Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

June 27, 2025

कामवाली, एक डर का अहसास, शादी के लिए लड़की तलाशना आसान, लेकिन…

मैं जब सुनता तो मुझे यह काफी अटपटा लगता। क्योंकि जब कभी मैं नौकरी के सिलसिले में युवावस्था में घर से बाहर रहा तो मैंने या तो होटल में खाया या फिर खुद ही अपना काम किया।

वर्ष 2011 को मैं एक माह की कार्यशाला में भाग लेने नोएडा गया हुआ था। इस बड़े शहर स्थित जिस दफ्तर में मैं गया, वहां मुझे समूचे भारत की झलक दिखाई दी। कारण कि बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत कई राज्यों के लोग वहां काम करते नजर आए। साथ ही देश व विदेश के कोने-कोने के समाचार इस अखबार के दफ्तर में पहुंचते थे। वहीं से समाचार पत्र के सारे संस्करणों के लिए इन समाचारों को दुरुस्त कर जारी किया जाता था। खैर ये व्यवस्था तो अमूमन सभी समाचार पत्रो की है। नोएडा में मैं जिस सज्जन के बगल में अमूमन बैठता था, वह मुझसे उम्र में काफी छोटा था। एक नवयुवक जिसे सभी पांडे जी कहकर पुकारते थे।
पांडेय जी की ड्यूटी करीब शाम पांच बजे से रात के एक बजे तक रहती थी। इससे पहले का समय उन दिनों वह कामवाली की तलाश में गुजार रहे थे। कैंटीन व होटल का खाना खाते-खाते वह परेशान हो गए। इस पर किसी ने सलाह दी कि टीफन लगा लो। कुछ दिन लगाया भी, लेकिन घर तक खाना आते ठंडा हो जाता। इस पर वह सही ढंग से खाना नहीं खा पाए। तब उन्होंने उस कामवाली की तलाश शुरू कर दी, जो नियमित रूप से घर आकर खाना बना दिया करे।
अमूमन मेट्रो सिटी में नौकरी के लिए पहुंचे युवा मिलकर ही किराये का कमरा लेते हैं। खाने की व्यवस्था भी आपसी कंट्रीब्यूशन के हिसाब से चलती है। खाना बनाने के लिए कामवाली की व्यवस्था होती है। जो बर्तन साफ भी कर जाती है। अन्य काम युवक आपस में बांट कर करते हैं। ऐसे घर के सदस्य वही होते हैं, जो शादीशुदा नहीं होते या फिर जिनकी शादी हो रखी होती है, लेकिन पत्नी दूसरे राज्य व शहर में रहती है। पांडेजी भी कई दिनों से कामवाली की तलाश कर रहे थे। जैसे ही वह आफिस पहुंचते तो सभी सहयोगी उनसे एक ही सवाल पूछते कि कामवाली मिली या नहीं। फिर पांडे जी विस्तार से बताते कि कामवाली की तलाश में वह कहां-कहां गए। कितने परिचितों से मुलाकात की। कहां से क्या आश्वासन मिले।
मैं जब सुनता तो मुझे यह काफी अटपटा लगता। क्योंकि जब कभी मैं नौकरी के सिलसिले में युवावस्था में घर से बाहर रहा तो मैंने या तो होटल में खाया या फिर खुद ही अपना काम किया। ऐसे में मुझे पांडेजी की खोज ऐसे लगती जैसे वह किसी के लिए रिश्ता तलाशने जा रहे हों। मुझे लगता कि इतने दिनों में तो शायद वह पत्नी ही तलाश लेते, क्यों कामवाली की तलाश कर रहे हैं। उनकी बातों से तो यही लगता था कि पत्नी को तलाशना आसान है, लेकिन कामवाली को तलाशना काफी मुश्किल है।
एक दिन पांडेजी ने विजयी मुस्कान लेकर आफिस में कदम रखा। उनके कंधे में बैग टंगा हुआ था। एकसाथ सभी के मुंह से यही निकला बधाई हो कि कामवाली मिल गई। पांडे जी भी खुश थे। उन्होंने बताया कि कामवाली मिल गई और उसने काम करना शुरू भी कर दिया। तभी तो इस भोजनमाता के हाथ से बना खाना टीफन में लेकर आया हूं। कामवाली। सिर्फ एक शब्द का कितना महत्व है। ये शायद तब मैं नहीं जानता था। उसकी दया पर ही तो युवकों को जो खाना मिलता है, वह उनको अपने घर की याद दिला देता है। मानो लगता है कि वे अपनी मां के हाथों का खाना खा रहे हैं। फिर मां के हाथ के खाने से कामवाली के हाथ के खाने की तुलना होती है। मां के खाने में तो उसका प्यार उमड़ा रहता है। ऐसे में भारी तो मां के हाथों का खाना ही पड़ता है, लेकिन कामवाली के हाथ का खाना होटल से लाख गुना अच्छा लगता है।
दो दिन खाने का टीफन लाने बाद पांडे जी फिर बगैर बैग के आफिस पहुंचे। सभी ने पूछा कि क्या आज आपका ब्रत है। इस पर वह उदास होकर बोले कि आज कामवाली के साप्ताहिक अवकाश का दिन है। सप्ताह में एक दिन उसे अवकाश भी चाहिए। ऐसे में आज होटल में ही निर्भर हूं। सचपूछो तो देहरादून जैसे शहर में भी जो दंपती नौकरीपेशा वाले हैं, वे भी कामवाली की दया पर ही निर्भर हो रहे हैं। उनके लिए तो ज्यादा समस्या है, जो अखबार की नौकरी करते हैं और देर से घर पहुंचते हैं। ऐसे लोगों के घर पहुंचने का समय भी देर रात का होता है।
देर रात को घर जाकर खुद रसोई जोड़ना हरएक के बूते ही बात नहीं।
एक कई साल पुराना ऐसा ही किस्सा है। समाचार पत्र के एक दफ्तर में एक महिला कर्मचारी की दो बेटियां हैं। पति महाशय दूसरे दफ्तर में थे और वह रात 11 बजे घर पहुंचते थे। महिला की ड्यूटी भी शाम करीब चार बजे से रात 11 बजे तक रहती थी। जब उनकी छोटी बेटी हुई तो मातृत्व अवकाश की छुट्टियां काटने बाद भी महिला ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर सकी। कारण कि बच्चे रखने के लिए दून में ऐसा कोई क्रेच नहीं है, जहां रात 11 बजे तक छोटे बच्चों को छोड़ा जाए। बड़ी बेटी को तो महिला की मां ने संभाल लिया था, लेकिन दूसरी जब हुई तो उम्र के अंतिम पड़ाव में माताजी भी बच्चे को संभालने के लायक नहीं रही।
ऐसे में महिला के लिए दो ही विकल्प बचे थे। या तो नौकरी छोड़ दे, या फिर किसी ऐसी कामवाली को तलाशा जाए जो उसकी बेटी की देखभाल कर सके। आसानी से नौकरी मिलती नहीं। ऐसे में बढ़ती महंगाई में नौकरी छोड़ना भी सही नहीं है। फिर तलाश हुई कामवाली की। कामवाली मिली, लेकिन महिला ड्यूटी पर नहीं पहुंची। कामवाली ने कहा कि पहले बेटी उसे पहचानने लगे और उससे हिलमिल जाए। तभी वह उसे संभालेगी। करीब पंद्रह दिन कामवाली और बेटी के बीच महिला घर पर रही। फिर कामवाली ने बेटी को संभालना शुरू किया।
इसके करीब एक साल बाद इस महिला की स्थिति ऐसी हो गई कि कि वह अगर किसी से डरती थी तो वो उसकी कामवाली थी। यदि किसी बात पर कामवाली नाराज हो जाए तो वह धमकी दे डालती है कि किसी दूसरी कामवाली की व्यवस्था कर लो। पैसे बढ़ाने हो तो इस डायलॉग से कामवाली का काम चल जाता है। महिला अपने साप्ताहिक अवकाश में भले ही ड्यूटी कर ले, लेकिन जब कामवाली को छुट्टी चाहिए होती तो उसे भी छुट्टी मारनी पड़ती। ऐसे में आफिस में छुट्टी मारने के लिए क्या कारण बताए। जैसे जैसे समय बीतता गया कामवाली की छुट्टियां भी बढ़ती गई। अपना कारण तो व्यक्ति कुछ भी बता सकता है, लेकिन बार-बार कामवाली के धोखा देने का कारण दफ्तरों में कब तक चलेगा।
ऐसे में इस महिला का हर दिन नई कामवाली की तलाश में शुरू होने लगा। पर यह भी सच है कि जो बच्ची किसी कामवाली से हिलमिल गई हो, उसकी तरह उसे दूसरी कामवाली नहीं मिल पाती। अधिकांश निजी संस्थानों में कार्यप्रणाली की व्यवस्था रहती थी कि यदि कोई एक अवकाश मांगता है तो उसके बदले उस व्यक्ति को अपने साप्ताहिक अवकाश के दिन ड्यूटी करनी पड़ती थी। इसे अर्जेस्टमेंट का नाम दिया जाता है। ऐसे में महिला के आफिस में सभी सहयोगी हर दिन अपने साप्ताहिक अवकाश में डरे रहते थे कि कहीं उनके साथ काम करने वाली महिला की कामवाली धोखा न दे जाए। ऐसे में उनकी छुट्टी का मजा किरकिरा हो जाएगा। सचमुच एक कामवाली ने एकसाथ कितनों को डरा रखा है। नतीजा ये निकला कि कामवाली की तलाश कर रही महिला को खुद ही नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा।
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page

