Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

August 26, 2025

अमेरिकी फोरेंसिक फर्म की नई रिपोर्ट में खुलासा, फादर स्टेन स्वामी के कंप्यूटर में हैकर ने प्लांट किए थे 44 आपत्तिजनक दस्तावेज

भीमा-कोरेगांव हिंसा केस में एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी से जुड़े मामले में एक अमेरिकी फोरेंसिक फर्म की नई रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में पता चलता है कि फादर स्टेन स्वामी के कंप्यूटर पर कई आपत्तिजनक दस्तावेज प्लांट किए गए थे। फादर स्टेन को 2020 में कथित आतंकी लिंक के लिए गिरफ्तार किया गया था। पिछले साल उनकी मौत हो गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अमेरिकी फोरेंसिक फर्म यह रिपोर्ट भीमा-कोरेगांव हिंसा केस की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के आरोपों पर सवालिया निशान लगाती है। एनआईए ने अपनी जांच में फादर स्टेन स्वामी और कथित माओवादी नेताओं के बीच कथित इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के गंभीर आरोप लगाए थे। फादर स्टेन स्वामी के वकीलों की ओर से रखे गए बोस्टन स्थित एक फोरेंसिक संगठन आर्सेनल कंसल्टिंग का कहना है कि तथाकथित माओवादी पत्रों सहित लगभग 44 दस्तावेज एक अज्ञात साइबर हैकर ने लगाए थे। इससे विस्तारित अवधि में स्टेन स्वामी के कंप्यूटर का एक्सेस हासिल किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

शुरुआती दिनों में स्टेन स्वामी ने पादरी का काम किया, लेकिन फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे। बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की भी स्थापना की। यह संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है। फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से भी जुड़े रहे, जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था। इसके बाद चाईबासा में बांध बनाने का काम रोक दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वर्ष 2010 में फादर स्टैन स्वामी की ‘जेल में बंद कैदियों का सच’ नामक किताब प्रकाशित हुई। इसमें यह उल्लेख किया गया था कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया। उनके साथ काम करने वाली सिस्टर अनु ने बताया कि स्वामी गरीब आदिवासियों से जेल में भी मिलने जाते थे और 2014 में उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की। इसमें कहा गया कि नक्सली होने के नाम पर हुई तीन हजार गिरफ्तारियों में से 97 प्रतिशत मामलों में आरोपी का नक्सल आंदोलन से कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद ये नौजवान जेल में बंद रहे। अपने अध्ययन में उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों में 31 प्रतिशत आदिवासी हैं। उनमें भी अधिकतर गरीब आदिवासी हैं।

 

Bhanu Prakash

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *