दून में 15 को निकलेगा जोशीमठ एकजुटता मार्च, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच व उत्तराखंड विमर्श की गोष्ठी में निर्णय
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मंच के प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन नेगी के संचालन में आयोजित गोष्ठी में जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती, वरिष्ठ माकपा नेता सुरेंद्र सिंह सजवाण, अधिवक्ता व डीएवी कॉलेज छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष पंकज क्षेत्री, वरिष्ठ कर्मचारी नेता जगमोहन मेहंदीरत्ता, उत्तराखंड विमर्श की ओर से संयोजक व पत्रकार जितेंद्र अंथवाल, उत्तरांचल प्रेस क्लब के अध्यक्ष अजय राणा, वरिष्ठ पत्रकार गौरव मिश्रा, मंच की ओर से आंदोलनकारी पूरण सिंह लिंगवाल, सत्या पोखरियाल, मोहन रावत, पुष्पलता सिल्माना, पूर्व पार्षद गणेश डंगवाल, नवनीत गुसाईं, उषा भट्ट आदि ने विचार व्यक्त किए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गोष्ठी में सभी ने एक सुर से विकास के नाम पर पहाड़ और उसके संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर चिंता जताते हुए कहा कि जोशीमठ सिर्फ सांस्कृतिक-ऐतिहासिक महत्व का एक पहाड़ी नगर भर नहीं है। चीन सीमा का नजदीकी जोशीमठ देश की सामरिक सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण नगर है। इसलिए, जोशीमठ को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ उत्तराखंड की न होकर पूरे देश की होनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वक्ताओं ने इस बात पर भी रोष जताया कि राज्य बनने के बाद यहां आपदाओं की बाढ़ सी आ गई, जबकि पहले ऐसा नहीं था। बावजूद इसके सरकारें लापरवाह बनी रही हैं और आज तक न तो इन आपदाओं के वास्तविक कारणों का पता लगाने को कोई व्यापक सर्वे कराया गया और न पहाड़ों पर निर्माण संबंधी नीतियों को यहां के अनुकूल बनाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गोष्ठी में सरकार से मांग की गई कि जोशीमठ का व्यापक भू-गर्भीय सर्वे कराकर सबसे पहले इसके धंसाव के कारणों का पता लगाया जाए। साथ ही यह पता लगाना भी जरूरी है कि कितने क्षेत्र को अन्यत्र पुनर्वासित किया जाना नितांत आवश्यक है और कितने को ट्रीटमेंट के जरिए सुरक्षित किया जा सकता है। सिर्फ जोशीमठ ही नहीं, सभी पहाड़ी नगरों के लिए अविलंब ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम पर कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए। जिन जोशीमठवासियों का विस्थापन जरूरी है, उन्हें उनके परिवेश के अनुरूप ही किसी नजदीकी क्षेत्र में मास्टरप्लान के जरिए नया नगर डेवलप कर बसाया जाए। साथ ही उनकी आजीविका के संसाधनों को सुनिश्चित किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यह भी सुझाव बैठक में आया कि राज्य सरकार तत्काल उत्तराखंड में स्थित उद्योगों, यहां स्थित टीएचडीसी, एनटीपीसी, ओएनजीसी, बीएचईएल समेत तमाम बड़ी कंपनियों के साथ बैठक कर उन्हें पुनर्वास के लिए आवास निर्माण कराकर देने को कहे। ऐसा होने से सरकार और आमजन पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। जो लोग विस्थापित किए जाएं, उन्हें उनके मूल आवास जितनी भूमि और सब्सिडाइज्ड रेट पर निर्माण सामग्री मुहैया कराई जाए। साथ ही जोशीमठ के बारे में जो भी निर्णय हो, वह वहां के प्रभावितों की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए हों। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गोष्ठी में इस बात पर खासतौर से जोर दिया गया कि उत्तराखंड में निर्माणाधीन टनल आधारित या बड़ी परियोजनाओं और सड़कों के अंधाधुंध निर्माण के मामलों की पुनर्समीक्षा की जाए। इसके लिए भू-वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, तकनीकी संस्थानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत विभिन्न पक्षों की कमेटी गठित की जानी चाहिए। साथ ही मसूरी, नैनीताल समेत बेतरतीब ढंग से फैलते पहाड़ी शहरों की वहन क्षमता का भी व्यापक तौर पर आंकलन करवाते हुए जरूरी कदम उठाए जाएं। साथ ही बहुमंजिले निर्माण पर रोक लगाई जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दरक रहा है जोशीमठ
गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में धंसते जोशीमठ में तबाही का खतरा गहराने लगा है। यहां जमीन धंसने के कारण 600 से ज्यादा घरों में दरारें आ गई हैं। हाईवे दरक गए। भवन और मकानों में दरारें आ गई। कई मंदिरों पर भी खतरा मंडरा रहा है। कई स्थानों पर पानी के स्रोत फूट गए। ऐसे में लगभग 600 से ज्यादा परिवारों को उनके घर खाली करने का आदेश दे दिया गया था। अब प्रभावित भवन 700 से ज्यादा हो गए हैं। साथ ही चारधाम ऑल वेदर रोड (हेलंग-मारवाड़ी बाईपास) और एनटीपीसी की पनबिजली परियोजना जैसी मेगा परियोजनाओं से संबंधित सभी निर्माण गतिविधियों पर स्थानीय निवासियों की मांग पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गई है। जोशीमठ औली मार्ग आवागमन भी बंद कर दिया गया है। राज्य सरकार ने कहा है कि जिन लोगों के घर प्रभावित हुए हैं और उन्हें खाली करना है। उन्हें मुख्यमंत्री राहत कोष से अगले छह महीने के लिए मकान किराए के रूप में 4,000 रुपये प्रति माह मिलेंगे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।