Užitečné tipy a triky na každý den, chutné recepty a užitečné články o zahradničení - to všechno naleznete na našem webu. Buďte inspirativní a objevte skrytý potenciál své zahrady s našimi informacemi a návody. Buďte sebou, buďte kreativní a buďte zdraví s našimi praktickými tipy pro každodenní život! Politolog: Nepřišlo ke Jak správně zrát rajčata: Jak nakrmit celou rodinu lahodnými cuketovými pokrmy - Jak si rychle uvázat šátek Tajemství dokonalých okurek: jak se vyhnout Jak jsem ztratil váhu odejít Jak efektivně odstraňovat skvrny od třešní 4 způsoby přípravy černého Jak na jednoduchý trik, který Jak dlouho můžete skladovat oblíbený dort: tipy Jak jednoduchý lék Nečekaný výsledek: Proč vkládat punčocháče Capron do mrazáku? Umění přípravy perfektních mladých brambor - úžasný Mezoterapie nebo biorevitalizace: kosmetička vysvětluje, co Chcete-li zjistit nejlepší triky a recepty pro domácí vaření, zahradničení a životní styl, jste na správném místě! Naše stránka je plná užitečných článků a návodů, které vám pomohou vytvořit zdravý a pohodlný životní styl. Navštivte nás pravidelně pro nové tipy a triky pro vaši kuchyni, zahradu a každodenní život.