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September 23, 2024

संयुक्त मजदूर संगठनों ने देहरादून में किया प्रदर्शन, मोदी सरकार का जलाया पुतला, ये हैं मुख्य मांगें

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केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए श्रम विरोधी चार श्रम संहिताओं को निरस्त करने, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण समाप्त करने, रोजगार में ठेकाकरण को बंद करने, भर्ती पर प्रतिबंध की नीति को रद्द करने की मांगों को लेकर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आज संयुक्त मजदूर संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन किया। इस मौके पर मोदी सरकार का पुतला दहन किया गया। प्रदर्शन में सीआईटीयू, एटक, इन्टक से जुड़े प्रतिनिधि शामिल हुए। सबसे पहले उन्होंने देहरादून ‌के राजपुर रोड स्थित सीटू कार्यालय के गांधीपार्क तक जुलूस निकाला। इसके बाद गांधी पार्क के समक्ष केन्द्र की मोदी सरकार का पुतला दहन ‌किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मौके पर वक्ताओं ने कहा है कि चारों श्रम संहिताओं का उद्देश्य श्रमिकों पर गुलामी की वास्तविक स्थितियों को संस्थागत बनाना है। शासक कॉरपोरेट वर्ग की परियोजना को सुविधाजनक बनाना है। इसके तहत कामकाजी लोगों के परिभाषित कार्य स्थितियों, न्यूनतम वेतन, कार्य के घंटे और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ संगठित होने के अधिकार, सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार और हड़ताल करने के अधिकार के लगभग सभी वैधानिक अधिकारों को समाप्त किया जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा है कि श्रम संहिताओं के कारण श्रमिकों के लिए ट्रेड यूनियनों में संगठित होना लगभग असंभव हो गया है। यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मुख्य सम्मेलनों 87 और 98 द्वारा प्रदान किए गए संघ और सामूहिक सौदेबाजी की स्वतंत्रता के श्रमिकों के अधिकार और भारत के संविधान पर सीधा हमला है। यह इस सरकार द्वारा अपने कॉरपोरेट आकाओं के लिए “ट्रेड यूनियन-मुक्त कार्यस्थल” सुनिश्चित करने का एक ज़बरदस्त प्रयास है। इसके अलावा, कोड में नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों को काम पर रखने और निकालने की स्वतंत्रता को अच्छी तरह से सुनिश्चित किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं नै कहा है कि मोदी सरकार ने 29 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदल दिया था। इनमें मजदूरी संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता शामिल हैं। चार श्रम कोड नवउदारवादी शासन का हिस्सा हैं, जो पूंजी तथा श्रम संबंधों के पूरे दायरे को बदलना चाहता है। संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बड़े हिस्से को, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की तो बात ही छोड़िए, अधिकांश श्रम कानूनों के दायरे से बाहर करना चाहता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि वेतन संहिता 2019 में संसद में पारित की गई थी। अन्य तीन संहिताएं सितंबर 2020 में बिना किसी बहस के पारित की गईं, जब पूरा विपक्ष अनुपस्थित था। क्योंकि उसने कृषि विधेयकों को लेकर संसद का बहिष्कार किया था। वक्ताओं नै कहा कि वेतन संहिता में न्यूनतम वेतन तय करने का आधार शामिल नहीं है, यह केवल पूंजीपतियों के लाभ के लिए है। व्यापार करने में आसानी सुनिश्चित करने के उनके अभियान का हिस्सा है। इस अधिनियम के माध्यम से नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों पर कानून का उल्लंघन और लूट को वैध बनाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

यही कारण है कि पूरा ट्रेड यूनियन आंदोलन इन श्रम संहिताओं का कड़ा विरोध कर रहा है। साथ ही उन्हें खत्म करने की मांग कर रहा है। वक्ताओं ने कहा कि किसानों और खेत मजदूरों के संगठन और प्रगतिशील लोगों के सभी वर्ग इस मांग को अपना समर्थन दे रहे हैं। मोदी सरकार ने 2015 से वार्षिक ILC-भारतीय श्रम सम्मेलन की बैठक नहीं बुलाई है, जो बेहद निंदनीय है। इससे सरकार का तानाशाही चरित्र और भारत के संविधान के प्रति अनादर उजागर होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एसकेएम ने किसानों और मजदूरों से आह्वान किया कि वे 4 श्रम संहिताओं के खिलाफ एकजुट संघर्ष को तेज करें और मोदी सरकार को अपनी मजदूर विरोधी, जन विरोधी नवउदारवादी नीति व्यवस्था को वापस लेने के लिए मजबूर करें। जैसा कि किसानों ने मजदूरों के समर्थन से कृषि कानूनों के मामले में किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रदर्शनकारियों में सीटू के प्रांतीय सचिव लेखराज, एटक के प्रांतीय महामन्त्री अशोक शर्मा, इंटक के जिलाध्यक्ष अनील कुमार, सीटू के जिला उपाध्यक्ष भगवंत पयाल, किसान सभा के राजेन्द्र पुरोहित, अनंत आकाश, भीम आर्मी के नगर अध्यक्ष आजम खांन, एसकेएम के संयोजक गंगा धर नौटियाल, एसएस नेगी, रविन्द्र नौढियाल, नरेंद्र सिंह, आशा यूनियन की प्रांतीय महामन्त्री लोकेश देवी, सोनू सिंह, मंगरु सिंह, अनिल सिंह, हरीश कुमार आदि शामिल थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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