भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट पर वाशिंगटन में हिंदू संगठन नाराज, बताया हिंदूफोबिक
वाशिंगटन में एक हिंदू संगठन ने धार्मिक स्वतंत्रता पर यूएससीआईआरएफ ( USCIRF) की रिपोर्ट पर को लेकर नाराजगी जताई है। इस रिपोर्ट को लेकर संगठन ने इसे "हिंदूफोबिक" आयोग के सदस्यों का काम कहा है।
हिंदूपैक्ट ( HinduPACT) ने एक बयान में आरोप लगाया कि यूएससीआईआरएफ को इंडोफोबिक और हिंदूफोबिक सदस्यों ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। वहीं अमेरिकन मुस्लिम इंस्टीट्यूशन (एएमआई) और उसके सहयोगी संगठनों ने यूएससीआईआरएफ की सिफारिश की सराहना करते हुए कहा कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति 2021 में काफी खराब हो गई है।
बता दें कि यूएससीआरएफ ने कहा है कि 2021 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति काफी खराब हुई। वर्ष के दौरान, भारत सरकार ने नीतियों के प्रचार और प्रवर्तन को बढ़ाया। इसमें हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा देना शामिल है। जिसने मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
अमेरिका स्थित नीति अनुसंधान एवं जागरूकता संस्थान फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (एफआईआईडीएस) के सदस्य खंडेराव कंड ने आरोप लगाया कि भारत पर यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत का नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) ऐसा कानून है जो उन शरणार्थियों को नागरिकता देता है। जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश से धार्मिक रूप से प्रताड़ित रहे हैं, लेकिन यह मानने के बजाय इसे लोगों की नागरिकता छीनने के तौर पर दिखाया गया।
खंडेराव ने कहा कि इसी तरह रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं किया गया है कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) भारत की अदालत के आदेश के अनुरूप लागू की जा रही है और लोकतांत्रिक देशों में यह आम है। ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा (जीकेपीडी) के संस्थापक सदस्य जीवन जुत्शी ने कहा कि यह निराशाजनक है कि रिपोर्ट में केवल कश्मीर के मुसलमानों का हवाला दिया गया है, लेकिन कश्मीरी पंडित हिंदुओं को नजरअंदाज कर दिया गया, जो उनके आतंकवाद के पीड़ित रहे हैं। इसमें यह जिक्र नहीं किया गया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद स्थिति सामान्य हुई है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।