यहां लगता है महिलाओं का महाकुंभ, वर्ल्ड गिनीज बुक में दर्ज है यह महोत्सव, मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित, जानिए खासियत
त्रिवेंद्रम में स्थित अट्टुकल भगवती मंदिर महिलाओं का सबरीमाला कहा जाता है। इस मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए महिलायें अग्रणी भूमिका निभाती हैं। इस मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। नारी सशक्तिकरण के लिए अट्टुकल भगवती का प्राचीन मंदिर एक सिद्ध पीठ है। केरल पहुंचने वाले अधिकांश टूरिस्ट भगवान विष्णु के जगत विख्यात पदमनाभ स्वामी मंदिर के साथ, अट्टुकल भगवती मंदिर के दर्शन आवश्यक मानते हैं। अरब सागर से घिरा केरल प्रदेश अपने दो मानसून, ब्लू लेगून – बैक रिवर, डल झील की तर्ज़ के शिकारे, नौकायन और मनोरम हरियाली से सुज्जित टूरिस्ट केंद्रों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
वर्ल्ड गिनीज बुक में दर्ज है यह महोत्सव
केरल की राजधानी त्रिवेंद्रम में प्रतिवर्ष फरवरी और मार्च के मध्य में अट्टुकल भगवती पोंगला का आयोजन होता है। महिलाओं के महाकुंभ कहे जाने वाले इस महोत्सव को दो बार गिनीज बुक में शामिल किया गया है। केरल के स्थानीय कैलेंडर के अनुसार कुंभम माह में दस दिन तक इस पूजा महोत्सव की धूमधाम रहती है।
केरल के अट्टुकल भगवती पोंगला महोत्सव में वर्ष 1997 में 15 लाख महिलाओं ने और 10 मार्च 2009 को 25 लाख महिलाओं ने भाग लिया। यह आयोजन दो बार गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हुआ है। 2019 में 20 फरवरी और वर्ष 2020 में यह आयोजन 9 मार्च को आयोजित हुआ। अब वर्ष 2021 में महिलाओं का अट्टाकुल पोंगला महाकुँभ 27 फरवरी को जुटना है।
हमारे सांस्कृतिक उत्सव किसी पार्टी के मोहताज नहीं
सुदूर दक्षिण भारत में अट्टुकल भगवती को मां दुर्गा, भद्रकाली, व कनिका के रूप में पूजा जाता है। अट्टुकल भगवती जगत जननी है। जो पालन करती है और दुष्टों का संहार करती है। सो महिलायें, युवतियां और बालिकायें अपनी सभी मनोकामनओं के लिए अट्टुकल भगवती के मंदिर में विशेष अर्चना करती हैं।
केरल में इन धार्मिक आयोजनों का बड़े पैमाने पर आयोजित होना हैरत में डालता है। क्योंकि यहां वामपंथी सरकार है। किंतु यह सत्य है कि कभी वामपंथियों का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में नवरात्र से दीवाली तक -दुर्गा पूजा और काली पूजा के पारंपरिक त्यौहार, तब और आज भी बड़ी भव्यता से आयोजित होते हैं। सभी धर्म और जातियां अपनी राजनीतिक सोच से परे, अपने आंचलिक त्यौहारों को गहरी श्रद्धा से मनाते हैं और यही भारत देश की विविधता में एकता का सजीव दर्शन है।
इतिहास और लोक मान्यता
