैयार की जाती है।
रामगढ़
नैनीताल से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेब के बागों के लिए प्रसिद्ध स्थान है।
ज्योलीकोट लगभग ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर अत्यन्त रमणीक स्थल है। स्वास्थ्य लाभ के दृष्टिकोण से लाभप्रद होने के साथ-साथ मधु-मक्खी पालन का केन्द्र भी है।
नैना पीक
शहर से छ: किलोमीटर की दूरी पर 8616 फीट ऊँची चोटी है यहाँ से सम्पूर्ण हिमालय के दर्शन होते है। इसी चोटी से पैदल चलकर ‘हार्स बैक’ पर पहुँचा जा सकता है।
राजभवन
नैनीताल स्थित राजभवन इंग्लैंड के बर्मिघम पैलेस की तर्ज पर बनाया गया है। इस ऐतिहासिक भवन के निर्माण का श्रेय तत्कालीन लेटिनेंट गवर्नर सर एन्टोनी मैक्डोवैल को जाता है, जिन्होंने सन 1895 इस भवन के निर्माण का फैसला किया। अंग्रेज शासकों ने 1865 में जिस मालदन हाउस को राजभवन बनाया था, वह केवल 1879 तक ही राजभवन के रूप में कार्य करता रहा। इसके बाद यह अनुभव किया गया कि मालदन हाउस राज्यपाल के रहने लायक नहीं है। तब स्नो व्यू के मैदान में एक नए राजभवन का निर्माण किया गया। यह भवन इतना ऊँचा था कि यहाँ से सारे नैनीताल को देखा जा सकता था।
1895 में यह भवन खतरनाक घोषित कर दिया गया तो तत्कालीन लेटिनेंट गवर्नर सर एन्टोनी मैक्टोबैल ने नया भवन बनाए जाने का आदेश दिया और 27 अप्रैल, 1897 को नए राजभवन का शिलान्यास किया। मार्च सन 1900 को यह भवन बनकर तैयार हुआ जिसका नाम ‘ गवर्नमेन्ट हाउस’ रखा गया। नैनीताल राजभवन का सम्पूर्ण परिसर 220 एकड़ में है, जिसमें मुख्य भवन आठ एकड़ में बनाया गया है। राजभवन परिसर में 160 एकड़ में अनेक प्रकार के फूलों के बगीचे, देवदार व उसकी प्रजाति के वृक्षों के अतिरिक्त चीड़ के वृक्षों से सुसज्जित वन क्षेत्र विकसित है। शेष 52 एकड़ क्षेत्र में फैला गोल्फ कोर्स बरबस ही आगन्तुकों का मन मोह लेता है।
स्नो व्यू
यह पर्वतश्रेणी 7491 फीट ऊँची है। यहाँ पर ‘रोपवे’ द्वारा भी पहुँचा जा सकता है। नैसर्गिक सुन्दरता के दृश्यावलोकन का सबसे उत्तम स्थान है।
खुरपाताल
नैनीताल से सड़क मार्ग द्वारा 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सरोवार है।
भवाली
नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर 11 किलोमीटर की दूरी पर चीड़ के वर्षों पुराने वृक्षों से
आच्छादित मनोरम दृश्यों से युक्त स्वास्थ्यवर्द्धक स्थली है। सन् 1885 में यहाँ गढ़कप्तानी का बंगला बनाया गया। 1921 में सेनोटेरियम खुलने से इस स्थान की विशेष उन्नति हुई। सर्वप्रथम मलिन और न्यूटन अंग्रेज उद्यमियों ने यहाँ चाय और फलों के बगीचे लगाये। 1917 तक यह क्षेत्र भीमताल नोटिफाइड एरिया में सम्मिलित था। 1923 में यह स्वतंत्र नोटिफाइड तथा 1997 में क्षेत्रीय मुख्यालय बनाया गया। देश में अन्य सेनेटोरियम में यह जलवायु के दृष्टिकोण से सर्वोपरि है।
नौकुचिया ताल
यह भीमताल से चार किलोमीटर की दूरी पर है। इस ताल में नौ कोण है इसलिए नाम नौकुचिया पड़ा। यह 910 मीटर लम्बा 680 मीटर चौड़ा है। वनाच्छादित ऊँची पहाड़ियों से घिरे होने के कारण इसका दृश्य मनोहारी हैं।
भीमताल
राजा बहादुर चंद द्वारा भीमेश्वर मंदिर स्थापित करने के कारण इस सरोवर का नाम भीमताल पड़ा। ताल 4500 फीट की ऊँचाई पर तथा भवाली से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ताल के मध्य में प्राकृतिक रूप से टापू निर्मित है। महाराज जिन्द ने इस ताल के सौन्दर्य से मुग्ध होकर यहाँ अपना ग्रीष्म निवास भी बनाया था।
