कालसर्प योगः प्रामाणिकता पर ज्योतिषों के दो मत, व्याख्या कर रहे हैं आचार्य पंकज पैन्यूली, इस बार 13 अगस्त को नाग पंचमी
कालसर्प योग प्रामाणिक या केवल मिथक?
आगामी 13 अगस्त 2021 को नागपंचमी का पर्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जन्मकुंडली में उपस्थित कालसर्प दोष का निवारण करने से उसका दुष्प्रभाव दूर हो जाता है। इससे चलते लाखों लोग इस दिन कालसर्प दोष का निवारण करवाते आ रहे हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी लाखों लोग हैं, जिनका यह मानना है कि कालसर्प योग ज्योतिषीय योग नहीं है। यहां तक कि कुछ ज्योतिष के जानकार भी इस योग का समर्थन नही करते हैं। कुछ ज्योतिषियों ने तो सार्वजनिक रूप से मीडिया में आकर कालसर्प योग को पूरी तरह निराधार बताया है। फलस्वरूप यह योग आज भी संशयात्मक और विवाद का विषय बना हुआ है। अर्थात ना तो इसको पूर्ण समर्थन मिला है। ना ही पूरी तरह से निराधार ही सिद्ध हुआ है।
ज्योतिष शास्त्र में नहीं है उल्लेख
अब प्रश्न आता है कि क्या इस योग को स्वीकार किया जाना भी चाहिए या नही? दूसरा प्रश्न कि जब इस योग का ज्योतिष शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नही है तो इस योग की गणना ज्योतिष के अन्य योगों के साथ कैसे और क्यों होने लगी। यह भी एक प्रश्न हो सकता है कि इस इस योग का नाम कालसर्प ही क्यों रखा गया? आदि-आदि। ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं जिनका निराकरण आवश्यक हो जाता है। अतः आज हम इस योग के बारे कुछ तथ्य प्रस्तुत करना चाहते हैं। जो सुधी पाठकों के लिए परम उपयोगी होंगे।
इस श्लोक की पंक्ति में ही कालसर्प का उल्लेख
सबसे पहले हम चाहते कि इस योग के बारे में जो मुख्य शंका है, उसपर विराम लगे। मुख्य शंका है कि ज्योतिष के अन्य योगों के साथ उल्लेख न होने पर भी प्रचलन में आना। ये कुतर्क निराधार है। ज्योतिष के प्राचीनतम ग्रंथ पाराशर होरा शास्त्र में इस योग का संदर्भ इस श्लोक की पंक्तियों में स्पष्ट रूप से मिलता है-राहु केतु ग्रहे मध्ये विघ्नदा: कालसर्प संज्ञक:। इस पंक्ति का भावार्थ यह है कि जब “राहु”और “केतु” के बीच सारे ग्रह आ जाते हैं तो ये योग जातक की उन्नति में बाधक बन जाता है। अतः जातक की शिक्षा, नौकरी, व्यापार, वैवाहिक जीवन आदि में रुकावट पैदा करता है। पंक्ति के अन्तिम वाक्यमें यह भी स्पष्ट लिखा है कि इस “बाधा कारक ” योग को “कालसर्प योग की संज्ञा दी जाती है। संज्ञा अर्थात नाम। संभवतः पहले इस योग को “जतोनाम ततो” गुण के आधार पर “बाधक” योग कहते होंगे। जो कालान्तर में अब “कालसर्प नामक योग” के रूप में प्रचलित होने लगा है। अतः उक्त आधार पर यह योग प्रामाणिक और ज्योतिषीय ही लगता है।
इसलिए दी गई कालसर्प की संज्ञा
अब सवाल है कि इस योग को “कालसर्प” की संज्ञा क्यों दी गई? वैसे तो इस संदर्भ में अनेकों ज्योतिषीय मत और तथ्य हैं, लेकिन यदि हम उसमें जायेंगे तो अति विस्तार हो जायेगा। हमें तो केवल नाम के पीछे का भाव समझना है। मूलतः राह-केतु दैत्य ग्रह हैं। ज्योतिष में इन्हें छाया ग्रह भी कहते हैं। वस्तुतः जब राहु और केतु के दुष्प्रभाव में सारे ग्रह आ जाते हैं तो जातक की मनस्थिति, बुद्धि, सोच-विचार, निर्णय शक्ति आदि कमजोर, खराब या दूषित हो जाते हैं। जिस कारण जातक प्रत्येक क्षेत्र में असफल रहता है। जो जीवन में असफल होतें हैं, उन्हें धीरे-धीरे निराशा और उदासी जकड़ लेती है। इस कारण जीवन में नीरसता आ जाती है। सामान्य भाषा में कहें तो ऐसे लोगों के जीवन में विष घुल जाता है। संभवतः उक्त योग का नाम “सर्प’से जोड़ा गया होगा। क्योंकि सर्प को बिष का मुख्य प्रतीक माना जाता है। सर्प के साथ काल जोड़ने के पीछे दो भाव हो सकते हैं। काल को समय भी कहते हैं और मृत्यु भी। वस्तुतः इस योग से पीड़ित व्यक्ति का बार-बार असफल होने से समय भी खराब होता है। पर्याप्त धन, संसाधन न होने के कारण मृत्यु तुल्य कष्टों से भी गुजरता है।
