नोटबंदी पर जस्टिस नागरत्ना का बयान पीएम मोदी को करेगा असहज, बोलीं- जब 98 फीसद करेंसी वापस आई, तो काला धन कहां हुआ खत्म
एक बार फिर से नोटबंदी का जिन्न बोतल से बाहर निकल गया। वो भी लोकसभा चुनावों के दौरान। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार का असहज होना लाजमी है। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी, काले धन और गवर्नरों के विषय में बेबाक टिप्पणी की। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने यह बयान हैदराबाद में ‘कोर्ट्स एंड द कॉन्स्टीट्यूशन’ सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर दिए। अपनी एक कैंडिड स्पीच के दौरान उन्होंने कई अहम मुद्दों का जिक्र किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देश की सर्वोच्च अदालत की न्यायाधीश जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने बताया कि वह नोटबंदी के कदम के बाद आम आदमी की दुर्दशा को देख प्रभावित व विचलित हुईं। उन्होंने कहा कि 86% करेंसी ₹500 और ₹1,000 के नोटों की थी। शायद केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। 98% करेंसी वापस आ गई, तो काले धन के उन्मूलन में हम कहां हैं? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याद दिला दें, नोटबंदी के समय सरकार व सत्तारूढ़ दल बीजेपी की ओर से ‘काले धन के खात्मे’ को एक अहम लक्ष्य बताया गया था। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने आगे कहा कि मुझे खुशी है कि मैं उस बेंच का हिस्सा रही। हम सभी जानते हैं कि 8 नवंबर 2016 को क्या हुआ था। एक मजदूर की कल्पना कीजिए, जिसको दैनिक जरूरी सामान के लिए अपने नोट बदलवाने थेष उस समय मैंने सोचा यह काले धन को सफेद बनाने, सिस्टम में बेहिसाब नकदी का प्रवेश करने का एक अच्छा तरीका था। उसके बाद आयकर कार्यवाही के संबंध में क्या हुआ, हम नहीं जानते। तो इस आम आदमी की परेशानी ने मुझे सचमुच विचलित कर दिया और इसलिए मेरी असहमति रही। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि मैंने केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ असहमति जताई, क्योंकि इससे आम आदमी को काफी परेशानी उठानी पड़ी। मुझे लगा था कि प्रतिबंध से भारत सरकार ने कथित तौर पर काले धन के खिलाफ कार्रवाई की। सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया, जो कुल मुद्रा का 86 प्रतिशत था। 98 प्रतिशत पुराने नोट बैंकों में वापस भी आ गए, लेकिन उसके बाद आयकर विभाग की कार्रवाई के बारे में क्या हुआ। सरकार के इस फैसले से आम आदमी बहुत अधिक परेशान हो गया। आम आदमी की दुर्दशा के कारण ही मुझे असहमति जतानी पड़ी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2023 में 4:1 के बहुमत से विमुद्रीकरण योजना की वैधता को बरकरार रखा था। मामले में सिर्फ जस्टिस नागरत्ना ने असहमति जताई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ना काला धन वापस आया और ना ही नकली नोटों पर लगा अंकुश
गौरतलब है कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था। इसके तहत 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को चलने से बाहर कर दिया था। इसके बदले में 500 के नए नोट जारी किए गए थे। एक हजार का नोट बंद ही हो गया और इसकी जगह 2000 का नोट आयाष जब नोटबंदी की गई थी, तब पीएम नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि इससे आतंकवाद पर लगाम लगेगी। कालाधन वापस आएगा। ना तो काला धन ही वापस आया और ना ही आतंकवाद पर लगाम लगी। इसके उलट दो हजार के नोटों का इस्तेमाल ब्लैक मनी के रूप में किया जाने लगा। वहीं, नोटबंदी से लाखों लोगों का कारोबार डूब गया था। साथ ही बड़ी तादात में लोग बेरोजगार हो गए थे। बाद में दो हजार के नोटों को भी चलन से बाहर कर दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस दौरान पंजाब के राज्यपाल का जिक्र करते हुए उन्होंने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों को अनिश्चितकाल तक रोक के प्रति आगाह किया। संविधान सम्मेलन में उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उनके पास फ्लोर टेस्ट की घोषणा करने के लिए पर्याप्त सामाग्री ही नहीं थी। उन्होंने कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को अदालतों के समक्ष विचार के लिए लाना कानून के अनुसार स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि मुझे राज्यपाल कार्यालय से अपील करनी चाहिए कि यह एक संवैधानिक पद है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए, जिससे इस प्रकार के मुकदमेबाजी अदालत में कम हों। राज्यपालों को किसी काम को करने या न करने के लिए कहना काफी शर्मनाक है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनातनी की स्थिति पैदा होना कोई नई बात नहीं है. हाल के दिनों में कुछ प्रदेशों में राजभवन और सरकार के बीच टकराव की स्थिति इस हद तक बढ़ गई कि मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। अब देश की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत की एक वरिष्ठ जज ने राज्यपालों की भूमिका पर अहम टिप्पणी की है। उच्चतम न्यायालय की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि राज्यपालों को कुछ करने या न करने के लिए कहना काफी शर्मनाक है। गवर्नर को संविधान के प्रावधानों के अनुसार अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को संवैधानिक अदालतों के समक्ष विचार के लिए लाना संविधान के तहत एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आगे कहा कि मुझे लगता है कि मुझे अपील करनी चाहिए कि राज्यपाल का कार्यालय (हालांकि इसे राज्यपाल पद कहा जाता है) और गवर्नर का पद एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए, ताकि इस प्रकार की मुकदमेबाजी कम हो सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पाकिस्तानी न्यायाधीश ने भी सम्मेलन को किया संबोधित
सम्मेलन में नेपाल और पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालायों के न्यायाधीश- न्यायमूर्ति सपना प्रधान मल्ला और सैयद मंसूर अली शाह के संबोधन सुने गए। साथ ही तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराध और एनएएलएसएआर के चांसलर न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।