हरीश रावतः ना सोऊंगा और न सोने दूंगा, पार्टी में भूचाल, सत्ता पक्ष की भी उड़ाई नींद, छलका दर्द

सोशल मीडिया में एक के बाद एक कर जिस अंदाज में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पोस्ट डाल रहे हैं, उससे कांग्रेस में भी भूचाल आया हुआ है। साथ ही सत्ता पक्ष भाजपा की नींद भी उन्होंने उड़ा रखी है। सुबह सुबह हो या फिर रात के बारह बजे। या फिर रात एक बजे। सोशल मीडिया की पिच पर वह लगातार बैटिंग करते जा रहे हैं। न खुद सो रहे हैं और साथ ही दूसरों की नींद भी उन्होंने उड़ा रखी है।
स्थानीय समस्याओं, सरकारी नियुक्तियों पर हरीश रावत सरकार पर हमलावर हैं। उनकी सोशल मीडिया में डाली गई पोस्ट सरकार की नाकामी पर इशारा करती हैं। साथ ही वे सरकार को सुझाव देते भी नजर आते हैं। यदि नौकरी के सवाल पर सत्ता पक्ष का कोई नेता उन्हें कटघरे में खड़ा करता है तो हरीश रावत आंकड़ों को लेकर बात करने लगते हैं। फिर जवाब न आने पर कहते हैं कि मैने भाजपा की बोलती बंद कर दी।
उनकी फेसबुक वाल हो या फिर ट्विटर अकाउंट। सब पर उनकी पार्टी के लोगों के साथ ही मीडिया और सत्ता पक्ष की निगाह स्वाभाविक है। ऐसे में वे कब किस समय धमाका करें ये कहना मुश्किल है। यानी वे न तो खुद सो रहे हैं और न ही किसी को सोने दे रहे हैं। उनकी कई पोस्ट तर्कसंगत भी हैं। चाहे नर्सों का मुद्दा हो या फिर आउटसोर्सिंग कर्मियों का। नर्सिंग भर्ती के मुद्दे को तो सीएम त्रिवेंद्र ने भी संज्ञान में लिया और मानकों में ढील करने के निर्देश दिए। इस पर हरीश रावत ने सीएम के इस फैसले पर बधाई भी दी। साथ ही इसी मुद्दे की अन्य समस्याओं पर भी सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि चार साल से नौकरी का इंतजार कर रही नर्सें निजी अस्पतालों या सरकारी अस्पतालों में संविदा आदि पर काम कर रही हैं। ऐसे में उन्हें परीक्षा में भी छूट दी जानी चाहिए।
हरीश रावत ने कांग्रेस में भी हलचल मचाई है। उनकी इन दिनों एक ही रट है कि आलाकमान वर्ष 2022 के चुनाव के लिए उत्तराखंड में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के दावेदार की घोषणा कर दे। यानी सीएम के लिए कांग्रेस का चेहरा घोषित कर दे। कुछ नेताओं ने उनकी इस मांग को खारिज करने का प्रयास किया। उनका कहना था कि कई राज्यों में सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया गया। जीत के बाद ही सीएम तय किया गया। वहीं, हरीश रावत का तर्क है कि यदि भाजपा को हराना है तो सीएम का चेहरा घोषित करना सबसे उचित विकल्प है।
साथ ही उन्होंने कल ये भी कहा कि सामूहिक नेतृत्व से मुझे अलग कर दो। सीएम का चेहरा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश या फिर जो ही हो, उसे वह स्वीकार करेंगे। उसके पीछे खड़े रहेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि यदि सीएम का चेहरा घोषित करते हैं तो संगठन में गुटबाजी कम होगी और सभी एकजुट होकर चुनाव को लेकर जुट जाएंगे।
आज फिर हरीश रावत ने सोशल मीडिया में एक पोस्ट डाली। इसमें लिखा कि-
मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने को लेकर संकोच कैसा? यदि मेरे सम्मान में यह संकोच है तो मैंने स्वयं अपनी तरफ से यह विनती कर ली है कि जिसे भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जायेगा मैं, उसके पीछे खड़ा रहूंगा। रणनीति के दृष्टिकोण से भी आवश्यक है कि हम भाजपा द्वारा राज्यों में जीत के लिये अपनाये जा रहे फार्मूले का कोई स्थानीय तोड़ निकालें।
उन्होंने कहा कि स्थानीय तोड़ यही हो सकता है कि भाजपा का चेहरा बनाम कांग्रेस का चेहरा। ऐसा चुनाव में लोगों के सामने रखा जाय ताकि लोग स्थानीय सवालों के तुलनात्मक आधार पर निर्णय करें। मेरा मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में हम अच्छा कर पाएंगे। फिर सामूहिकता की अचानक याद क्यों? जो व्यक्ति किसी भी निर्णय में इतना बड़ा संगठनात्मक ढांचा है पार्टी का। उस ढांचे में कुछ लोगों की संस्तुति करने के लिए भी मुझे AICC का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। उस समय सामूहिकता का पालन नहीं हुआ है और मैंने उस पर कभी आवाज नहीं उठाई है।
उन्होंने आगे और कड़े शब्दों में लिखा कि- पार्टी के अधिकारिक पोस्टरों में मेरा नाम और चेहरा स्थान नहीं पा पाया। मैंने उस पर भी कभी कोई सवाल खड़ा नहीं किया! यहां तक की मुझे कभी-कभी मंचों पर स्थान मिलने को लेकर संदेह रहता है तो मैं, अपने साथ अपना मोड़ा लेकर के चलता हूं। ताकि पार्टी के सामने कोई असमंजस न आये तो आज भी मैंने केवल असमंजस को हटाया है, तो ये दनादन क्यों?
दोबारा छलका दर्द
हरीश रावत ने कांग्रेस संगठन में गुटबाजी के दर्द को फिर से बयां किया। उन्होंने फिर एक पोस्ट डाली और इसमें बताने का प्रयास किया कि उन्हें कांग्रेस ने सामूहिकता के लायक नहीं समझा। उन्होंने सोशल मीडिया में कुछ इस तरह पोस्ट डाली।
उत्तराखंड कांग्रेस ने मुझे सामूहिकता के लायक नहीं समझा है। यह उसी दिन स्पष्ट हो गया था, जब प्रदेश कांग्रेस के नवनिर्वाचित सदस्यों व पदाधिकारीयों की पहली बैठक हुई थी। उस बैठक में मंच से पार्टी के शुभंकर महामंत्री संगठन ने 3 बार नेताओं की जिंदाबाद बुलवाई। AICC के सचिवगणों की भी जिंदाबाद लगाई गई। मगर नवनियुक्त AICC महासचिव हरीश रावत को मंच से जिंदाबाद बुलवाने के लायक नहीं समझा गया।
उन्होंने आगे लिखा कि-यदि इन बातों को अलग रखकर भी विचार करें, तो भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना पार्टी हित में होगा। प्रदेश में स्थान-स्थान पर जनआंदोलन हो रहे हैं। राज्य में दो प्रमुख पद हैं। उन जनसंघर्षों को कांग्रेस के साथ जोड़ने के लिये आवश्यक है कि अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष वहां पहुँचे और अन्याय व पीड़ितों जिनमें कांग्रेसजन भी सम्मिलित हैं, उनके मनोबल को बढ़ाएं।
उन्होंने कहा कि- आज हरीश रावत के लिये ऐसा करना संभव नहीं है। हमें युवा हाथों में बागडोर देने के लिये उत्सुक होना चाहिये। पार्टी के भविष्य के लिये जनरेशन चेंज को प्रोत्साहित करना, पार्टी की सेवा है। मैंअपने को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। ताकि अन्य राज्यों और क्षेत्रों में भी यह सिलसिला आगे बढ़ सके।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
कांग्रेस का सीएम हरीश रावत जी ही हों दूसरा नहीं.
वे ही कांग्रेस को वापसी कराई सकते हैं