माना जाता है कि लगभग दो हजार साल पहले त्रिवेंद्रम में बुजुर्ग को एक कन्या ने नदी पार कराने का अनुरोध किया। बुजुर्ग ने कन्या का हाथ थामकर नदी पार करायी और फिर अध्यात्मिक पराशक्ति के वशीभूत अपने परिवार में भोजन कराने के लिए ले आया। परिजनों ने बालिका के पैर धोये और खाने के लिए आसन दिया तो सहसा कन्या अदृश्य हो गई। रात्रि में बुजुर्ग को स्वप्न में, एक निश्चित स्थान पर मंदिर बनाने का आदेश हुआ। परिवार ने बड़ी श्रद्धा से अट्टुकल में भगवती के मंदिर का निर्माणकर, तब विधिवत पूजा की शुरूआत की।
इस पुरातन मंदिर में समय के साथ नई स्थापत्यकला द्वारा प्रवेशद्वारों पर गोपुरम की भव्यता प्रदान की गई। पुरानी मूर्ति के साथ, नई मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा जैसे धार्मिक अनुष्ठान श्री बदरीनाथ धाम के रावल द्वारा संपन्न कराये गए हैं। प्रांगण में मां महिषासुर मर्दिनी, भद्रकाली, राजराजेश्वरी, श्री पार्वती व भगवान शिव को प्रतिष्ठित किया गया है। भित्ति चित्रों में विष्णु के दशावतार, दक्ष यज्ञ की कथा व कनिका का चित्रण है। अट्टुकल भगवती का यह मंदिर आज दक्षिण भारतीय वास्तुकला की अपूर्व धरोहर है।
केरल प्रांत के सभी छोटे – बड़े कलाकार अपनी गायन, वादन और नृत्य कला का श्रीगणेश करने या उत्सवों में अपनी विशिष्ट प्रस्तुतियों के लिए मां भगवती के दरबार को अपना प्रमुख मंच मानते हैं।
तमिल और केरल संस्कृति में एकता का सूत्र
एक अन्य कथा में तमिलनाडु के मदुरै शहर के नष्ट होने पर कनिका, जो पार्वती की अवतार मानी जाती हैं – कन्याकुमारी होकर केरल पहुंची और सदियों से अट्टुकल भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। कनिका का विशेष उल्लेख तमिल साहित्य में सरस्वती महानायिका के रूप में मिलता है। ऐसे अट्टुकल भगवती की अर्चना केरल व तमिलनाडु दो अलग भाषी राज्यों में की जाती है।
पिछले साल जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के साथ तिरूपति, रामेश्वरम, कन्याकुमारी व त्रिवेंद्रम की दक्षिण भारत यात्रा के दौरान हमने पहली बार अट्टुकल भगवती पोंगला की चर्चा सुनी और इस वर्ष महिलाओं के महाकुंभ के साक्षात दर्शन हुए। दस दिवसीय पूजा महोत्सव में मां भगवती को अराध्य देने दूर दूर से महिला श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
रात दिन मेले का आयोजन रहता है – निरंतर भजन संगीत के बीच नए कलाकार अपनी कला का लोकापर्ण मंदिर के प्रांगण में करते हैं। इस मेले में खाने पीने और समान की दुकानें लगाकर हजारों लोग अपनी आर्थिकी को भी मजबूत करते हैं। पुलिस का भारी बंदोबस्त अपराधियों को इस धार्मिक आयोजन के आसपास फटकने नहीं देता है।
पोंगला यानि चावल पकवान का प्रसाद
रात्रि को ही मंदिर परिसर से सटी सड़कों पर महिलाओं ने समूहों में मात्र तीन ईंट लगाकर अपनी जगह बनानी शुरू कर देती हैं। त्रिवेंद्रम की सभी सड़कों पर रंगीन रोशनियों की झालर जगमगाती हैं और निरंतर मलयाली भाषा में भजन संगीत लाउडस्पीकरों पर गूंजते रहते हैं।
महिलाओं ने सड़क पर अपनी जगह के पास, रात्रि विश्राम की व्यवस्था भी जमायी रहती है। राजमार्गों पर खड़ी हजारों कार, बस व अन्य मोटर वाहन अहसास कराते हैं कि महिलायें अपने परिवार के साथ दूर दूर से पहुंचती हैं।
