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November 21, 2024

उत्तराखंड के अशासकीय स्कूलों में मिलता रहेगा सरकारी अनुदान, सीएम ने प्रस्ताव किया नामंजूर, उच्च शिक्षा पर फैसला अटका

सीएम ने असाशकीय स्कूलों को सरकारी अनुदान खत्म करने के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। इस मुद्दे पर उबाल चल रहा था। शिक्षा सचिव आर मिनाक्षी सुंदरम ने न्यूज स्पेस पोर्टल के संपादक चेतन गुरुंग को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि ऐसा प्रस्ताव चल रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री ने नामंजूर कर दिया। साथ ही सभी स्कूलों को वेतन जारी कर दिया गया है। वहीं, उच्च शिक्षा पर अभी फैसला नहीं हुआ है। प्रमुख उच्च शिक्षा सचिव का कहना है कि इस संबंध में प्रस्ताव तो है, लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ है।
शिक्षा सचिव मीनाक्षी सुंदरम ने कहा, ये सच है कि अनुदान बंद करने की फाइल चल रही
थी। मुख्यमंत्री ने अशासकीय स्कूलों को अनुदान बंद करने के इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया है।
साथ ही उनका बजट जारी करने के निर्देश भी दिए। अब सभी स्कूलों के शिक्षकों-कर्मचारियों
को तनख्वाह दे दी गई है। अशासकीय स्कूलों को अनुदान बंद करने का कोई फैसला अब
विचाराधीन नहीं है।
बंद करने की चल रही थी फाइल
राज्य के 65 अशासकीय स्कूलों को अनुदान बंद करने के प्रस्ताव की फाइल शासन में चल रही थी। शासन सूत्रों के मुताबिक ये फैसला मौजूदा सरकार का नहीं था। पिछली हरीश रावत सरकार ने जाते-जाते ये फैसला कर फाइल चलाई थी। इसके बाद इस सरकार में ये फाइल दबी रही। बाद में इस पर विचार शुरू हुआ। इसकी जानकारी आने के बाद से ही अशासकीय स्कूलों के शिक्षकोंकर्मचारियों में बवाल शुरू हुआ। इन दिनों वे आए दिन धरना-प्रदर्शन-नारेबाजी कर रहे हैं।
जहां बच्चे कम थे, उन स्कूलों के लिए लिया था फैसला
हरीश सरकार ने उन स्कूलों को बंद करने का फैसला मुख्य रूप से किया था, जहां बच्चे बहुत
कम थे। इसके साथ ही स्कूलों को अनुदान बंद करने के कई मानकों को बहुत शिथिल कर
दिया था। इसकी जद में राज्य के 65 स्कूल आए थे। इस प्रस्ताव की भनक लगते ही उन
अशासकीय स्कूलों के शिक्षक-कर्मचारियों में भी उबाल आया हुआ है, जिनको अनुदान बंद
करने का फैसला नहीं हुआ है। उनको आशंका है कि भविष्य में मानकों को शिथिल कर उनको
भी इस फैसले के दायरे में सरकार ला सकती है।
सियासी नजरिए से भाजपा को मिलेगा लाभ
विधानसभा चुनाव के लिए सवा साल भी नहीं रह गया है। ऐसे में इस किस्म के फैसलों पर मुहर
लगाना किसी भी सरकार के लिए नुकसान से सिवाय कुछ और नहीं था। त्रिवेन्द्र सरकार का
इस प्रस्ताव को फिलहाल नामंजूर किया जाना सियासी नजरिए से भी उनको और बीजेपी को
फायदा पहुंचाएगा। मुमकिन है कि विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख के ही सरकार ने प्रस्ताव
रद्द किया हो। इस प्रस्ताव के चलते वित्त मंत्रालय ने सभी स्कूलों का बजट रोका हुआ था। इसके
चलते तनख्वाह तक जारी नहीं हो पा रहे थे।