मुक्तेश्वर
नैनीताल से 37 किलोमीटर की दूरी पर 7500 फीट ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ एक प्रसिद्ध प्रयोगशाला है जहां जानवरों के रक्त को शुद्ध कर जीवन रक्षक दवाईयाँ बनती है। इस प्रयोगशाला की स्थापना अंग्रेजों द्वारा 1893 में की गयी थी। यहाँ फल व चाय के उद्यान बहुतायत में हैं।
मोतिपाथर
75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राकृतिक दृश्यों से सरोबार मनमोहक स्थली है। यहाँ से हिमालय पर्वत की समस्त बर्फ से ढकी चोटियों के दर्शन होते हैं।
घोड़ाखाल
यह भवाली से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर छात्रों का सैनिक स्कूल है, जहाँ विद्यार्थियों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सेना से सम्बद्ध विषयों में भी शिक्षित किया जाता है। गोल्ल देवता के मंदिर की मान्यता भी इस स्थान की धार्मिक प्रसिद्धि का कारण है।
ब्रेबरी
विद्युत शक्ति पैदा करने के लिए एक पावर हाउस निर्मित है, जो सम्पूर्ण नैनीताल शहर को विद्युत प्रदान करता है।
रामनगर
एक व्यापारिक मंडी है। गढ़वाल, अल्मोड़ा, रानीखेत आदि स्थानों के लिए प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र है। यहाँ पर प्लाईवुड, पेन्सिल व लकड़ी का सामान बनाने की फैक्ट्रियाँ भी हैं। कागज निर्माण के लिए कच्चा माल, भाबड़, चीड़, बाँस इत्यादि यहाँ से पेपर मिल्स को भेजे जाते हैं।
पदमपुर
बाबा हैड़ाखान का आश्रम होने से पवित्र स्थान माना जाता है। हैड़ाखान में हैड़ियाबाबा का विशाल आश्रम है। दूर-दूर से दर्शनाभिलाषी यहाँ आते हैं और मनोवांछित फल पाने की कामना करते हैं।
रानी बाग
यह काठगोदाम से पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ एच.एम.टी. घड़ियाँ निर्मित करने का कारखाना था। यह बल्लिया नदी के किनारे बसा हुआ है। नदी के ऊपर लोहे का पुल है, जहाँ से भीमताल को मार्ग गया है।
हल्द्वानी
सम्पूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र का सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र है। सन् 1834 में ट्रेल अंग्रेज ने इसे बसाया था। पहले बस्ती मोटा हल्दू में थी तथा यहाँ फूस के छप्पर थे। 1850 में पक्के मकान बनने आरम्भ हुए। जाड़ों के समय अपेक्षाकृत ठंड कम होने के कारण नैनीताल के अधिकतर सरकारी कार्यालय जाड़ों में यहाँ आ जाते हैं। काठगोदाम
रेल का अन्तिम स्टेशन यहीं है। पूर्व में काठगोदाम, बमौरी घाटा (दर्रा) कहलाता था, रेल के आने से काठगोदाम कहलाया। यहाँ काठ-बाँस की चैकपोस्ट थी, साथ ही लकड़ी का गोदाम होने से यह काठगोदाम कहलाया। यहाँ पर 350 फीट लम्बा पुल गोला नदी पर है। उसमें सड़क के साथ-साथ गोलापार भाबर क्षेत्र को नहर भी जाती है। इस पुल का निर्माण 1913-14 में हुआ था। लार्ड हार्डिंग ने इस पुल का उद्घाटन किया था अतः उन्हीं के नाम से यह प्रसिद्ध है।
ओखलकांडा
नैनीताल से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ग्रामीण क्षेत्र है। नैनीताल तथा हल्द्वानी से सीधी सड़क से जुड़े हुए इस क्षेत्र का सम्बन्ध सीले मार्ग से होते हुए धानाचूली मोड़ तक है। यहीं से ओखलकांडा प्रारम्भ हो जाता है। धानाचूली से क्वैदल तक नौ किलोमीटर का मार्ग घने जंगलों का है। हिमालय की बर्फीली चोटियाँ यहाँ से वर्ष भर स्पष्ट दिखायी देती है। छ: हजार फीट की ऊँचाई पर से होकर यह मार्ग गुजरता है। इन मूक पर्वत श्रेणियों से प्रकृति का सौन्दर्य मुखरित होता है। कुछ सरकारी भवनों के अतिरिक्त यहाँ आवास गृह तथा 1908 का बना एक कालेज भी है। यहाँ से 16 किलोमीटर आगे खनस्यू के पास गोला नदी है, जो क्षेत्र को रमणीक स्वरूप प्रदान करती है। खनस्यू से आगे मोटर मार्ग झड़गाँव होते हुए पतलौट को जाता है। छ: हजार फीट की ऊँचाई पर बसा यह एक गाँव है। यहाँ से सिखों के प्रमुख तीर्थ रीठा साहब के लिए मार्ग भी है।
