प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को संघर्ष कर रहा है खेजड़ी वृक्ष, जानिए इसकी खासियतः राकेश यादव
राजस्थान में खेजड़ी पेड़ का संघर्ष प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण के माध्यम से सम्बंधित है। यहां की खेजड़ी वनस्पति पर्यावरण और पशु-पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण है। इस पेड़ की छाया धरती को ठंडक पहुंचाती है और इसके फल वन्य जीवों के लिए एक महत्वपूर्ण आहार स्रोत होते हैं। इंसानो के लिए सांगरी की सब्जी एक महत्वपूर्ण आय का स्त्रोत है। हालांकि, खेजड़ी पेड़ के संघर्ष का मुख्य कारण प्राकृतिक संसाधनों की कमी और जंगली प्रदूषण का असंतुलन है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राजस्थान की सूखे की स्थिति, अवैष्णिक मॉनसून कारण खेजड़ी पेड़ पर प्राकृतिक तथा मानवीय दबाव पड़ता है। अधिक और अधिक वन्य जीवों के संपर्क में आने के कारण इस पेड़ की वृद्धि धीमी हो रही है और इससे प्राकृतिक संतुलन प्रभावित हो रहा है। खेजड़ी का पेड़ राजस्थान राज्य में विशेष रूप से प्राथमिकता दी जाती है। यह रेगिस्तानी क्षेत्रों में आमतौर पर पाया जाता है और यहां की सूखे और कठोर मौसम शर्तों में भी समुचित ताल में अपने रोपण और विकास करने की क्षमता रखता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खासकर उष्णकटिबंधीय और तापीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण वनस्पति है जिसे भारतीय सबका पेड़ (भारतीय कैलेंडर में राष्ट्रीय पेड़ के रूप में मान्यता प्राप्त) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
ऊँचाई और आकार
खेजड़ी पेड़ मध्यम से बड़े आकार के होते हैं, जो विशाल ऊँचाई तक पहुंच सकते हैं। ये पेड़ एकायामी होते हैं, उनकी ऊँचाई लगभग 8-12 मीटर तक हो सकती है।
पत्ते
खेजड़ी पेड़ के पत्ते छोटे पतले परागीय होते हैं, जिनक परिधानीय आकार होता है। जो इसे बहुत आकारिक रूप से खूबसूरत बनाते हैं। और इनको सूखाकर जानवरो के लिए भूसे के रूप मे उपयोग किया जाता है।
फल संरचना
खेजड़ी पेड़ फलदार होते हैं और फल्ली पतली व लम्बी होती है जो फल्ली के रूप मे हो होती है जिसे राजस्थान मे सांगरी कहते है | इसको सूखा कर शब्जी के रूप मे उपयोग की जाती है और यह राजस्थान के लोगो के लिए आजीविका का स्त्रोत भी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खेजड़ी पेड़ का संघर्ष
राजस्थान राज्य में वन्यजीवों, पशु-पक्षियों, लोगों और पर्यावरण के बीच एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। कुछ मुख्य कारण इसमें शामिल हैं खेजड़ी पेड़ की अवैध कटाई, खेजड़ी पेड़ की लकड़ी को भोजन, ईंधन और अन्य उपयोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसकी अवैध कटाई और वनस्पति चोरी खेती क्षेत्रों में होती है, जिससे इसकी संख्या कम हो रही है।
जनसंख्या दबाव
बदलते जीवनशैली और बढ़ती जनसंख्या के कारण, लोगों की आवश्यकताओं के लिए भूमि का अधिक इस्तेमाल हो रहा है, जिससे खेजड़ी पेड़ की न्यूनतम वातावरणीय आवश्यकताओं पूरी नहीं हो पा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जल उपयोग
राजस्थान में पानी की कमी एक मुख्य समस्या है। खेजड़ी पेड़ एक सूक्ष्म जल स्रोत को अनुभव करने की क्षमता रखता है और जल संचयन करने में मदद करता है। लेकिन जल उपयोग के लिए खेजड़ी पेड़ की नियमित खटाई के कारण यह संकट में है।
सरकार के कदम
खेजड़ी पेड़ को संरक्षित करने और उसके विकास को सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान सरकार और संबंधित संगठन जैसे कि वन विभाग और पर्यावरण संरक्षण समूह द्वारा कई पहल चलाई जा रही हैं। इनमें खेती को बदलकर पानी की बचत करने वाली तकनीकों का अधिक प्रयोग, खेजड़ी पेड़ के लिए संरक्षण क्षेत्रों की खोज और सुरक्षा, और जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए सामुदायिक संगठनों के साथ सहयोग शामिल हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खेजड़ी पेड़ का आस्था से जुड़ाव
राजस्थान के गांवों में, खेजड़ी पेड़ को स्थानीय लोग पूजते हैं और इसे मानसिक और आध्यात्मिक महत्व देते हैं। कुछ लोग खेजड़ी पेड़ को पूजनीय मानते हैं और उसे अपने घरों के पास या अपने खेतों में बगीचे के रूप में लगाते हैं। यह पेड़ सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सवों के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे कि तीज और करवा चौथ। खेजड़ी पेड़ के पत्तों का उपयोग धार्मिक और सामाजिक कार्यों में भी होता है। लोग इसे पूजनीय पत्र के रूप में प्रयोग करते हैं।
खेजड़ी पेड़ राजस्थानी संस्कृति और परंपराओं में व्यापक रूप से स्थान पाता है और लोगों के जीवन के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका संरक्षण और सदुपयोग आर्थिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
लेखक के बारे में
राकेश यादव (डेसर्ट फेलो) बज्जू बीकानेर राजस्थान
मोबाईल नंबर- 8251028291
मेल – rakesh.kumar@ourdeserts.org
राकेश यादव होशंगाबाद नर्मदापुरम संभाग मध्यप्रदेश से हैं। वह पिछले 8 साल से सामाजिक क्षेत्र में बच्चों और युवाओं के साथ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का हिस्सा बने हैं। इसके साथ ही पिछले 5 साल से कला के माध्यम से कलाकारों के साथ काम कर रहे हैं। जो सामाजिक बदलाव की कहानी को कला से जोड़कर देख रहे हैं। वह वर्तमान में राजस्थान में अरविंद ओझा फेलोशिप उरमूल सीमांत समिति बज्जू बीकानेर में एक वर्ष की फेलोशिप कर रहे हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।