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November 8, 2024

कई गुणों की खान है ग्वाणु दीदाः डॉ. महेन की कहानी

जब से होश संभाला ग्वाणु दीदा उर्फ़ बैपारी भाई (व्यापारी भाई), मिस्त्री जी, उर्फ़ बाकि जी कई नामों से जाना जाता है। ग्वाणु दीदा (भाई) का असली नाम दर्शन लाल था।

जब से होश संभाला ग्वाणु दीदा उर्फ़ बैपारी भाई (व्यापारी भाई), मिस्त्री जी, उर्फ़ बाकि जी कई नामों से जाना जाता है। ग्वाणु दीदा (भाई) का असली नाम दर्शन लाल था। शायद ही कम लोग जानते हैं। मैंने उतना ही देखा जितना आज से 30 वर्ष पूर्व था। ग्वाणु दीदा गरीब तो था, पर बहुत ही मेहनती था। हर काम में पारंगत। चाहे लकड़ी का हल बनाना हो, कुडल, नेयेडा, लाट, समै बनाना हो या लोहार कार्य दरांती, कुदाल, फाल, बनाना हो। सब कार्यो में पारंगत था।
इसके अलावा पुराने मट-पथरी दिवार के मकान बनाने हों, इसमें भी ग्वाणु दीदा पारंगत हैं। ग्वाणु दीदा अपनी जवानी के दिनों में किसी के भी कार्य को मना नहीं करते थे। किसी के खेत की दिवार टूटती तो ग्वाणु दीदा ही लगाएगा, किसी के खलियान के पत्थर बिछाने हों, भैंस के लिए किल्ला ठोकना हो गुठ्यार बनाना हो, छान बानानी हो। सब काम में ग्वाणु दीदा का सहयोग ही लिया जाता था। बदले में कोई मोटी रकम या करार की गयी राशी नहीं होती थी। ग्वाणु दीदा ने न जाने कितने लोगों की शादी में डोले बनाये होंगे। न जाने कितनी गाँव की बेटियाँ बिदा करवाई होंगी। ग्वाणु दीदा तब भी काम आता जब किसी के घर कोई मरता। ग्वाणु दीदा अर्थी के लिए डोला भी बनाता।
इसके अलावा ग्वाणु दीदा पर कई देवता जैसे भैरू, घुरील आदि भी आते थे। जिससे कि सभी ग्रामवासी यहाँ तक कि क्षेत्र के लोग भी इनसे बुरी नजर, छाया, भूत पिचास आदि को भी भगवाते थे। लाभ भी लेते थे। खुद काफी सालों तक निसंतान था, परन्तु अपने देवता से सन्तान की कामना भी करवाता आया। बाद में उसके भी बच्चे हुए और कई भक्तों के बच्चे हुए। ऐसा लोगों का मानना है। उन्होंने ने ग्वाणु दीदा के आराध्य देव भैरू (भैरव) का मन्दिर भी उसके घर के पास बनवा लिया।
अपनी आस्था के चलते ग्वाणु दीदा को कभी मैंने अपने जीवन काल में किसी के साथ लड़ते नही देखा। ना ही कभी खाली बैठे देखा। ग्वाणु दीदा इन सब कार्यो के अलावा गाँव का कुलाड़ा (सिंचाई करने वाला ), बंद्रवाला (बंदर भगाने वाला) का भी काम करता था। यही उसके जीवन का राज था कि वो दुबला पतला फूर्ती वाला था। इसलिए मैंने उसे विगत 30 वर्षों से उतना ही देखा। समय की मार है, एक न एक दिन बुड्डा होना है। जवानी हमेशा नहीं रहती है। आखिर एक दिन उसके आगोश में आना ही पड़ता है।
मैंने पहली बार एक गाना अपने टेप रिकॉर्डर पर सुना कि शाबासी भुला बैपारी ग्वाणु खुक्डा लेयोंदु मोला। जब मैंने सुना तो मुझे लगा कि गाना उसी पर बना है। मैंने अपने घर अपने टेप पर इसे कई बार चुपके से सुना। उन दिनों गाता भी था की ये गाना। सोचता था कि गाना ग्वाणु दीदा पर ही बना है। जब बड़ा हुआ तो पता चला कि गाना इस पर नहीं, बल्कि किसी और पर बना है। हां सबकी कहानी करीब एक सी है। पता चला कि हर गांव में ग्वाणु दीदा मिल जाएंगे। एक बार तो शाम से समय पढ़ाी के दौरान गाना चल रहा था। मेरा ध्यान इसी पर गया, तुरंत पिताजी ने कहा तेरे लिए भी मैं खुकड़ा (मुर्गी के बच्चे )लाऊँगा तब पढ़ाई रहने दे।
