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March 12, 2025

जानिए उत्तराखंड के चंपावत जिले के बारे में, पांडवकाल में यहां रहता था घटोत्कच्छ

चंपावत जिला अपनी विशेष पहचान लिए हुए है। कभी ये जिला पिथौरागढ़ जिले का अंग था। यहां के मंदिर अपने में पौराणिक और पांडवों के काल की कहानियां समेटे हुए हैं।

यूं तो उत्तराखंड के सभी जिलों का विशेष महत्व है। पौराणिक, धार्मिक आस्था के केंद्र यहां हैं। साथ ही इन जिलों में प्राकृतिक सौंदर्य भी बिखरा हुआ है। इनमें चंपावत जिला भी अपनी विशेष पहचान लिए हुए है। कभी ये जिला पिथौरागढ़ जिले का अंग था। यहां के मंदिर अपने में पौराणिक और पांडवों के काल की कहानियां समेटे हुए हैं। हम आपको इस जिले के बारे में यहां विस्तार से बताएंगे।
काली कुमाऊं भी है नाम
पिथौरागढ़ जिले की एक लंबे समय तक बनी रही तहसील चंपावत, आज स्वयं में एक स्वतन्त्र जिला है। चंपावत जिले को ही काली कुमाऊँ भी कहते हैं। इस जिले की सीमा इस प्रकार हैं- पूर्व में काली नदी, उत्तर में सोर, गंगोली व सरयू नदी, पश्चिम की ओर ध्यानीरौ, दक्षिण में लधिया नदी।

द्वावर में यहां पांडवों की क्षत्रियों से हुई थी लड़ाई
द्वापर युग के अन्त व कलिकाल के आरम्भ में जब कृष्णावतार हुआ, तो पाण्डवों ने समस्त जगत में दिग्विजय का उद्घोष किया। उस समय कहते हैं, उनकी लड़ाई यहाँ क्षत्रियों से हुई थी।


हिडिंबा और भीम का बेटा घटोत्कच्छ भी रहता था यहां
यह भी दन्तकथा है कि हिडिंबा से उत्पन्न भीमसेन का पुत्र घटोत्कच्छ जो महाभारत में कर्ण के हाथ मारा गया था, यहीं का रहने वाला था। अत: उसकी मृत्यु के बाद भीमसेन ने उसकी यादगार में एक मंदिर फुगर पहाड़ में चम्पावत के पास बनाया। जिसको इस समय घटकू देवता कहते हैं। इसके नीचे डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर हिडिम्बा के लिए मंदिर बनाया। यह अब तक प्रसिद्ध है। पानी अधिक बरसने पर स्थानीय लोग घटकू देवता के यहाँ दिया जलाते हैं। ऐसा करने पर पानी बरसना बन्द हो जाता है।
सूर्य देवता का मंदिर
इस जिले का पुराना नगर सुई पट्टी में था। जहाँ अब देवदार के वृक्ष है। इन वृक्षों की छाया में सूर्य देवता का मंदिर है। यह सूर्यवंशी राजाओं द्वारा स्थापित किया गया है। इस पहाड़ की तलहटी में अंग्रेजों ने लोहाघाट बसाया। जहाँ उस समय ब्रिटिश सेना रहा करती थी। जिस काल में सुई में नगर बसाया गया था। उस समय चंपावत घना जंगल था। बाद में चम्पावत के पश्चिमी ओर नगर बसा और वहाँ पर रावत जाति के राजा ने दौणकोट नामक किला भी बनाया।
सोमचंद राजा ने बसाया चंपावत नगर
इस नगर के भग्नावशेष अब भी कोतवाल चबूतरा व सिंगार चबूतरा कहलाते हैं। इस दौणकोट राजा की संतानें अभी पट्टीतला देश गाँव सल्ली में और गुमदेश में रहती है। सोमचंद राजा ने दौणकोट से अलग हटकर चंपावत बसाया। अंग्रेजों ने चंपावत की अनदेखी कर लोहाघाट को ही आबाद करने में रुचि दिखायी। चंपावत नदी के किनारे होने से इस का नाम चंपावत पड़ा। इसमें राजा सोमचन्द ने राजबुंगा नाम का किला बनाया। यहाँ आजकल सरकारी कार्यालय है।
कौटेलगढ़ किले को अपने लिए बनाया वाणासुर दैत्य ने
यहां सबसे पुराना किला कौटोल गढ़ है। कहते हैं कि वाणासुर दैत्य ने अपने लिये बनाया था। जब वह भगवान विष्णु से न मारा गया तो महाकाली ने प्रकट होकर उसे मारा। सुई को श्रोणितपुर भी कहते हैं। लोहा नदी उसी दैत्य के लहू से निकली है। अन्य किले सुईकोट, चुमलकोट, चंडीकोट, छतकोट, बौनकोट आदि भी खंडहर के रूप में है। ये छोटे-छोटे मंडलीय राजाओं द्वारा बनाये गये थे। खिलफती में अखिलतारिणी देवी और बाराही देवी भी है। बाराही देवी, देवीधुरा में है।


यहां के कई मंदिर देखने योग्य
चंपावत के पूर्व की ओर ऊँचा पर्वत है, जिसमें क्रान्तेश्वर महादेव है। यहीं कूर्मपाद भी है। पहाड़ की चोटी में मल्लाड़ेश्वर महादेव भी देवदार के जंगल में विद्यमान है। पश्चिम दिशा की ओर हिंगुलादेवी तथा सिद्ध का ऊँचा डांडा है। यहाँ नृसिंह देवता का मंदिर है जो सिद्ध के नाम से ख्याति प्राप्त है। चंपावत में बालेश्वर का मंदिर तथा.
बाबड़ी देखने योग्य है। यहाँ अन्य मंदिर ताड़केश्वर, बनलेख, हरेश्वर, मानेश्वर, डिप्टेश्वर, ऋषेश्वर, रामेश्वर व पंचेश्वर आदि है। मायावती यहाँ पर बड़ी सुन्दर तपोभूमि है। यह जिला बड़ा ठंडा है, यहाँ की जलवायु स्वास्थ्यप्रद है। यहाँ की बोली कुमाऊँ के अन्य जिलों की अपेक्षा अधिक नम्र है।
प्रसिद्ध थी खतेड़ा गांव की चरस
काली कुमाऊँ के बीच सुई या द्रौणकोट में बसने वाला राजा ध्यानीरौ व चोभैंसी का भी मालिक होता था। जिसका काम मालगुजारी वसूल करना तथा राजा की आज्ञानुसार चलना था। चंद राजा के समय इनका पद ‘बूढ़ा सयाना’ कहा जाता था। फुगर व चौकी के बोरा जाति के व्यक्ति अपने को यहाँ का सबसे पुराने निवासी मानते हैं। राजा के शासन काल में खतेड़ा गाँव की चरस बहुत प्रसिद्ध थी। फोती गाँव के लोग नित्य राजा के लिए तीतर शिकार को ले जाते थे। इसी प्रकार गौस्नी से हरा धनिया, कलख्वाण की मूली, चौसाल की घुइयाँ, सुई के गावा, पाड़ास्यूँ, का दही,
मछियाड़ के गेहूँ व नारंगी, सालम से बासमती आदि वस्तुएं राजा के लिए जाती थीं। आज भी यह वस्तुऐं इन क्षेत्रों में प्रसिद्धि पायी हुई हैं।
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लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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