अनोखा दृश्य
मैंने कभी लाखों महिलाओं को सड़क पर इस तरह प्रसाद पकाने की तैयारी करते नहीं देखा। तीन इंटों के चूल्हे पर मिट्टी का बर्तन, कुछ महिलायें तांबे और कांसे के बर्तन का उपयोग करती हैं। आग जलाने के लिए नारियल की जटायें और तने, दक्षिण भारत में नारियल की दैनिक जीवन में उपयोगिता को साबित करने में काफी हैं। इस आयोजन में महिलाओं के परिधान, गहने और बर्तन – समाज के सभी वर्गों की उपस्थिति का भान करा रहे थे।
मीलों तक सैलाब, सड़क पर ट्रैफिक
मीलों तक महिलाओं का सैलाब फैला रहता है, लेकिन बीच सड़क में ट्रेफिक भी चल ता रहता है। बहुत ही शालीनता से अमीर और गरीब घर की महिलायें व बालिकायें प्रतीक्षा करती हैं कि कब उन्हें मंदिर से अग्नि -ज्योति मिले और वो अपने अस्थायी चूल्हे पर प्रसाद बनाना शुरू करें।
ऐसा लगता है कि अट्टुकल भगवती मंदिर समिति ने स्थान – स्थान पर देवी के पंडाल स्थामित कर पूजा अर्चना शुरू की हुई है। ठीक 10 बजकर 10 मिनट पर इन पूजा पंडालों से महिलाओं को रसोई के लिए अग्नि मिली और देखते ही देखते लाखों महिलाओं ने अग्नि का आदान प्रदान किया और प्रसादम पोंगला पकाना आरंभ हो गया।
पोंगला में भाग लेना मलयाली अस्मिता
पोंगला पकाती बालिकायें, युवतियां और अधेड़ सभी धर्मो को मानने वाली लाखों मलयाली महिलायें थी और सड़क के किनारे तीन इंटों पर अपने पाक कौशल का प्रदर्शन एक अपूर्व शक्ति साधना का उत्सव बना। भारत की विशिष्ट संस्कृति का ज्ञान देता अट्टुकल भगवती पोंगला निसंदेह एक अविस्मरणीय महोत्सव है।
पिछले उत्सव का दृश्य
अधिकांश महिलायें एक बजे तक पोंगला चावल की खीर, जिस में चावल, दूध और गुड़ का उपयोग किया गया, बना चुकी थी। कई महिलाओं ने अनेक प्रकार के चावल के व्यंजन भी तैयार कर लिए थे और शातिं से उपवास किये बैठी थी। लगभग 2 बजकर 10 मिनट में पूजा पंडाल से पुजारी ने अपने आसपास के पोंगला प्रसादम पर अभिमंत्रित अमृत जल छिड़काव किया। सभी महिलायें शांति से अपनी बारी की प्रतिक्षा में रही – उसके बाद अपने परिजनों के लिए पोंगला प्रसाद केले के पत्तों से ढककर घर को रवाना हुई। साथ ही अपनी इंटों के चूल्हे को शांत करना नहीं भूली।
कुछ ही पलों में त्रिवेंद्रम की महापालिका के कर्मियों ने युद्धस्तर पर सफाई का अभियान शुरू कर दिया। पानी का छिड़काव और सफाई में जुटे कर्मचारी और पुलिस डयूटी में तैनात हजारों लोगों का हजूम इस यज्ञ को अंतिम आहुति दे रहा था। दोपहर 3 बजे ऐसा नहीं लगा कि पिछले आठ घंटों से इन सड़कों पर लाखों महिलाओं ने प्रसाद बनाने का कोई उपक्रम किया हैं।
टीवी और प्रिंट मीडिया के सैकड़ों पत्रकारों की भीड़ बिना किसी होड़ के इस आयोजन को देश विदेश के लिए लाइव कर रही थी। मुझे बताया गया कि इन इंटों से गरीब लोगों के लिए कई एनजीओ हर साल मकान बनवाने में सहायता करते हैं।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।