इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में किया विलय, अब नहीं दिखेगी इंडिया गेट में मशाल
इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति का आज 50 साल बाद समारोहपूर्वक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में विलय किया गया। यह ज्योति देश के वीर जवानों की शहादत की प्रतीक है। शु्क्रवार को अमर जवान ज्योति को युद्ध स्मारक ले जाया जाया गया। अब ये मशाल इंडिया गेट में नजर नहीं आएगी।
गौरतलब है कि वर्ष 1971 के युद्ध में जो जवान शहीद हुए थे, उनकी याद में ये लौ (अमर जवान ज्योति) जलाई गई थी। दूसरी ओर, नेशनल वार मेमोरियल 2019 में बना था और इसकी लागत करीब 176 करोड़ रुपये रही हैष केंद्र सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि अमर जवान ज्योति की मशाल की लौ को बुझाया नहीं जा रहा है, बल्कि से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्वाला में मिलाया गया है। इस कदम पर सरकार की आलोचना करने वाले विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार के सूत्रों ने कहा कि ये विडंबना ही है कि जिन लोगों ने 7 दशकों तक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक नहीं बनाया, वे अब हंगामा कर रहे हैं। जब युद्धों में जान गंवाने वाले हमारे शहीदों को स्थायी और उचित श्रद्धांजलि दी जा रही है।
नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर ये कार्यक्रम 3.30 बजे के करीब शुरू हुआ। दोनों स्थानों के बीच 400 मीटर की ही दूरी है। लिहाजा इस कार्यक्रम में ज्यादा देर नहीं लगी। अमर जवान ज्योति को मार्च पास्ट के साथ मशाल वाहक के माध्यम से नेशनल वार मेमोरियल ले जाया गया। इसे देश के रणबांकुरों के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता के नए सम्मान के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें, 26 जनवरी 1972 को इंदिरा गांधी ने अमर जवान ज्योति ने यह लौ जलाई थी, जिसे अब 50 साल बाद राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ले जाया गया।
सरकार की दलील है कि 1971 के युद्ध में शहीद भारतीय सैनिकों से किसी का भी नाम इंडिया गेट पर उल्लेखित नहीं है। वहां सिर्फ प्रथम विश्व युद्ध में शहीद जवानों के नाम ही अंकित हैं. जबकि नेशनल वार मेमोरियल में 26 हजार से ज्यादा जवानों के नाम उल्लेखित हैं। लिहाजा बेहतर होगा कि इस लौ को स्मारक में लाया जाए। इसी के साथ गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम भी 24 जनवरी की जगह 23 जनवरी को शुरू होगा। 23 जनवरी 2022 को नेताजी की जयंती का शताब्दी समारोह है और उस दिन एक बड़े समारोह का आगाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। कहा जा रहा है कि इस कवायद के साथ इंडिया गेट का लंबे इतिहास अब एक नए मोड़ की ओर बढ़ रहा है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।