रामचरित्र मानस से समझने की कोशिश
राम चरित्र मानस में तुलसीदास जी ने भी कहा है-कि नहि दरिद्र सम दुःख जग माही। अर्थात संसार में सबसे बड़ा दुःख “दरिद्रता” ही है। “संभवतः इस योग का नाम ‘कालसर्प” निर्धारित करने का मुख्य कारण हो सकता है। कयोंकि ज्योतिष के अन्य अनेकों ऐसे योग हैं। जिनका नाम उसकी विशेषता, गुण, धर्म के आधार पर रखा गया है। जैसे गजकेसेरी योग, सरस्वती योग आदि। गजकेसेरी योग ज्योतिष का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण योग है। इसका संबंध पशुजाति में सबसे विशालकाय प्राणी हाथी से जोड़ा गया है। उसी प्रकार विद्या कारक योग का नाम विद्या की देवी सरस्वती से जोड़ा गया है। अतः उक्त योग को जो जातक की कुंडली विशेष में अति बाधाकारक होकर जातक की उन्नति, सुख, शान्ति आदि में बाधक बन जाता है। उस योग को विष के प्रतीक सर्प से जोड़ना युक्ति संगत ही लगता है।
इन परिस्थितियों में घातक होता है कालसर्प योग
सवाल उठता है कि क्या कुंडली में बनने वाला “कालसर्प योग” हमेशा ही घातक होता है? ऐसा बिल्कुल भी नही है। मुख्य रूप से कालसर्प योग तब ज्यादा हानिकारक अथवा बाधाकारक बनता है, जब कुंडली के लग्नादि भावों के क्रम में पहले राहु और बाद में केतु आता है। बीच में सारे ग्रह। ज्योतिष में राहु को मुख और केतु को पूंछ भी कहा जाता है। अतः राहु जो कि दैत्य रूप है। उसके सम्मुख ग्रहों का आ जाना अनुचित ही होगा। हालाँकि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में कोई भी एक खराब या अच्छा योग उसके सम्पूर्ण जीवन को निर्धारित या दुष्प्रभावित नही करता है। अन्य ग्रहों की स्थिति और योग आदि को देखने के बाद ही अन्तिम निर्णय लिया जाता है।
12 प्रकार के हैं काल सर्प योग
कुंडली के बारह भावों में राहू-केतु की उपस्थिति को दर्शाने के लिए कुल बारह प्रकार के काल सर्प दोष प्रचलन में हैं। इनको कर्म भाव के अनुसार ही समझा जा सकता है।
1. अनंत
2.कुलिक
3. वासुकी
4.शंखपाल
5.पद्म
6.महा पद्म.
7तक्षक
8.कर्कोटक
9.शंखचूड़
10.घातक
11.विषधर
12.शेषनाग
काल सर्प को तीव्र बनाने वाले ज्योतिष के अन्य योग
1.गुरु राहु की युति अर्थात चाण्डाल योग।।
2.गुरु शुक्र युति अभोत्वक योग।।
3.मंगल राहु युति अंगारक योग।।
कालसर्प दोष का निवारण
1.नागपंचमी के दिन या किसी भी सोमवार के दिन भगवान शंकर का और राहू के मंत्र का जप करें।।
2.नित्य ॐ नमः शिवाय का मंत्र जप।।
3.कुल देवता की उपासना।।
4.कालसर्प योग यंत्र की विधिवत स्थापना व नित्य पूजन।
5.राहु ग्रह के 72 हजार मंत्र जप करायें।
6. शिवलिंग पर विधिपूर्वक तांबे या चांदी का नाग चढ़ाये।
7.नौ प्रकार के नागों की प्रतिमा बनाकर नदी में प्रवाहित करें।
कुछ अन्य उपाय भी जो प्रचलन में हैं
01.कोयले को चलते पानी में छोड़े।
02.मूली का दान करें।
03. घर के प्रवेश द्वार की चौखट पर स्वास्तिक बनायें।
आचार्य का परिचय
आचार्य पंकज पैन्यूली
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक गुरु, संस्थापक भारतीय प्राच्य विद्या पुनुरुत्थान संस्थान ढालवाला। कार्यालय-लालजी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मुनीरका, नई दिल्ली। शाखा कार्यालय-बहुगुणा मार्ग पैन्यूली भवन ढालवाला ऋषिकेश, जिला देहरादुन, उत्तराखंड।
सम्पर्क सूत्र-9818374801,,,,8595893001
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।