ग्वाणु दीदा कई गुणों की खान है। अपनी जवानी में लोहार, मिस्त्री (लकड़ी व पत्थर का), देवता का पुजारी, ओउतारी, बाकि (देवता का वक्ता ), सबसे बुरी नजर उतारने वाला, कई मकान/छान उसने हमारे सामने गाँव में बनाये। अब भी कायम है। मुझे तो लगता है शायद ये अब मट-पथरी दीवार बनाने वाल अच्छा मिस्त्री ये ही अंतिम होगा। इसके बाद ये कला भी बिलुप्त हो जायेगी। मुझे याद है आज से 10 साल पहले जब मेरी बेटी के बाद मेरे कोई और बच्चे नही हो रहे थे। तो मेरी दादी ने सलाह दी कि ग्वाणु से इसकी लड़की के पीठ पर फाल चलाओ। शायद इसकी बेटी की करड़ा पीठ है। इसलिए बच्चे होने कठिन हैं। मुझे घर बुलाया गया कि अपनी बेटी को ले घर आना। मेरी समझ से परे था।
अगली सुबह ग्वाणु दीदा आया तो उसने मेरी बेटी की पीठ पर एक गरम लोहे की फाल को बकरी की खाल से उपर से नीचे फेंका। ऐसा उसने 7 बार किया और कुछ चावल के दाने (जिन्द्याल) इधर उधर डाले। इतनी मेहनत को उसे दो तीन घंटे लगे। शायद ही पिताजी ने उसे 101 रूपये दिए हों। मेरी समझ से परे था कि कर क्या रहे हैं। घर वालों का आदेश था। उसके बाद फिर उसने कई किस्से अपने बताये कि उसके भी बच्चे नहीं हो रहे थे। मेरे देवता की कृपा से हो गया। हालांकि यह कितना कारगर है इसका मुझे मालूम नहीं, परन्तु ठीक एक साल बाद मेरा बेटा हो गया ये महज इत्तेफाक है या ग्वाणु दीदा की साधना।
बेटा होने के बाद वह जब भी मिला नमस्कार दुआ सलाम होता, परन्तु कभी यह नही पुछा कि तेरा बेटा हुआ। मुझे इनाम किताब दे, जबकि कोई और होता तो खूब लूटता। भाई ने आज तक नहीं बोला। इसका मतलब वो वाकई दिल का अमीर है। चाहे भौतिक रूप से गरीब है। ग्वाणु दीदा की एक पहली पत्नी थी। जिसका नाम उमा था। वह अब नही है। वह निसंतान ही मर गई। परन्तु इन दोनों का भरा पूरा परिवार हुआ करता था। उमा देवी अपने भतीजे व भतीजा साथ ला रखी थी। अपने परिवार की तरह उन दोनों को पढ़ाया लिखाया व वो भी जवान होकर पढ़ लिख कर फु्र्र हो गये। फिर वो अकेले पड़ गये।
जब उमा को लगा की ऐसे में दिन सम्भव नही। उसने ग्वाणु दीदा की एक और शादी कराई। जो कि लगभग उससे 15 साल छोटी होगी। उमा देवी की मेहनत रंग लाई और ग्वाणु दीदा के पुत्र पुत्रादि हो गये। बुढापे में ग्वाणु दीदा जड़ वाला हो गया। ग्वाणु दीदा उस दिन बहुत खुश हुआ कि दूसरों को माँ बाप बनाने वाला आज खुद बाप बन गया।
समय बीतता गया ग्वाणु दीदा ने अपने बेटे के लिए बहू भी ला दी व अपनी पुरानी पत्नी उमा देवी को खो दिया। परन्तु अब उसका परिवार बड़ा हो गया बेटा बहू, बेटी व पत्नी वो अपने बहू बेटे के साथ रहने लग गया। आज शायद ग्वाणु दीदा 80 वर्ष पार गया। उम्र के इस पड़ाव में अब ग्वाणु दीदा कुछ करने के हालात में नही है।
एक सुबह गाँव के whatsup ग्रुप में आया कि ग्वाणु दीदा की दूसरी घरवाली भी मर गयी है और ग्वाणु दीदा बहुत गरीबी के हालात में जी रहा है। ये सारा पूरा पिछला हिसाब देखा कि ग्वाणु भाई जो सबको मदद करता था आज मदद की दरकार में है। तुरंत ग्रुप में सहयोग की अपील की। ये कहानी सारांश में सबको लिखी। सबको गुवाणु दीदा का पूर्व में किया गया सहयोग सबको शायद याद आया। सबने खुले दिल से इसका स्वागत किया। देखते ही देखते गाँव के जितने भी लोग गाँव में या बाहर नोकरी कर रहे हैं, सबने ऑनलाइन, गूगल पे से पैसे ट्रांसफर किये और ग्वाणु दीदा की पत्नी का दाह संस्कार बड़े स्म्मान के साथ किया गया। अब उसके पुत्र को भी समझ आ गया कि किस प्रकार उसका पिता गाँव के लिए एक परोपकारी देव तुल्य था और मुझे यकीन है इसका लडका भी आगे गाँव के काम आयेगा।

लेखक का परिचय
नाम -डॉ. महेंद्र पाल सिंह परमार ( महेन)
शिक्षा- एमएससी, डीफिल (वनस्पति विज्ञान)
संप्रति-सहायक प्राध्यापक ( राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी)
पता- ग्राम गेंवला (बरसाली), पोस्ट-रतुरी सेरा, जिला –उत्तरकाशी-249193 (उत्तराखंड)
मेल –mahen2004@rediffmail.com

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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