अपने गांव से भराड़ीसैंण के लिए चल दिए हरीश रावत, सरकार को दी है चुनौती-मेरा सर फोड़ो

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता हरीश रावत उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में सड़क की मांग कर रहे ग्रामीणों पर लाठीचार्ज के विरोध में चमोली जिले में भराड़ीसैंण के लिए कूच कर गए हैं। अल्मोड़ा के मोहनारी गांव से वह चमोली के लिए निकल पड़े हैं। साथ ही उन्होंने सरकार को चुनौती दे रखी है कि यदि आपकी लाठी इतनी बेचैन है तो मेरा सर फोड़िए।
कल ही इस संबंध में हरीश रावत ने पोस्ट की थी। इसमें उन्होंने नंदप्रयाग घाट मोटरमार्ग के चौड़ीकरण की मांग कर रहे चमोली जिले के घाट के ग्रामीणों पर किए गए लाठीचार्ज की कड़ी निंदा की थी। साथ ही मुख्यमंत्री और भाजपा से सवाल किए कि उत्तराखंड के लोगों ने आंदोलन करके इस राज्य को क्या लाठियां खाने को बनाया। उन्होंने कहा कि दो-दो मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं के बावजूद जब मांग पूरी नहीं हुई तो ग्रामीण भराड़ीसैंण पहुंचे और प्रदर्शन किया तो उन पर लाठीचार्ज किया गया। उन्होंने कहा था कि इस संबंध में वह लाठीचार्ज से पहले ही सांकेतिक विरोध पर बैठने की घोषणा कर चुके हैं। इसके लिए भराड़ीसैंण जा रहा रहे हैं। यदि सरकार की लाठी इतनी ही बेचैन है तो वहां मेरा सर फोड़िये।
सोशल मीडिया में सक्रिय रहकर अपने विचार और सरकार से सवाल करके हरीश रावत हमेशा चर्चा में रहते हैं। आज भी उन्होंने पोस्ट डाली और इसमें स्पष्ट है कि वह अपने गांव से भराड़ीसैंण की तरफ कूच कर चुके हैं। उन्होंने लिखा कि-
मेरे लिये उत्तराखंड जिंदाबाद। 1 करोड़ 27 लाख उत्तराखंडी भाई-बहनों की जिंदाबाद है। इस जिंदाबाद में उत्तराखंड का भूगोल, पर्यावरण, संस्कृति, परंपराएं और वस्त्र आभूषण, खान-पान, हमारा शिल्प, हमारी भाषा-बोली, हिमालय, गंगा-यमुना, हमारे सुंदर-सुंदर जंगल, लहराते हुये खेत-खलियान और हमारी तरक्की का प्रतीक उद्योग धंधे आदि सभी सम्मिलित हैं।
हरीश रावत ने आगे लिखा कि- मेरा यह जिंदाबाद मुझे ही ललकारता है और कहता है कि गरीब के चेहरे पर यह गहरी उदासी, नित्य प्रतिदिन और क्यों गहरी होती जा रही है? उत्तराखंड के बुढ़ापे की कमर और क्यों झुकती जा रही है? गांव निरंतर खाली हो रहे हैं। यह जिंदाबाद मुझसे पूछता है कि गरीब व बुढ़ापे की मदद के लिए तुम्हारे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हैं?
उन्होंने लिखा कि नौजवान की बुझी-बुझी सी आंखें और सूखे पपड़ी दार होंठ क्या चीख-चीख कर नहीं कह रहे हैं कि हमें एक ऐसी सरकार चाहिये जो 75 हजार से लेकर 1 लाख तक सरकारी नौकरियां पैदा करें और 3 लाख से अधिक रोजगार सृजित करे। पुरुष और महिला के भेद किये बिना प्रत्येक उम्र के गरीब के लिये क्या गरीबी की पेंशन की लाठी उनके हाथ में नहीं थमाई जा सकती है?
हरीश रावत ने गांव से निकलते हुए अपनी फोटो भी शेयर की। साथ ही पोस्ट में लिखा कि- आज जब मेरे पांव अपने घर से भराड़ीसैंण की ओर बढ़ रहे हैं। इन भावों के मन में आते ही एक स्वाभाविक स्फूर्ति पैदा हो रही है। उत्तराखंड राज्य की सार्थकता, दरिद्रता, गरीबी और असहायता व बेरोजगारी की उन्मूलन में ही निहित है। उत्तराखंड जिंदाबाद, लोकतंत्र जिंदाबाद।।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।