हास्य व्यंग्य: भात कोई आम अन्न नहीं है बल, पढ़िए व्यंग्य के साथ रोचक जानकारी
भात कोई आम अन्न नहीं है बल.. दिनभर में कितने पकवान खा लो भात नही खाया तो छपछपी नही पड़ती ठैरी..। कई व्यंजनों की टी आर पी भात ने ही बढ़ाई। जैसे कड़ी-चावल, माछी-भात, राजमा-चावल, चैंसा-भात… आदि।
वैसे चोमिन मैग्गी से स्कूली बच्चों में बासी-भात का क्रेज अब नहीं दिखता..। वैदिक काल से चोंल (चावल) का स्थान जौ के समतुल्य रहा है। पूछ करनी हो या देबता अवतरित हो तो सबसे पहले चौंल (चावल) मांगता है।
चीन, जापान ने कोरा भात खा-खा के तकनीकी ज्ञान हासिल किया। भारत भी कम नही है। भारत शब्द में तो भात शामिल ठैरा। साथ ही चावल उत्पादक में विश्व में भारत दूसरे नंबर पर है। विश्व के कई देश भी भारत का ही भात खा रहे ठैरे बल..।
भात पर बड़ी लड़ाइयां हुईं। कुनबों में फूट पड़ गई। जातियों ने इसे बड़प्पन का द्योतक बना डाला। वो अलग बात ठहरी बल जो एक दूसरे के हाथ का भात नहीं खाते। उनमे से कइयों को बल होटल में मच्छी की मुंडी के साथ भात गमजाते देखा गया।
पर एक बात तो है कि हमारे पहाड़ों में भात ने ही शादी-व्याह और अन्य भोजों में सभी को सुव्यवस्थित और एक साथ पंक्तिबद्ध खाना सिखाया। वरना बाजारों के भोजों की घपरोल में आपदा पीड़ित वाली फीलिंग आने वाली ठहरी। भात हमारे जीवन से गहरा संबंध रखता है। जीवन की शुरुवात अन्न-प्रासन के मीठे भात (तथाकथित खीर) से शुरू हो कर केसरी भात पर खत्म होती है।
लेखक का परिचय
✍️प्रदीप मलासी
अध्यापक
पता -लोअर बाजार, चमोली, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर ? ? ? ? ?