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September 13, 2024

राजनीति नहीं, कोरोना का टीका लगाएं, जीवन बाचाएं, स्वस्थ भारत और सुखी भारत (सोमवारी लाल सकलानी का लेख)

1 min read

वर्ष 2020 में विश्व में एक ऐसा संकट आया, जिसने संपूर्ण संसार की दिनचर्या को प्रभावित करके रख लिया तथा आर्थिक संकट के दौर में एक युग को धकेल दिया। कोरोना महामारी का विश्व में फैल जाना तथा संपूर्ण संसार में त्राहिमाम त्राहिमाम हो जाना , प्रकृति प्रदत्त नहीं बल्कि मानव जनित बुराइयों का प्रतीक है।
जब मनुष्य प्रकृति के साथ ज्यादा छेड़छाड़ करता है, प्रकृति को अपना गुलाम बनाने की सोचता है और अपने मिथ्या अहंकार में वशीभूत होकर के प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की सोचता है तो सबक सिखाने के लिए प्रकृति आपदाएं लाती है। चाहे वह खंड प्रलय के रूप में हो या महाप्रलय के रूप में।
कोविड-19 या कोरोना महामारी प्रकृति का कहर नहीं, बल्कि मानवीय कुचेष्टाओं का कारण है। इस प्रकार की कुचेष्टाएं समय-समय पर मानव करता रहा है ।अपनी गलती को सुधारने के बजाय गलती पर गलती करता जाता है और अपने मिथ्या दंभ और अहंकार के बलबूते अनाचार करता है। इसका खामियाजा संपूर्ण जगत को भोगना पड़ता है। गरीब लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
कमोबेश हमारा देश एक आदर्श भूमि है और यहां मनुष्य के मस्तिष्क के साथ उसके हृदय का तारतम्य भी जुड़ा रहता है। इसी तादात्म्य के कारण भारत विश्व में सिरमौर रहा है। पाश्चात्य इसका अनुकरण करते हैं और इसे जगतगुरु भी मानते हैं। छोटी- मोटी बातों को छोड़ दिया जाए तो भारतीयों की इच्छा शक्ति तथा आगे बढ़ने की लगन सदैव गतिमान रही है। कुछ अपराधी शक्तियां इसको संकुचित करना चाहती हैं। समय-समय पर अपने राक्षसी स्वरूप का प्रदर्शन भी करते रहे हैं, लेकिन जनमानस उसको नकार देता है। उन दूषित भावनाओं को दरकिनार कर लेता है।
विश्व में जब कोरोना महामारी फैली तो प्रत्येक भारतीय ने संजीदगी से कार्य किया। संवेदनशीलता बरती। अनुशासन प्रियता के कारण इतना बड़ा जनसंख्या बहुल देश इस महामारी से निपट सका। छोटी- मोटी बातों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी नागरिकों ने शासन- प्रशासन तथा अपने नीति- नियामकों को समझा उनकी बातों , नियम और कानून का अनुपालन भी किया।
राजनीति में राजनीतिज्ञों को लोक से अधिक सत्ता का लोभ होता है। सभी प्रकार के कर्म- कुकर्मों की जड़ यही सत्ता का लोभ है। इस कारण पक्ष- विपक्ष एक दूसरे पर छींटाकशी करते हैं। विरोध करते हैं। धरना प्रदर्शन करते हैं। हड़ताल करते हैं। इसका बुरा पहलू यह है, जब वे भोले -भाले लोगों को बरगला कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने लगते हैं, तो तब देश का बड़ा नुकसान होता है।
कमजोर दिमाग के लोग इनके झांसे में आ जाते हैं और विवेकहीन होकर इनकी बातों पर विश्वास करने लगते हैं। कुछ लोग तो इतने अंधभक्त होते हैं, भावनाओं के गुलाम होते हैं कि वह मरने- मारने पर आमदा हो जाते हैं और फिर संघर्ष बढ़ता है। संघर्ष के कारण गरीब व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। चालाक लोग अपने लक्ष्य में सफल हो जाते हैं और पीढ़ियों तक सुख भोगते हैं।
हमारे देश और विश्व के महान वैज्ञानिकों ने दिन- रात एक कर कोविशील्ड और कोवैक्सीन महामारी का टीका ईजाद किया। पूरे विश्व के लोगों ने राहत की सांस ली, क्योंकि मौत से तो सभी डरते हैं। बुरा पक्ष यह है कि कुछ सत्ता के सौदागर यहां भी राजनीति करने लगे। यह राजनीति करने का वक्त नहीं है। धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर, शिक्षा के नाम पर, कला के नाम पर, भाषा के नाम पर, इतिहास के नाम पर, भूगोल के नाम पर, राजनीति करने का समय नहीं है।
राजनीति तो समुचित विकास, जनसंख्या नियंत्रण, रोजगार नीति, महिला सशक्तिकरण, गरीब लोगों के हित, विकसित राष्ट्र बनाने की पहल, शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचागत सुविधाएं, जीवन स्तर में सुधार आदि पर होनी चाहिए। न कि विरोध के लिए केवल विरोध करना। वोटों की राजनीति या अनुचित तरीके से सत्ता हासिल करना आदि पर होनी चाहिए।
कुछ लोगों का एक ही मकसद होता है , “बांटो और राज करो” ये साम- दाम- दंड- भेद की कोई भी नीति अपनाने में हटते नहीं हैं। सदैव अवसर की तलाश में रहते हैं। सरल, सपाट लोगों पर राज करते हैं। टीका का एक ओर विरोध करेंगे, लेकिन टीका सबसे पहले लगाएंगे। किसी भी अच्छी पहल का विरोध करेंगे, लेकिन लाभ पहले लेंगे। अपने आप में ऐसे लोग एक ऐश की जिंदगी जीते हैं और कमजोर लोगों के जीवन को नरक बना लेते हैं।
ऐश्वर्य के साम्राज्य में विचरण करते हैं और गरीब व्यक्ति और गरीब ही रह जाते हैं। यहां तक कि आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। गरीब आदमी डरता है। इसलिए कानूनों का भी पालन करता है लेकिन ऐसे लोगों के लिए नियम और कानून को ही महत्व नहीं रहता क्योंकि यह लोग सर्व सत्ता संपन्न होते हैं।
महामारी तो महामारी है। वह बड़े -छोटे ,अमीर -गरीब का भेद नहीं करती। इसके प्रति व्यक्ति को राजनीतिक चश्मे को उतारकर मानवता के लिए जो कल्याणकारी हो वह कार्य करना चाहिए। टीके के प्रति लोगों को उत्साहित करना चाहिए न कि लोगों को भ्रमित कर डराना चाहिए। बचे रहेंगे तो राजनीति होती रहेगी। देश – विदेश के महान वैज्ञानिकों को सलाम। डॉक्टर, नर्स, पुलिस, शासन, प्रशाशन की दृढ़ इच्छाशक्ति को सलाम।” कोवेक्वसीन से भारत का मान बढ़ा है। मैं तो नारे ही दे सकता हूं। जन जागरूकता अभियान चला सकता हूं।
टीका लगाएं – जीवन बाचाएं। स्वस्थ भारत – सुखी भारत। अब कोरोना मुक्त भारत।


लेखक का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।

 

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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