उच्च शिक्षा पर नहीं हुआ कोई फैसला
प्रमुख सचिव (उच्च शिक्षा) आनंदबर्द्धन ने News space से कहा, इस संबंध में प्रस्ताव तो है लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ है। सरकार का ये फैसला अगर अमल में आता है तो गैर सरकारी डिग्री कॉलेजों के प्रबंधन के सामने तालाबंदी के सिवाय कोई चारा नहीं रह जाएगा। साथ ही इन कॉलेजों के हजारों शिक्षको-कर्मचारियों के भविष्य पर बहुत बड़ा सवाल लग जाएगा। प्रोफेसर असोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर वा इस स्तर के शिक्षको की तनख्वाह दाई लाख रुपए तक है। इनमें से कईयों की नौकरियों सालों की बची है।
बंद हो सकते हैं महाविद्यालय, दांव पर छात्रों का भविष्य
सरकारी अनुदान बंद हो जाता है तो प्रबंधन के बूते की बात नहीं कि वह 10 फीसदी स्टाफ को भी अपने पर्च पर मौजूदा तनख्वाह-सुविधाओं-शर्तो पर सेवा में रख सके। ऐसे में कालेजों की बंदी का विकल्प ही सामने रहेगा। साथ ही यहां पढ़ने वाले हजारों छात्रों का भविष्य भी दांव पर लग जाएगा। यहां पढ़ने वाले छात्रों को निजी कॉलेजों में प्रवेश लेकर भारी भरकम फीस वहन करनी होगी।
फाइल पर नहीं हुआ फैसला
इस संबंध में पूछे जाने पर प्रमुख सचिव आनंदबर्द्धन ने न्यूज स्पेस को साफ किया कि अभी ये सिर्फ विचार के स्तर पर शुरुआती दौर में है। प्रस्ताव की फाइल बनी है, लेकिन किसी भी प्रकार का फैसला नहीं हुआ है। फैसला किया भी जाता है तो पहले उसके मानक बनाए जाएगे। ऐसा नहीं होगा कि सरकार इन कॉलेजों के अनुदान को झटके में रोक देगी। मानक क्या होंगे। अभी ये ही तय नहीं है। कब बनाए जाएंगे और फैसले को मंजूरी मिलती भी है तो उसको कब से व्यवहार में लाया
जाएगा, कुछ भी साफ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, मौजूदा सूरते हाल ये है कि फिलहाल सभी कॉलेजों को सरकारी अनुदान मिल रहा है। बंद करने की कोई फाइल मेरे पास आई नहीं है।
उच्च शिक्षा को लेकर चुनाव में भाजपा को हो सकता है नुकसान
त्रिवेन्द्र सरकार ने इसी तरह के मिलते-जुलते मामले में गैर सरकारी प्रबंधन वाले स्कूलों को सरकारी अनुदान बंद करने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है। मुमकिन है कि कॉलेजों के मामले में भी वह प्रस्ताव को या तो रद्द कर दे या फिर विधानसभा चुनाव से पहले इस किस्म के सख्त प्रशासनिक-अलोकप्रिय किस्म के प्रस्तावों को रोक के रखें। इस किस्म के फैसलों से सत्तारूढ़ बीजेपी को चुनावों में नुक्सान पहुँचने का अंदेशा जताया जा रहा है।

ये है मांग
उच्च शिक्षा केशिक्षकों की मांग है कि महाविद्यालयों में अनुदान की व्यवस्था पूर्व की भांति करने की जाए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक, 2020 में वर्तमान में लागू उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के कुछ महत्वपूर्ण प्रायोजन शामिल नहीं किए जाने से शिक्षको और कर्मचारियों को वेतन भुगतान की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

चल रहा है आंदोलन
सरकार के इस फैसले से अशासकीय स्कूलों के शिक्षकों-कर्मचारियों को निश्चित तौर पर राहत
मिलेगी। इस मामले को लेकर प्रदेश के 18 असाशकीय महाविद्यालयों के शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारी पिछले काफी समय से आंदोलन कर रहे हैं। मांग को लेकर वे सांसद, पूर्व मुख्मंत्रियों, विधायकों, मेयर, राज्यपाल, मुख्यमंत्री से भी मिल चुके थे। साथ ही हर दिन कॉलेज गेट पर एक घंटे तक प्रदर्शन का सिलसिला भी शुरू कर रखा है। उच्च शिक्षा को लेकर कोई फैसला नहीं होने से शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मियों में रोष है।

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