गढ़वाली कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ के दोहे- पौंणौं-स्वागत
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पौंणौं-स्वागत
स्वागत सबकू गौं-गौंम, सदनी बटी क ह्वाय.
हमरी पुरण्यूं रीत या, ब्वे – बबुजी न बताय..
आंदू- जांदू क्वी बि हो, बैठा- खैकी जांण.
इनी कैरी त लगदि छै, दूर तलक- पछ्याण..
रिस्ता नाता जुड़दा छा, आस्ता-बिस्ता देखि.
पैसा निकाळि – दींद छा, नौं ईष्टौं कू- लेकि..
साठ साल- पैल्या बात, अज्यूं बि हमथै याद.
कन जांदा पौंणयूं हम, जन हो ब्याऴ्या बात..
पौंणौं स्वागत खूब ह्वे, झट से बखरु मारि.
यी कारण चा आज भी, पौंणै लगदीं प्यारि..
अरसा-खुस्का भूड़ि-पकोड़ि,दगणै फाणा भात.
कन रस्याण- आंदी छयी , खाई घ्यू का साथ..
रात भर- स्याळ्यूं गऴि खै, सुवेर खोजणु राइ.
बिदै क बग्त ब्योलि दगड़, ज्वान पौंणू बि र्वाइ..
‘दीन’ यखा रिवाज देखि, सच-ज्यू खुश ह्वे जांद.
जैन भी द्याख यो मुलक, लौटि अज्यूं यख आंद..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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