पतलोट से आगे बढ़ने पर एक मार्ग डालकन्या की ओर (छः किलोमीटर) तथा दूसरा देवली (पांच किलोमीटर) की ओर जाता है। डालकन्या एक छोटा सा गाँव है। यहाँ से सात किलोमीटर की चढ़ाई पर लोहाखाम ताल है। चोरगल्या से भी यहाँ पैदल रास्ता है। लोहारखाम ताल पर विशाल तथा प्राचीन लोहारखाम मंदिर है, यह लगभग पाँच सौ वर्ष पुराना है। इस ताल में सुन्दर आकर्षक मत्स्य समूह दिखायी देते हैं। पतलोट से देवली मार्ग में जाने पर रास्ते में पश्याकोडार गाँव मिलता है। यहाँ पशुपतिनाथ का विशाल मंदिर है। एक बड़ी शिला पर पशुपतिनाथ बने हुए हैं। शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला भी लगता है। पश्याकोडार से आगे आठ हजार फीट की ऊँचाई पर
देवगुण का मंदिर है। सूर्योदय तथा सूर्यास्त का दृश्य बड़ा ही मनोहारी होता है।
चोरगल्या
चौभैंसी के भाबर वासियों की यह जगह है। यहीं नंदौर से नहर निकाली गयी है। जाड़ों में यहाँ अच्छी चहल-पहल रहती है। पहले कभी यहाँ चोरों के छिपने की जगह थी, इसलिए इसका नाम चोरगल्या पड़ा।
नैनीताल पवर्तारोहण क्लब
श्री चन्द्रपालशाह ठुलघरिया की अध्यक्षता में वैज्ञानिक अनुसंधान व पर्वतारोहण अभिय
1974 में स्थापाना की गयी। इस पर्वतारोहण क्लब का कार्य जीव, वनस्पति, भूगर्भ, भौगोलिक अनुसंधान व पर्वतारोहण में प्रशिक्षण देना है।
कुमायूँ विश्वविद्यालय
यह विश्वविद्यालय सन् 1973 में खोला गया था।
भूमियाधार
यह स्थान ग्राम के इष्टदेव भूमिया के नाम से प्रसिद्ध है यहाँ प्रारम्भिक स्तर के लिए अनौपचारिक शिक्षा का श्रीगणेश राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण की ओर से जून 1975 में प्रारम्भ हुआ। इस का कार्य पर्वतीय समस्याओं व विपदाओं का सर्वेक्षण करना है। यहाँ छोटी उम्र के उन बालकों को शिक्षित भी किया जाता है जो आर्थिक
कठिनाइयों के कारण विद्यालय छोड़ देते हैं।
कालाढूंगी
रेलवे लाइन आने से पूर्व यह मुरादाबाद से नैनीताल जाने का आम रास्ता था। सीतावनी शिवालिक की ऊँची-नीची पहाड़ियों के आंचल में स्थित कोटाबाग से आठ किलोमीटर की दूरी पर सीतावनी स्थित है। यह स्थान वाल्मीकि रामायण में वर्णित सीतावनी ही है। सीतावनी में वर्ष में चार बार मेला लगता है। शिवरात्रि, बैसाखी, पूर्णिमा, उत्तरायणी और कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ चहल-पहल रहती है। चारों ओर हरे-भरे जंगलों से आच्छादित इस स्थान पर सर्वत्र पानी के स्रोत हैं। जाड़ों के माह में इन स्रोतों का जल साधारण गरम और ग्रीष्म की तपन में शीतल हो जाता है। इसी सीतावनी के आंचल में कृष्ण खूट पर्वत पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी है, जिसके भग्नावशेष आज भी दृष्टिगोचर होते हैं।
पढ़ें: उत्तराखंड का खूबसूरत पर्यटन स्थल नैनीताल, जानिए कैसे हुई खोज, इसकी खासियत
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
सभी फोटोः साभार सोशल मीडिया
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।