पिथौरागढ़ की शिक्षिका लक्ष्मी की शानदार कविता-मजदूर
मजदूर
हे विधाता! तेरी परीक्षा की धार पर,
चल रहा प्रवासी-अप्रवासी मजदूर।
जीवन बचाने की उम्मीदों से,
मौत गले लगाकर चलता दूर-दूर।
जीवन जीने की आशातीत,
बंदिशों से छिन गई रोजी रोटी।
अपना आशियाना छोड़ने को हो गए मजबूर,
उन्हें गाँव-घरों में छोड़ने की कोशिश की गई भरपूर।।
भीड़ भरे शहरों पर निर्भर जीवन,
आज ढूँढ रहा है गाँव।
गाँव सुख सुविधा से वंचित रहे हमेशा,
पर आज जीवन बचाने के लिए बन गए ईश्वरीय छाँव।।
तभी महामारी से बचने के लिए,
भगदड़ मच गई शहरों में।
पैदल चलने को हो गए मजबूर,
दुनिया के प्रवासी अप्रवासी मजदूर।।
कवयित्री का परिचय
नाम- लक्ष्मी
सहायक अध्यापक एलटी सामान्य
राजकीय इंटर कॉलेज भैंस्कोट, मुनस्यारी, पिथौरागढ़, उत्तराखंड
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।