माधव सिंह नेगी की होली के संदेश को लेकर गढ़वाली कविता
शीत बीतीगे, बसन्त ऐगे,
धरती मा देखा हैर्याळी छैगे।
प्रीत का रंग मा सभ्यूं तैं रंगैगे,
ऐगि होळी कू त्योहार, दगड़्यों बसन्त लैगे।।
ईर्ष्या-द्वेष की होली जलावा,
ऊँच-नीच तैं मन से भुलावा।
खोलि द्या दिलों का किवाड़,
रंगीलो च त्योहार, दगड़्यों बसन्त लैगे।।
हँसा-गावा रंग लगावा,
तेल कडै़ तैं चुल्ला चढ़ावा।
कचरी, गुझिया कू तैकु लगावा,
मनावा होलि कू त्योहार, दगड़्यों बसन्त छैगे।।
डाळी डाळ्यों मा मौळ्यार ऐगि,
बासन्ती रंग मा सभ्यूं तैं रंगैगे।
कफुवा हिलाँस बासण लैगे,
चैत्वाळि काफळ पाकण लैगे,
जिकुड़्यों मा ऐगि उलार,
दगड़्यों बसन्त छैगे।।
बसन्त जनु हो जीवन हमारू,
कभि न बदलो प्यार-दुलार हमारू।
सद्भावना बणी रौ सदबिचार कू संचार हो।
यनु मुबारक होळी को त्योहार हो।।
कवि का परिचय
नाम-माधव सिंह नेगी
प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय जैली, ब्लॉक जखोली, जिला रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।