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April 11, 2025

देहरादून में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना की पुस्तक का लोकार्पण

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में अभिनय की व्यवहारिक तकनीक पर आधारित सप्रसिद्ध रंगकर्मी, नाट्य निर्दशक और इप्टा के राष्ट्रीय अद्ययक्ष की ओर से लिखित किताब एक्टिंग एंड बियोंड का लोकार्पण सप्रसिद्ध नाटकका लेखक राकेश, अभिनेत्री रंगकर्मी वेदा और रंगकर्मी वीके डोभाल ने संयुक्त रूप में किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मौके पर प्रसन्ना ने बताया कि इस पुस्तक का लेखन कुछ वर्ष पहले शुरू हुआ था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पा रही थी। इसका कारण यह था कि मैं एक ऐसी पुस्तक नहीं लिखना चाहता था, जो केवल तकनीकी शब्दजाल से भरी हो। मुझे तकनीकी शब्दों से चिढ़ है। वास्तव में पूरी दुनिया अब तकनीकी शब्दजाल में उलझ चुकी है। यह पाप करने के बाद अब दुनिया को यह एहसास हो रहा है कि हम खुद को उस प्रौद्योगिकीय विनाश से नहीं बचा सकते, जिसे जलवायु संकट कहा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि मैं रंगमंच से जुड़ा हूँ। ये एक ऐसा क्षेत्र है, जो तकनीक के ठीक विपरीत है। रंगमंच सजीव संवाद और मानवीय अभिव्यक्ति के लिए है। इस असाधारण सत्य खोजी खेल में अभिनेता केंद्र में होता है, न कि पैसा। हम स्वचालित दुनिया के ठीक उलट हैं। अब हमें एक तरह का बंधुआ मज़दूर बना दिया गया है। भले ही हमें अच्छा वेतन मिलता हो। हम अब एक अराजक और हिंसक डिजिटल मनोरंजन का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले मज़दूर भर रह गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि इस अजीब स्थिति में, यह पुस्तक अभिनेता को फिर से सच्ची अभिनय प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास करती है। सच्ची अभिनय प्रक्रिया में मैं महसूस करता हूँ कि अभिनय केवल अभिनेताओं के लिए ही नहीं, बल्कि नागरिकों के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। बस दोनों इसे विपरीत दिशाओं से अपनाते हैं। अभिनेता जो एक झूठ से शुरू करते हैं, वे इसे “प्रेरित अभिनय” कहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रसन्ना ने बताया कि इस पुस्तक का रूपांतरण में मैने इस सत्य को ठीक से कहने के लिए, महसूस किया कि पुस्तक अनुभव-आधारित होनी चाहिए। इसलिए मैंने खुद को ग्लैमर सिटी मुंबई के ‘अभिनय बस्ती’ में स्थापित किया और इस पुस्तक को वहीं केंद्रित किया। मैंने इसे एक अच्छे नीयत वाले अभिनय शिक्षक और युवाओं के एक समूह के बीच संवाद के रूप में फिर से लिखना शुरू किया। तब पुस्तक आगे बढ़ी। वहाँ मैंने खुशी भी महसूस की और दुख भी। अभिनेताओं की बस्तियों में रहना एक झकझोर देने वाला अनुभव था, लेकिन वहाँ की ऊर्जावान और संघर्षरत युवा पीढ़ी से संपर्क कर मुझे अत्यंत खुशी हुई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

ये युवा गहरे और व्यक्तिगत रूप से अपनी भावनाएँ व्यक्त करना चाहते हैं। वे अभिनेता, गायक, नर्तक, लेखक—कुछ भी बनना चाहते हैं। लेकिन उनमें एक चीज़ की कमी है—सच्ची क्रिया। और इसके लिए मैं हम, बूढ़ों को जिम्मेदार मानता हूँ। प्रसन्ना ने कहा कि यह एक विपर्यय (पैराडॉक्स) है। हमने जीवंत रंगमंच और डिजिटल मनोरंजन के बीच का अंतर मिटा दिया। हमने इसको वह और उसको यह समझ लिया। और अब हम युवा पीढ़ी को दोष दे रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं नाटककार राकेश वेदा ने कहा कि संवाद अदायगी का सत्य यह पुस्तक एक और महत्वपूर्ण विषय की वकालत करती है। संवाद तभी सत्यपूर्ण लगता है, जब उसे और वह भी केवल आवश्यक होने पर किसी क्रिया के बाद बोला जाए। यह सिद्धांत सिर्फ़ अभिनेताओं पर ही नहीं, बल्कि नागरिकों पर भी लागू होता है। आज हर कोई यूँ ही बोले जा रहा है। मानो सत्य सिर्फ़ शब्दों का खेल हो। इसका कारण यह है कि क्रिया, प्रेरणा, गतिविधि और उत्पादकता। ये सभी चीज़ें हमसे मशीनों ने छीन ली हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि अब यह मायने नहीं रखता कि बोले गए शब्द सत्य हैं, असत्य हैं, आवश्यक हैं या अनावश्यक। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि आज हर कोई बस एक दिखावटी प्रतिबद्धता में फंसकर कुछ भी बोल देता है, जो उस क्षण उसके मन में आता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए सच है, जो आध्यात्मिक और राजनीतिक नेतृत्व की स्थिति में हैं। इसी के साथ प्रसन्ना और वेदा राकेश ने बच्चों के साथ एक्टिंग वर्कशॉप भी की। इसमें विभिन्न स्कूलों के 200 बच्चों ने बहुत उत्साह से भाग लिया। खेल खेल में कैसे नाटक बनाते हैं, ये बच्चों ने सीखा। कार्यक्रम का संचालन हरिओम पाली ने किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कार्यक्रम में मेघा विल्सन, चंद्रशेखर तिवारी, इप्टा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. वी के डोभाल, बीजू नेगी, दीपू सकलानी, निकोलस,अशोक अकेला, ममता कुमार, सतीश धौलाकगन्दी, धर्मानंद लखेड़ा, गर्विता, विक्रम पुंडीर, डॉ अतुल शर्मा, जगमोहन मेहंदीरत्ता, वंशिका, गौरी, नवनीत गैरोला, कैलाश कंडवाल, और स्कूल के शिक्षक और अभिभावक मौजूद रहे ।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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