असम में सेना के जवान ने साथी पर गोलियां बरसाई, नेताओं ने फैलाई उग्रवादी हमले की सूचना, मृतक पिथौरागढ़ का निवासी
असम के तिनसुकिया जिले में सेना के एक जवान ने शनिवार को अपने ही सहकर्मी की गोलियां बरसाकर हत्या कर दी। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक दोनों ड्यूटी पर थे। किसी बात पर दोनों की तीखी बहस हुई और विवाद इतना बढ़ा की लांसनायक राजेंद्र प्रसाद ने अपने इंसास असॉल्ट राइफल की मैगजीन में मौजूद सभी गोलियां लेफ्टिनेंट संजय चंद के शरीर में उतार दी। जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। संजय चंद पिथौरागढ़ जिले के मूल निवासी थे। यही नहीं, पूरी बात का पता लगाने की बजाय उत्तराखंड में नेताओं में श्रद्धांजलि देने की होड़ मची है। श्रद्धांजलि देना तो ठीक है, लेकिन इसमें उन्हें उग्रवादी हमले में शहीद बताया जा रहा है। कम से कम ऐसे नेता घटना की सत्यता की जानकारी जुटाने के बाद ही ट्विट करते तो बेहतर होता।
इससे पहले तक संजय चंद के गांव में खबर आई थी कि उनकी मौत उग्रवादियों की गोली से हुई। अब सच्चाई सामने निकल कर आई है। गांव के लोग अभी भी इस बात से अनजान हैं, वे उग्रवादियों की गोली से शहीद होने की बात कर रहे हैं। घटना की सूचना लाइपुली इलाके स्थित सेना के शिविर के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटना की जानकारी पानीटोला चौकी पर मौजूद स्थानीय पुलिस को दी और आरोपी प्रसाद को उसके बाद हिरासत में ले लिया गया।
अधिकारी ने बताया कि पुलिस अभी ये पता लगा रही है कि किस बात को लेकर तीखी बहस हुई, जिसकी वजह से हत्या तक की नौबत आई। उन्होंने बताया कि मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले संजय चंद के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए तिनसुकिया सिविल अस्पताल भेजा गया है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने घटनास्थल से असॉल्ट राइफल और 20 राउंड कारतूस जब्त किए हैं।
जवान की मौत की खबर से उनके गांव में गमगीन माहौल है। घर में कोहराम मचा हुआ है। संवेदनाएं व्यक्त करने के लिए लोगों का घर में तांता लगा हुआ है। संजय के दो छोटे बच्चे हैं। उत्तराखंड में पिथौरागढ़ तहसील के अंतर्गत जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी की दूरी पर स्थित बड़ावे क्षेत्र के तोली गांव निवासी संजय चंद (34 वर्ष) कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात थे। मौत की खबर शनिवार को उनके परिजनों को मिली। संजय मई में अवकाश पूरा कर घर से गए थे। जवान का परिवार गांव में ही रहता है।
उग्रवादियों की गोली का शिकार होने की आइ थी सूचना
शहीद के चाचा दौलत चंद को भी घटना की जानकारी सही नहीं मिली। उन्होंने बताया था कि संजय देश की रक्षा में दुश्मनों से संघर्ष करते हुए उग्रवादियों की गोली का शिकार हो गया है। शहीद संजय के रिश्तेदार शमशेर चंद ने बताया कि छोटे भाई ललित के गोरखा रेजिमेंट में भर्ती होने के बाद संजय बहुत खुश हुआ। करीब दो महीने पहले ही घर आया था। गांव के लोगों के साथ उसका काफी अच्छा व्यवहार था। जिस घर में वह जाता था वहां के लोग खुश हो जाते थे। हमें क्या पता था कि वह उसकी गांव की अंतिम यात्रा होगी।
तहसीलदार पंकज चंदोला ने बताया कि क्षेत्र के एक जवान की सीमा पर निधन की सूचना ग्रामीणों से मिली है, परंतु प्रशासन को इस तरह की कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। पार्थिव शरीर कब तक गांव पहुंचेगा यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार शनिवार सुबह परिजनों को इसकी सूचना दी गई। शहीद के दो छोटे -छोटे बच्चे बताए जा रहे हैं। घर पर माता, पिता, पत्नी और बच्चे हैं। शहीद के दो भाई हैं, जिसमें एक भाई सेना में है।
बचपन से ही होनहार थे संजय
मूनाकोट ब्लॉक के दूरस्थ गांव तोली में पैदा हुए संजय बचपन से ही होनहार थे। पिता भरत चंद के प्राइवेट नौकरी में होने के कारण संजय बेहद गरीबी और बेरोजगारी का दंश झेलते हुए पले बढ़े। प्राइमरी शिक्षा तोली में लेने के बाद हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा राजकीय इंटर कॉलेज बड़ाबे से पूरी की। संजय बचपन से ही परिजनों से सेना में जाने की जिद करते थे।
सेना में भर्ती होने के लिए की कड़ी मेहनत
संजय ने सेना में भर्ती होने के लिए कड़ी मेहनत की। वह सुबह जल्दी उठ जाते थे। रोज सुबह शाम सेना में भर्ती होने के लिए शारीरिक परिश्रम भी करते थे। नवंबर 2008 में चंपावत के लोहाघाट में हुई सेना की भर्ती में उन्होंने दौड़ और शारीरिक दक्षता परीक्षा पास की थी। मेडिकल और लिखित परीक्षा पास करने के बाद संजय सेना में भर्ती हो गए।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।